सब कुछ
एक साथ
नहीं दौड़ता है
टाँगें
कलम हो जायें
बहुत कम होता है
वजूका
खेत के बीच में
भी हो सकता है
कहीं किनारे पर
बस यूँ ही खड़ा
भी किया होता है
कहने लिखने को
रोज हर समय
कुछ ना कुछ
कहीं किसी
कोने में
जरूर होता है
लिखे हुऐ
सारे में से
जान बूझ कर
नहीं लिखा गया
कहीं ना कहीं
किसी पंक्ति
के बीच से
झाँक रहा होता है
समुन्दर
लिख लेने
के बाद
नदी लिखने
का मन
किसी का
होता होगा
पता कहाँ
चलता है
कलम की
पुरानी
स्याही को
नाले के पास
लोटे में धोना
और फिर
चटक धूप में
सुखा कर
नयी स्याही
भर लेना
एक पुराना
मुहावरा
हो चुका
होता है
नये मुल्ले
और
प्याज पर
लिखने से
दंगा भड़कने
का अंदेशा
हो रहा
होता है
रोज के
रोजनामचे
को लिखने
वाले ‘उलूक’
का दिल
साप्ताहिक
हो लेने
पर भी
बाग बाग
हो रहा
होता है
लिखना
लिखाना
और
उस पर
टिप्पणी
पाने की
लालसा पर
हमेशा
की तरह
नये सिपाही
का बंदूक
तानने पर
अपनी
पुरानी
जंक लगी
बन्दूक से
खुद का
फिर से
सामना
हो रहा
होता है
अपना लिखना
अपने लिखे को
अपना पढ़ लेना
समझ में आ जाना
सालों साल में
पुराने प्रश्न से
जैसे नया
सामना हो
रहा होता है ।
एक साथ
नहीं दौड़ता है
टाँगें
कलम हो जायें
बहुत कम होता है
वजूका
खेत के बीच में
भी हो सकता है
कहीं किनारे पर
बस यूँ ही खड़ा
भी किया होता है
कहने लिखने को
रोज हर समय
कुछ ना कुछ
कहीं किसी
कोने में
जरूर होता है
लिखे हुऐ
सारे में से
जान बूझ कर
नहीं लिखा गया
कहीं ना कहीं
किसी पंक्ति
के बीच से
झाँक रहा होता है
समुन्दर
लिख लेने
के बाद
नदी लिखने
का मन
किसी का
होता होगा
पता कहाँ
चलता है
कलम की
पुरानी
स्याही को
नाले के पास
लोटे में धोना
और फिर
चटक धूप में
सुखा कर
नयी स्याही
भर लेना
एक पुराना
मुहावरा
हो चुका
होता है
नये मुल्ले
और
प्याज पर
लिखने से
दंगा भड़कने
का अंदेशा
हो रहा
होता है
रोज के
रोजनामचे
को लिखने
वाले ‘उलूक’
का दिल
साप्ताहिक
हो लेने
पर भी
बाग बाग
हो रहा
होता है
लिखना
लिखाना
और
उस पर
टिप्पणी
पाने की
लालसा पर
हमेशा
की तरह
नये सिपाही
का बंदूक
तानने पर
अपनी
पुरानी
जंक लगी
बन्दूक से
खुद का
फिर से
सामना
हो रहा
होता है
अपना लिखना
अपने लिखे को
अपना पढ़ लेना
समझ में आ जाना
सालों साल में
पुराने प्रश्न से
जैसे नया
सामना हो
रहा होता है ।