उलूक टाइम्स: मूल्याँकन
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रविवार, 9 दिसंबर 2018

पूरे साल का खाता बही फिर से याद आ रहा है देश तो सागर है ‘उलूक’ के कोटर एक नाली की बातें हैं रहने दीजिये काहे परेशान होना है मत झाँकिये

नियमावली
जरूर छापिये

 मोती जैसे
अक्षरों में
छपे हुऐ पन्ने

घर घर में
हर एक को
जा जा
कर बाँटिये

करा क्या है
किस ने आकर
किससे और
क्यों पूछना है

कुछ
अपने जैसों के
साथ मिल कर

 नियमों की
धज्जियाँ टाँकिये

मूँछों हों तो
ताव दीजिये

नहीं हों तो
खाँचे में मूँछ के

अँगुलिया
फेर घुमा
चिढ़ा चिढ़ा
कर मौज काटिये

बहुत ज्यादा
गधा गधा
मत बाँचिये

गधों
की अब
तरक्की
कर ही डालिये

घोड़े
पुकार कर
उनकी खुशी में

 उनके
साथ साथ
खुद भी नाँचिये

अपने
हिसाब के
आस पास के
किसी अस्तबल के

चक्रानुक्रमानुसार

तख़्त-ए-ताऊस छाँटिये

तीन साल तक
लगातार
घोड़े बना चुके
अपने अपने
गधों को
लम्बी दौड़ के
घोड़े बाँटिये

किसी से
चिढ़ हो
उसको
तीन टाँग टूटे
गधे की नकेल
थमा कर

घोड़ों की दौड़ में
शामिल होने का
आदेश थमा कर

 उसके गिरने की
खबर दौड़ से
पहले छापिये

लिखने लिखाने से
किसलिये भागना
मत भागिये
कुछ भी लिखिये
गिनतियों से
लिखे लिखाये को
जरूर नापिये

गिनना
बहुत जरूरी है
कितना लिख गये
गिनती नहीं आती
कोई बात नहीं
बगले मत झाँकिये

पैमाना
कोई होना
जरूरी है
मयखाने में
आने जाने
वालों के
जूते चप्पलों
की लम्बाई
ले कर ही सही
 मगर
 कुछ तो नापिये

रंग देखिये
रंग समझिये
रंग से झुड़े
करतबों के
ढंग समझिये

सरदार की
कठपुतलियाँ
बिना डोर के
पगलायी हुयी

अपने
आसपास
की समझिये

 सरदार
को ही
बस खाली
एक अखबार
की खबर
पढ़ कर
मत डाँठिये

समझिये
बड़े घपले
के पर्दे होते हैं
छोटे छोटे
भ्रष्टाचार के
सुर्खियों से भरे
समाचार
थोड़ा सा रुकिये
इतनी जल्दी मत हाँफिये

पूरे के पूरे सड़े
हुऐ कद्दू के
एक बीज के
सड़े होने की
खबर को लेकर
पुतला फूँकने
के लिये मत भागिये

‘उलूक’
की बड़बड़
पूरे साल की
कोई नयी बात नहीं है

दो हजार उन्नीस में
मिलने वाला है
यहाँ कोई ईनाम
किसी एक को

उधर की ओर ताकिये

ईवीएम नहीं होगी
इस के लिये यहाँ

 कुछ और जुगाड़
करना पड़ेगा

नेटवर्किंग
का जमाना है
नेटवर्किंग
के पर्फेक्ट
वर्किंग के लिये
अपने अपने वोट
कहाँ है जरा भाँपिये

