उलूक टाइम्स

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

मुक्ति के मार्ग चाहने वाले के हिसाब से नहीं होते हैं

एक दिन के
पूरे होने से
जिंदगी बढ़ी
या कम हुई

ऊपर वाले के
यहाँ आवेदन
करने के
हिसाब से तो
अनुभव में
इजाफा
हुआ ही कहेंगे

नीचे वालों के
हिसाब से
देखा जाये
तो जगह
खाली होने के
चाँस बढ़ने
से दिन
कम ही होंगे

गणित जोड़
घटाने का
गणित के
नियमों के
हिसाब से
नहीं होगा

अपनी सुविधा
के हिसाब
से होगा
जो कुछ
भी होगा
या होना होगा

वैसे भी दिन
गिनने वाले
कम ही होते हैं

बाकी सारे
हिसाब किताब
के ऊपर
टाट रखकर
बैठे होते हैं

फर्क किसे
पड़ता है
थोड़ा भी

उनके हिसाब
किताब में
दिन आधे या
पूरे होते हैं

बाकी सभी
के लिये
मुक्ति के
कहीं भी
कोई भी
मार्ग
कहीं भी
नहीं होते हैं

सब मिलकर
काँव काँव
कर लेते हैं
एक ही
आवाज में

मजे की बात
है ना ‘उलूक’
जो कौए भी
नहीं होते हैं ।