उलूक टाइम्स: हिसाब किताब
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सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

कई दिन के सन्नाटे के बाद किसी दिन भौंपू बजा लेने में क्या जाता है

 



कुछ बहुत अच्छा लिखने की सोच में
बस सोचता रह जाता है

कुकुरमुत्तों की भीड़ में खुल के उगना
इतना आसान नहीं हो पाता है

महीने भर का कूड़ा
कूड़ेदान में ही छोड़ना पड़ जाता है

कई कई दिनों तक मन मसोस कर
बन्द ढक्कन फिर खोला भी नहीं जाता है

दो चार गिनती के पके पकायों को पकाने का शौक
धरा का धरा रह जाता है

कूड़ेदान रखे रास्तों से निकलना कौन चाहता है
रास्ते फूलों से भरे एक नहीं बहुत होते हैं

खुश्बू लिखे से नहीं आती है अलग बात है
खुश्बू सोच लेने में कौन सा किसी की जेब से
कुछ कहीं खर्च हो जाता है

समय समय की बात होती है
कभी खुल के बरसने वाले से निचोड़ कर भी 
कुछ नहीं निकल पाता है

रोज का रोज हिसाब किताब करने वाला
जनवरी के बाद फरवरी निकलता देखता है
सामने ही मार्च के महीने को मुँह खोले हुऐ
सामने से खड़ा हुआ पाता है

कितने आशीर्वाद छिपे होते हैं
कितनी गालियाँ मुँह छुपा रही होती है
शब्दकोष में इतना कुछ है अच्छा है सारा कुछ
सब को हर समय समझ में एकदम से नहीं आ जाता है

चार लाईन लिख कर अधूरा छोड़ देना बहुत अच्छा है
समझने वाला 
पन्ने पर खाली जगह देख कर भी
समझ ले जाता है 

पता नहीं कब समझ में आयेगा उल्लू के पट्ठे ‘उलूक’ को

आदतन कुछ भी नहीं लिखे हुऐ को
खींच तान कर हमेशा
कुछ बन ही जायेगा की समझ लिये हुऐ बेशरम

कई दिनों के सन्नाटे से भी निकलते हुऐ
भौंपू बजाने से बाज नहीं आता है।

चित्र साभार: https://www.clipartmax.com/

सोमवार, 14 सितंबर 2015

‘उलूक’ का बुदबुदाना समझे तो बस बुखार में किसी का बड़बड़ाना है

ना किसी को
समझाना है
ना किसी को
बताना है

रोज लिखने
की आदत है
बही खाते में

बस रोज का
हिसाब किताब
रोज दिखाना है

किसी के देखने
के लिये नहीं
किसी के समझने
के लिये नहीं

बस यूँ हीं कुछ
इस तरह से
यहीं का यहीं
छोड़ जाना है

होना तो वही है
जो होना जाना है

करने वाले हैं
कम नहीं हैं
बहुत बहुत हैं
करने कराने
के लिये ही हैं
उनको ही करना है
उनको ही कराना है

कविता कहानी
सुननी सुनानी
लिखनी लिखानी
दिखना दिखाना
बस एक बहाना है

छोटी सी बात
घुमा फिरा कर
टेढ़े मेढ़े पन्ने पर
कलम को
भटकाना है

हिंदी का दिन है
हिंदी की बात को
हिंदी की भाषा में
हिंदी के ही कान में
बस फुसफुसाना है

आशा है
आशावाद है
कुछ भी नहीं है
जो बरबाद है

सब है बस
आबाद है

महामृत्युँजय
मंत्र का जाप
करते रहे
हिंदी को
समझाना है

‘उलूक’
अच्छा जमाना
अब शर्तिया
हिंदी का
हिंदी में ही
आना है ।


चित्र साभार: www.cliparthut.com

मंगलवार, 10 मार्च 2015

वो लेखा अधिकारी जो नहीं कोशिश करता है हिसाब किताब समझने की ज्यादा समय एक ही कुर्सी पर बिता ले जाता है