अंत में सुझाव-ए-उलूक

पढ़े लिखे
बुद्धिजीवी से
उम्मीद मत रखिये
उसका दिमाग भी
एक बड़ा सा
पेट होता है

कुछ
बुद्धिजीवी
चने हो
आपके पास
तो बाँटिये ।

चित्र साभार: http://personligutvecklingcentrum.se

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

परीक्षा उत्तर पुस्तिका की आत्मा की कथा यानी उसके भूत की व्यथा

मास्टर होने
के कारण
कभी कभी
अपने हथियारों
पर नजर
चली ही
जाती है
पेन पेंसिल
किताब कापी
चौक ब्लैक बोर्ड
आदि में सबसे
महत्वपूर्ण
छात्र छात्राओं
की परीक्षा
उत्तर पुस्तिका
ही बस एक
नजर आती है
और जैसे ही
किसी दिन
अखबार या
दूरदर्शन में
कोई कापी
की खबर
सामने से
आ जाती है
अपनी ही
दुखती रग
जैसे
उधड़ कर
दुखना शुरु
हो जाती है
उत्तर पुस्तिका
तेरी कहानी
भी कोई
छोटी मोटी
नहीं होती है
तेरे छपने
के ठेके से
शुरु होती है
मुहर लग कर
सजा सँवर कर
लिखने वाले
तक पहुँचती है
लिखता भी है
लिखने वाला
पहरे में
डाकू जैसे
कक्ष निरीक्षकों
के सामने
दो से लेकर
तीन सौ
मिनट लगा कर
उसे कहाँ
पता होता है
किसी
मूल्याँकन केंद्र
नामक ठेके
पर जा कर
बड़ी संख्या में
बड़े पैसे में
बिकती है
किस्मत होती
है उसकी
अगर कोई
मास्टर उसे
जाँच पाता है
देखिये
जरा कुछ जैसे
आज का
एन डी टी वी
चपरासियों
और बाबुओं
से उनको
कहीं जाँचता
हुआ अपने
देश में ही
कहीं
दिखाता है
लोग बात
करते हैं
भ्रष्ठ होने
दिखने वाले
लोगों की
असली
सफेदपोश
इसी तरह के
शिक्षा के काले
व्यापार करने
वालों को
समाज लेकिन
भूल जाता है
जूते की माला
पहनने लायक
अपनी काली
करतूतों को
अपने मूल्यों
के भाषणों की
खिसियाहट में
छिपा ले जाता है
देखिये
इधर भी
कुछ जनाब
देश के
कर्णधार
हैं आप ही
करोंड़ों
अरबों के
इस काले धंधे
के व्यापार में
बिना सबूतों के
क्या क्या कर
दिया जाता है ।

