उलूक टाइम्स

रविवार, 6 जुलाई 2014

साँप जहर और डर किसका ज्यादा कहर

साँप को
देखकर
अत्यधिक
भयभीत
हो गई
महिला के
उड़े हुऐ
चेहरे
को देखकर

थोड़ी देर के लिये
सोच में पड़ गया

दिमाग
के काले
श्यामपट में
लिखा हुआ

सारा सफेद
जैसे काला
होते हुऐ
कहीं आकाश
में उड़ गया

साँप आ ही
रहा था कहीं से
उसी तरह
सरसराता
हुआ निकल गया

हुआ
कुछ किसी
को नहीं

बस माहौल
थोड़ी देर
के लिये

उलटा पुल्टा
होते होते
डगमगाता
हुआ जैसे
संभल गया

जहर था
साँप के अंदर
कहीं रखा हुआ

उसे उसी तरह वो
कंजूस अपने साथ
लेकर निकल गया

महिला ने भी चेहरे
का रंग फिर बदला

पहले जैसा ही
कुछ ही देर में
वैसा ही कर लिया

रोज बदलता है
मेरे चेहरे का रंग
किसी को देखकर

अपने
सामने से
शीशे ने भी
देखते देखते
इससे
सामंजस्य
कर लिया

साँप के
अंदर के जहर
के बारे में
सब ने सब कुछ
पता कर लिया

उसके अंदर
कुछ भी नहीं
फिर कैसे
साँप के
जहर से भी
बहुत ज्यादा
बहुत कुछ
करते ना करते
कर लिया

‘उलूक’
समझा कर

रोज मरने वाले
से अच्छा होता है

एक ही बार
मर कर
पतली गली से
जो
एक बार में ही
निकल लिया ।