उलूक टाइम्स

मंगलवार, 16 जून 2015

कब्ज पेट का जैसा दिमाग में हो जाता है बात समझ से बाहर हो जाती है

पेट में
कब्ज हो
बात
चिकित्सक
के समझ में
भी आती है

दवायें
भी होती हैं
प्राकृतिक
चिकित्सा
भी की जाती है

परेशानी का
कारण है
इससे भी
इंकार
नहीं किया
जा सकता है

बात
खुले आम
नहीं भी
की जाती है

पर
कभी कभी
किसी किसी
के बीच
विषय बन कर
बड़ी बहस
के रुप में
उभर कर
सामने से
आ जाती है

गहन
बात है
तभी तो
‘पीकू’ जैसी
फिल्म में तक
दिखाई जाती है

जतन
कर लेते है
करने वाले भी

फिर भी
किसी ना
किसी तरह
सुबह उठने के
बाद से लेकर
दिन भर में
किसी ना किसी
समय निपटा
भी ली जाती है

ये सब
पढ़ कर
समझता है
और
समझ में आता
भी है एक
जागरूक
सुधि पाठक को

यहीं पर
‘उलूक’
की बक बक
पटरी से
उतरती हुई
भी नजर
आती है

बात
कब्ज से
शुरु होती है

वापस
लौट कर
कब्ज पर ही
आ जाती है

प्रश्न
उठ जाये
अगर किसी क्षण
दिमाग में हो रहे
कब्ज की बात
को लेकर

बड़ी
अजीब सी
स्थिति हो जाती है

लिख लिखा
कर भी
कितना
निकाला जाये

क्या
निकाला जाये

उम्र के
एक मोड़
पर आकर

अपने
आस पास
में जब
कोई नई बात
समझने के लिये
नहीं रह जाती है ।

चित्र साभार: www.dreamstime.com