उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

करेगा कोई करे कुछ भी बता देगा वो उसी को एक साँस में और एक ही बार में

है कुछ भी
अगर पास तेरे
बताने को
क्यों रखता है
छिपा कर अपने
भेजे में संभाल के
देख ले क्या पता
कुछ हो ही जाये
कोशिश तो कर
छोटी सी ही सही
हिम्मत कर के
तबीयत से हवा में
ही ज्यादा नहीं तो
थोड़ा सा ही
ऊपर को उछाल के
तैरता भी रहेगा
माना कुछ कुछ
कुछ समय तक
समय की धार में
नहीं भी पकड़ेगा
कोई समझ कर
कबूतर का पंख
जैसा कुछ भी
अगर मान के
आकार में मिट्टी
या धूल का
एक गोला जैसा
ही कुछ देखेगा
कुछ देर के लिये
सामने अपनी
किसी दीवार के
खुश ही हो ले
दीवाना कोई
फुटबॉल ही समझ
लात मार कर
कहीं किसी गोल
में ले जा कर
ही डाल के
दो चार छ: आठ
बार में कुछ
करते करते
कई दिनों तक
कुछ हो ही जाये
यूँ ही कुछ कहीं
भी कभी एक दिन
किसी मंगलवार के
एक कहने वाला
कर जाये दो मिनट
में आकर बात फोड़
उस कमाल पर
करके धमाल
अपने जीभ की
तलवार की
तीखी धार के
तेरे कहने को
ना कहने से भी
होने जा रहा
कुछ नहीं है
निकलना है जब
तस्वीर का
उसके ही बोल
देने का
सब कुछ
पन्ने में
उसके ही किसी
अखबारों के
अखबार के
सोच ले ‘उलूक’
जमा करने पर
नहीं होना है
कुछ भी को
जमा कर लेने पर
कौड़ियों की सोच
का कोई खरीददार
नहीं मिलता है
इस जमाने की
दुकानों में
किसी भी
बाजार के ।

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com