चित्र साभार: examination paper : owl and pencil

मंगलवार, 25 मार्च 2014

अब उसे भी क्या समझना जिसे एक बेवकूफ तक समझता है



किसी
के

कुछ 

कहे को

समझने 
के लिये

कहीं जाना 

और
जा कर 

समझने
की 
कोशिश करना 

समझ
में
आ 
गया
कुछ
की 

गलतफहमी
हो 
जाने
को
समझ कर 

समझे
हुऐ पर 

कुछ
कहने
की 
हिम्मत करना


सब के
बस की 

बात
नहीं होती है 

अपनी बात
कहने 
में
ही

बहुत जोर 
लगाना पड़ता है 

कम से कम 
किसी एक
समझने 
वाले
को

कहे हुए
को 
समझने
के लिये 

उसके बाद

कहीं से 
बुलाना
भी
पड़ता है 

कहने
की आदत 
हो जाने
के बाद 

कोई
कहाँ
कहीं 
किसी के लिये 
रुकता है 

उसे
तो बस 
कह
देना होता है 

कोई फर्क
किसी को 
कहीं भी
नहीं
पड़ता है 

कहता रहे
कोई 

ये
तो इसकी 
हमेशा
की
आदत है 

कुछ
भी नहीं 
कर
सकता है 

इसलिये
कुछ 
ना कुछ

कहीं
भी 
जा कर
बक देता है 

इस
तरह के 
लोगों से

हर कोई 
कन्नी
काटता है 

उसके
नजदीक भी 
नहीं
फटकता है 

ये बात
तब
और 
महत्वपूर्ण
हो 
जाती है

जब 
किसी तरह के 
किसी चीज
के 

मूल्याँकन
करने वाले 
दल के
आने का 
पता
चलता है 

जिसे
किसी
चीज के 
बारे में

एक भी
सच 
नहीं
बताना होता है 

जितना
हो सके 
उतना

झूठ का 
अँबार
लगाना होता है 

बहुत कुछ
जो कहीं 
भी
नहीं होता है 

वही
और वही 
बस
बताना
और 
समझाना होता है 

उलूक
 दूर रखना 
होता है

तेरे जैसे 
समझने समझाने 
वालों को
हमेशा 

जब भी
कोई 
पंडाल
कोई मजमा 
तेरे
अपने ही 
घर पर लगता है 

समझ में
आ गया 
किसी को
कुछ अगर 

समझा कर 

कोई

कोई
ए++ 

कोई
बी
कोई
बी++ 


सोचने
समझने
के 
बाद

ऐसे ही 
नहीं
रखता है ।

शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

मूल्याँकन का मूल्याँकन

दो सप्ताह से व्यस्त
नजर आ रहे थे
प्रोफेसर साहब
मूल्याँकन केन्द्र पर
बहुत दूर से आया हूँ
सबको बता रहे थे
कर्मचारी उनके बहुत ही
कायल होते जा रहे थे
कापियों के बंडल के बंडल
मिनटों में निपटा रहे थे
जाने के दिन जब
अपना पारिश्रमिक बिल
बनाने जा ही रहे थे
पचास हजार की
जाँच चुके हैं अब तक
सोच सोच कर खुश
हुऎ जा रहे थे
पर कुछ कुछ परेशान
सा भी नजर आ रहे थे
पूछने पर बता रहे थे
कि देख ही नहीं पा रहे थे
एक देखने वाले चश्में की
जरूरत है बता रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र के प्रभारी
अपना सिर खुजला रहे थे
प्रोफेसर साहब को अपनी राय
फालतू में दिये जा रहे थे
अपना चश्मा वो गेस्ट हाउस
जाकर क्यों नहीं ले आ रहे थे
भोली सी सूरत बना के
प्रोफेसर साहब बता रहे थे
अपना चश्मा वो तो पहले ही
अपने घर पर ही भूल कर
यहाँ पर आ रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र प्रभारी
अपने चपरासी से
एक गिलास पानी ले आ
कह कर रोने जैसा मुँह
पता नहीं क्यों बना रहे थे !

शनिवार, 30 जून 2012

मूल्याँकन


हेलो हेलो हेलो

बोलो जी बोलो

परीक्षा मूल्याँकन
का काम
ऊपर
से
विशेष आपके
लिये ही
आया है

तीन तीन सौ
कापियों के पूरे
बीस
बंडलों का लौट
हमने अभी
ट्रक से
उतरवाया है

तुरंत उठवा के 
यहां से ले जाइये
सात दिन के अंदर
जांच के हमको
वापस भिजवाइये

किस
प्रश्नपत्र की हैं
कोई अंदाज हो 
तो हमें जरा बताइये

सूरदास तुलसीदास
टाईप की लगती हैं 
हिन्दी की हैं
यही 
मान ले जाइये

जनाब
हिन्दी की
कैसे जाँच पाऊंगा
गैर कानूनी काम है
कहीं
फंस फंसा तो
नहीं मैं जाउंगा
फिर
किसको अपना
मुँह दिखा पाउंगा

डरने
की जरूरत
बिलकुल नहीं है जनाब
सब लोग हम है
मजबूती से एक
दूसरे के पक्का साथ

जल्दी
परीक्षाफल
अगर निकाल ले जायेंगे

अपने लिये ना सही
अपने साहब के लिये
कोई
तमगा कहीं से
तो
एक बटोर लायेंगे

इसलिये
दिमाग हमने
बहुत लगाया है

जिसका
विषय जो है
उसकी कापियों
को
किसी और को जाँचने
के लिये
भिजवाया है

किसने
क्या लिखा है
अगर समझ में 
ही
नहीं आयेगा

परीक्षक
झक मारकर
कापी अंदर से देखने
का काम
नहीं बढ़ायेगा

बाहर से ही
अंक
कुछ तो
टिका ले ही जायेगा 

हमारा
काम भी 
फटाफट हो जायेगा

कौन
पूछ रहा है फिर
पेमेंट
भी आपका
हाथों हाथ जब 
हो ही
जायेगा।