बिना
सोचे समझे
कुछ पर
कुछ भी
लिख देने
की आदत
लिख भी
दिया जाता है
कुछ भी
बात अलग है
कुछ दिनों बाद
फिर से
बार बार
कई बार
पढ़ने पर
उस कुछ को
खुद को भी
कुछ भी
समझ में
नहीं आता है
किसी को
लगने लगता है
शायद
सरल नहीं
कुछ गूढ़
कहा जाता है
कौऐ पर
मोर पंख
लगा दिया जाये
तो ऐसा ही
कुछ हो जाता है
और ऐसे में
अनजाने में
उससे पूछ
लिया जाता है
ऐसा प्रश्न
जिसे समझने
समझने तक
अलविदा कहने का
वक्त हो जाता है
और प्रश्न
प्रश्न वाचक चिन्ह
का पहरा
करते हुऐ जैसे
कहीं खड़ा रह जाता है
“जीवन कैसा होता है ?”
कुछ कहीं सुना हुआ
जैसा कुछ ऐसा
नजर आता है
जिसपर सोचना
शुरु करते ही
सब कुछ
उल्टा पुल्टा
होने लग जाता है
कुछ दिमाग में
जरूर आता है
थोड़ी सी रोशनी
भी कर जाता है
फिर सब वही
धुँधला सा
धूल भरा
नीला आसमान
भूरा भूरा हो जाता है
बताया भी
नहीं जाता है
कि सामने से कभी
एक परत दर परत
खुलता हुआ प्याज
आ जाता है
कभी
एक साबुन
का हवा में
फूटता हुआ
बुलबुला हो जाता है
कभी
भरे हुऐ पेटों
के द्वारा
जमा किया हुआ
अनाज की बोरियों का
जखीरा हो जाता है
क्या क्या नहीं
दिखने लगता है
सामने सामने
एक मरे शेर का
माँस नोचते कुत्तों
पर लगा सियारों का
पहरा हो जाता है
अरे
नहीं पता चल
पाया होता है
कुछ भी
‘उलूक’ को
एक चौथाई
जिंदगी गुजारने
के बाद भी
एक तेरे प्रश्न से
जूझते जूझते
रात पूरी की पूरी
अंधेरा ही
अंधेरे पर
सवार होकर
जैसे सवेरा
हो जाता है
फिर कभी
देखेंगे पूछ कर
किसी ज्ञानी से
“जीवन कैसा होता है”
सभी प्रश्नों का
उत्तर देना
किस ने कह दिया
हर बार बहुत ही
जरूरी हो जाता है
पास होना ठीक है
पर कभी कभी
फेल हो जाना भी
किसी की एक बड़ी
मजबूरी हो जाता है ।
चित्र साभार: http://ado4ever.overblog.com/page/2
सोचे समझे
कुछ पर
कुछ भी
लिख देने
की आदत
लिख भी
दिया जाता है
कुछ भी
बात अलग है
कुछ दिनों बाद
फिर से
बार बार
कई बार
पढ़ने पर
उस कुछ को
खुद को भी
कुछ भी
समझ में
नहीं आता है
किसी को
लगने लगता है
शायद
सरल नहीं
कुछ गूढ़
कहा जाता है
कौऐ पर
मोर पंख
लगा दिया जाये
तो ऐसा ही
कुछ हो जाता है
और ऐसे में
अनजाने में
उससे पूछ
लिया जाता है
ऐसा प्रश्न
जिसे समझने
समझने तक
अलविदा कहने का
वक्त हो जाता है
और प्रश्न
प्रश्न वाचक चिन्ह
का पहरा
करते हुऐ जैसे
कहीं खड़ा रह जाता है
“जीवन कैसा होता है ?”
कुछ कहीं सुना हुआ
जैसा कुछ ऐसा
नजर आता है
जिसपर सोचना
शुरु करते ही
सब कुछ
उल्टा पुल्टा
होने लग जाता है
कुछ दिमाग में
जरूर आता है
थोड़ी सी रोशनी
भी कर जाता है
फिर सब वही
धुँधला सा
धूल भरा
नीला आसमान
भूरा भूरा हो जाता है
बताया भी
नहीं जाता है
कि सामने से कभी
एक परत दर परत
खुलता हुआ प्याज
आ जाता है
कभी
एक साबुन
का हवा में
फूटता हुआ
बुलबुला हो जाता है
कभी
भरे हुऐ पेटों
के द्वारा
जमा किया हुआ
अनाज की बोरियों का
जखीरा हो जाता है
क्या क्या नहीं
दिखने लगता है
सामने सामने
एक मरे शेर का
माँस नोचते कुत्तों
पर लगा सियारों का
पहरा हो जाता है
अरे
नहीं पता चल
पाया होता है
कुछ भी
‘उलूक’ को
एक चौथाई
जिंदगी गुजारने
के बाद भी
एक तेरे प्रश्न से
जूझते जूझते
रात पूरी की पूरी
अंधेरा ही
अंधेरे पर
सवार होकर
जैसे सवेरा
हो जाता है
फिर कभी
देखेंगे पूछ कर
किसी ज्ञानी से
“जीवन कैसा होता है”
सभी प्रश्नों का
उत्तर देना
किस ने कह दिया
हर बार बहुत ही
जरूरी हो जाता है
पास होना ठीक है
पर कभी कभी
फेल हो जाना भी
किसी की एक बड़ी
मजबूरी हो जाता है ।
चित्र साभार: http://ado4ever.overblog.com/page/2