अधिकारी का
मतलब 
अधिकार
से ही 
होता
होगा शायद 

ऐसा महसूस
होता है 

और ऐसा नजर 
भी आता है 
पैसे का
हिसाब किताब 

करने वाले को 
लेखाधिकारी
कहा जाता है 

लेखाधिकारी का
बहुत 
कम संख्या
में पाये जाने 

का हिसाब समझ 
में नहीं आता है 
वैसे तो सरकार
की 
नजर लेकर
सरकारी आदमी ही 

कुर्सी पर बैठाया
जाता है 
पर
कभी कभी
हिसाब किताब 

की मजबूरियाँ
गैर सरकारी 

को भी कुर्सी पर
बैठा ले जाता है

‘उलूक’ की आँख
भी देखती है 
पैसे
का हिसाब किताब 

पैसा खाने खिलाने
में उसे 
भी बहुत
मजा आता है

हर अधिकारी
के कार्यकाल 

की अवधि अलग
अलग होती है 

लेकिन लेखाधिकारी
बहुत 
थोड़े समय में
यहाँ से वहाँ 

कर दिया जाता है 
लेखा का हिसाब
समझने  
वाले
का इतना छोटा 

कार्यकाल
क्यों होता है 

किसी से पूछने
पर भी 
पता
नहीं चल पाता है 

थोड़ी सी जासूसी
करने पर 
कुछ
कुछ कहीं खुला 

हुआ नजर आता है 
लेखाधिकारी आता है 
कोशिश करता है 
समझने की
हिसाब किताब को 

और जैसे ही
समझने वाले को 

पता चलता है
वो समझ गया 

तुरंत उसका
स्थानांतरण 

किसी दूसरी
जगह का 

हिसाब किताब
समझने 
के लिये
कर दिया जाता है ।

चित्र साभार: www.presentermedia.com

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

मुक्ति के मार्ग चाहने वाले के हिसाब से नहीं होते हैं

एक दिन के
पूरे होने से
जिंदगी बढ़ी
या कम हुई

ऊपर वाले के
यहाँ आवेदन
करने के
हिसाब से तो
अनुभव में
इजाफा
हुआ ही कहेंगे

नीचे वालों के
हिसाब से
देखा जाये
तो जगह
खाली होने के
चाँस बढ़ने
से दिन
कम ही होंगे

गणित जोड़
घटाने का
गणित के
नियमों के
हिसाब से
नहीं होगा

अपनी सुविधा
के हिसाब
से होगा
जो कुछ
भी होगा
या होना होगा

वैसे भी दिन
गिनने वाले
कम ही होते हैं

बाकी सारे
हिसाब किताब
के ऊपर
टाट रखकर
बैठे होते हैं

फर्क किसे
पड़ता है
थोड़ा भी

उनके हिसाब
किताब में
दिन आधे या
पूरे होते हैं

बाकी सभी
के लिये
मुक्ति के
कहीं भी
कोई भी
मार्ग
कहीं भी
नहीं होते हैं

सब मिलकर
काँव काँव
कर लेते हैं
एक ही
आवाज में

मजे की बात
है ना ‘उलूक’
जो कौए भी
नहीं होते हैं ।

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आयकर अधिकारी का निमंत्रण पत्र


आयकर अधिकारी 
ने
सूचना एक भिजवाई थी

आज ही के दिन की 
तारीख लगवाई थी

लिखा था

मिलने 
के लिये आ जाना 
जो भी पूछूंगा
यहाँ 
आकर बता जाना 

वेतनभोगी
का वेतन 
तो खाते मैं जाता है
जो भी होता है 
साफ नजर आता है 

आयकर तो नियोक्ता 
खुद
काट कर 
भिजवाता है

साल में
दो महीने का वेतन
आयकर में चला जाता है

खुशी होती है 
कुछ हिस्सा देश के 
काम में जब आता है 

समझ में
नहीं आता है 
ऎसे आदमी से 
वो और क्या नया 
पूछना चाहता है 

अरबों खरबों
के 
टैक्स चोर
घूम रहे हैं खुले आम 

उनसे
टकराने की हिम्मत तो
कोई नहीं कर पाता है 

माना कि
कोई कोई मास्टर
धंदेबाज भी हो जाता है 

वेतन
के अलावा के कामों में
लाखों भी कमाता है 

ट्यूशन की दुकान चलाता है
लाख रुपिये की कापियाँ
एक पखवाडे़ के अंदर ही जाँच ले जाता है 

उस आय से बीबी के गले में
हीरों का हार पहनाता है 

आयकर वाला
लगता है
शायद ऎसी बीबी को बस कुछ ऎसे ही 
देखता रह जाता है 
पूछ कुछ नहीं पाता है 

सड़क पर कोई 
बेशकीमती गाड़ी
दो दो भी दौड़ाता है 

बहुमंजिले
मकान पर मकान बनाता है 
अच्छा करता है 
कोई अगर तकिये के नीचे नोट छिपाता है 

उधर
पहुँचने पर
पेशी में पूछा जाता है 

कितना
राशन पानी दूध चीनी
तू हर महीने अपने घर को ले जाता है 

हिसाब किताब
लिख कर दे जाना 
अगली तारीख लगा दी है 

वो
मुस्कुराते हुवे जब बताता है

ईमानदारी
वाकई 
अभिशाप तो नहीं 

ऎसे समय में
लगने लग जाता है 

बेईमान
होने से ही 

शायद आदमी 
इन लफड़ों में
नहीं 
कभी फंस पाता है ।

चित्र साभार: 
https://in.finance.yahoo.com/