कुछ अलग
ही अहसास
आज का
विशेष दिन
कुछ आजाद
आजाद से
हो रहे हों जैसे
सुबह सुबह से ही कुछ खयाल
उत्पाती बंदरों
का पता नहीं
कहीं दूर दूर तक
रोज की तरह
आज नहीं पहुँचे
घर पर करने
हमेशा की
तरह के
आम आदमी
की आदत में
शामिल हो चुके धमाल
शहर के स्कूल
के बच्चों की
जनहित याचिका
बँदरो के खिलाफ
असर दो दिन में
न्यायाधीश भी
बिना सोचे
बिना समझे
कर गया हो जैसे ये एक कमाल
दिन आजाद
गणों के तंत्र की
आजादी के
जश्न का
जानवर भी
हो गया
समझदार
दे गया
उदाहरण
इस बात का
करके गाँधीगिरी
और नहीं करके
एक दिन के लिये कोई बबाल
साँप सपेरों
जादूगरों
तंत्र मंत्र के
देश के गुलाम
आजादी के
दीवानों को ही
होगा सच में पता
बंद रेखा के
उस पार से
खुली हवा में
आना इस पार
जानवर से
हो जाना ग़ण
और मंत्र का
बदलना तंत्र में
और आजाद देश
मे आजाद ‘उलूक’ एक बेखयाल
उसके लिये
आजादी का
मतलब
बेगानी शादी और
दीवाना अब्दुल्ला हर एक नये साल
एक ही दाल
धनिये के
पीले पत्तों
को सूँघ कर
देख लेना होते हुऐ
हर तरफ माल और हर कोई मालामाल
बंदों का वंदे मातरम
तब से अब और
बंदरों का सवाल
तब के और अब के
समझदार को
इशारा काफी
बेवकूफों के लिये
कुर्सियाँ सँभाल
वंदे मातरम से
शुरु कर
घर की माँ को
धक्के मार कर घर से बाहर निकाल ।
चित्र साभार: nwabihan.blogspot.com
ही अहसास
आज का
विशेष दिन
कुछ आजाद
आजाद से
हो रहे हों जैसे
सुबह सुबह से ही कुछ खयाल
उत्पाती बंदरों
का पता नहीं
कहीं दूर दूर तक
रोज की तरह
आज नहीं पहुँचे
घर पर करने
हमेशा की
तरह के
आम आदमी
की आदत में
शामिल हो चुके धमाल
शहर के स्कूल
के बच्चों की
जनहित याचिका
बँदरो के खिलाफ
असर दो दिन में
न्यायाधीश भी
बिना सोचे
बिना समझे
कर गया हो जैसे ये एक कमाल
दिन आजाद
गणों के तंत्र की
आजादी के
जश्न का
जानवर भी
हो गया
समझदार
दे गया
उदाहरण
इस बात का
करके गाँधीगिरी
और नहीं करके
एक दिन के लिये कोई बबाल
साँप सपेरों
जादूगरों
तंत्र मंत्र के
देश के गुलाम
आजादी के
दीवानों को ही
होगा सच में पता
बंद रेखा के
उस पार से
खुली हवा में
आना इस पार
जानवर से
हो जाना ग़ण
और मंत्र का
बदलना तंत्र में
और आजाद देश
मे आजाद ‘उलूक’ एक बेखयाल
उसके लिये
आजादी का
मतलब
बेगानी शादी और
दीवाना अब्दुल्ला हर एक नये साल
एक ही दाल
धनिये के
पीले पत्तों
को सूँघ कर
देख लेना होते हुऐ
हर तरफ माल और हर कोई मालामाल
बंदों का वंदे मातरम
तब से अब और
बंदरों का सवाल
तब के और अब के
समझदार को
इशारा काफी
बेवकूफों के लिये
कुर्सियाँ सँभाल
वंदे मातरम से
शुरु कर
घर की माँ को
धक्के मार कर घर से बाहर निकाल ।
चित्र साभार: nwabihan.blogspot.com