उलूक टाइम्स

शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

मूल्याँकन का मूल्याँकन

दो सप्ताह से व्यस्त
नजर आ रहे थे
प्रोफेसर साहब
मूल्याँकन केन्द्र पर
बहुत दूर से आया हूँ
सबको बता रहे थे
कर्मचारी उनके बहुत ही
कायल होते जा रहे थे
कापियों के बंडल के बंडल
मिनटों में निपटा रहे थे
जाने के दिन जब
अपना पारिश्रमिक बिल
बनाने जा ही रहे थे
पचास हजार की
जाँच चुके हैं अब तक
सोच सोच कर खुश
हुऎ जा रहे थे
पर कुछ कुछ परेशान
सा भी नजर आ रहे थे
पूछने पर बता रहे थे
कि देख ही नहीं पा रहे थे
एक देखने वाले चश्में की
जरूरत है बता रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र के प्रभारी
अपना सिर खुजला रहे थे
प्रोफेसर साहब को अपनी राय
फालतू में दिये जा रहे थे
अपना चश्मा वो गेस्ट हाउस
जाकर क्यों नहीं ले आ रहे थे
भोली सी सूरत बना के
प्रोफेसर साहब बता रहे थे
अपना चश्मा वो तो पहले ही
अपने घर पर ही भूल कर
यहाँ पर आ रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र प्रभारी
अपने चपरासी से
एक गिलास पानी ले आ
कह कर रोने जैसा मुँह
पता नहीं क्यों बना रहे थे !