उलूक टाइम्स

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

अंदर कुछ और और लिखा हुआ कुछ और ही होता है


सोच कर 
लिखना 
और 
लिख कर 
लिखे पर 
सोचना 

कुछ 
एक 
जैसा ही 
तो 
होता है 

पढ़ने वाले 
को तो बस 
अपने 
लिखे का 
ही 
कुछ 
पता होता है 

एक 
बार नहीं 
कई 
बार होता है 
बार बार होता है 

कुछ 
आता है
यूूँ ही खयालों में 

खाली दिमाग 
के 
खाली पन्ने 
पर 
लिखा हुआ 
भी तो 
कुछ 
लिखा होता है 

कुछ 
देर के लिये 
कुछ 
तो कहीं 
पर 
जरूर होता है 

पढ़ते पढ़ते ही 
पता नहीं 
कहाँ 
जा कर 
थोड़ी सी 
देर में ही 

कहाँ जा कर 
सब कुछ 
कहीं खोता है 

सबके 
लिखने में 
होते हैं गुणा भाग 

उसकी 
गणित 
के 
हिसाब से 
अपना 
गणित खुद पढ़ना 
खुद सीखना 
होता है 

देश में लगी 
आग 
दिखाने के लिये 
हर जगह होती है 

अपनी 
आँखों का 
लहू 
दूसरे की 
आँख में 
उतारना होता है 

अपनी बेशरमी
सबसे बड़ी 
शरम होती है 

अपने लिये 
किसी 
की 
शरम का 
चश्मा 
उतारना 
किसी 
की 
आँखों से 


कर सके कोई 
तो 
लाजवाब होता है 

वो 
कभी लिखेंगे 
जो लिखना है वाकई में 

सारे 
लिखते हैं 
उनका खुद का 
लिखना 
वही होता है 


जो कहीं भी 
कुछ भी 
लिखना ही नहीं होता है 

कपड़े ही कपड़े 
दिखा रहा होता है 
हर तरफ ‘उलूक’ 
बहुत फैले हुऐ 
ना पहनता है जो 
ना पहनाता है 

जिसका 
पेशा ही 
कपड़े उतारना होता है 

खुश दिखाना 
खुद को 
उसके पहलू में खड़े हो कर 
दाँत निकाल कर 
बहुत ही 
जरूरी होता है 

बहुत बड़ी 
बात होती है 
जिसका लहू चूस कर 
शाकाहारी कोई 

लहू से अखबार में 
तौबा तौबा 
एक नहीं 
कई किये होता है 

दोस्ती 
वो भी 
फेसबुक 
की करना 
सबके 
बस में कहाँ होता है 

इन सब को 
छोड़िये 
सब से 
कुछ अलग 
जो होता है 

एक 
फेस बुक का 
एक अलग
पेज हो जाना
होता है । 

चित्र साभार: www.galena.k12.mo.us