दो सप्ताह से व्यस्त
नजर आ रहे थे
प्रोफेसर साहब
मूल्याँकन केन्द्र पर
बहुत दूर से आया हूँ
सबको बता रहे थे
कर्मचारी उनके बहुत ही
कायल होते जा रहे थे
कापियों के बंडल के बंडल
मिनटों में निपटा रहे थे
जाने के दिन जब
अपना पारिश्रमिक बिल
बनाने जा ही रहे थे
पचास हजार की
जाँच चुके हैं अब तक
सोच सोच कर खुश
हुऎ जा रहे थे
पर कुछ कुछ परेशान
सा भी नजर आ रहे थे
पूछने पर बता रहे थे
कि देख ही नहीं पा रहे थे
एक देखने वाले चश्में की
जरूरत है बता रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र के प्रभारी
अपना सिर खुजला रहे थे
प्रोफेसर साहब को अपनी राय
फालतू में दिये जा रहे थे
अपना चश्मा वो गेस्ट हाउस
जाकर क्यों नहीं ले आ रहे थे
भोली सी सूरत बना के
प्रोफेसर साहब बता रहे थे
अपना चश्मा वो तो पहले ही
अपने घर पर ही भूल कर
यहाँ पर आ रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र प्रभारी
अपने चपरासी से
एक गिलास पानी ले आ
कह कर रोने जैसा मुँह
पता नहीं क्यों बना रहे थे !
नजर आ रहे थे
प्रोफेसर साहब
मूल्याँकन केन्द्र पर
बहुत दूर से आया हूँ
सबको बता रहे थे
कर्मचारी उनके बहुत ही
कायल होते जा रहे थे
कापियों के बंडल के बंडल
मिनटों में निपटा रहे थे
जाने के दिन जब
अपना पारिश्रमिक बिल
बनाने जा ही रहे थे
पचास हजार की
जाँच चुके हैं अब तक
सोच सोच कर खुश
हुऎ जा रहे थे
पर कुछ कुछ परेशान
सा भी नजर आ रहे थे
पूछने पर बता रहे थे
कि देख ही नहीं पा रहे थे
एक देखने वाले चश्में की
जरूरत है बता रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र के प्रभारी
अपना सिर खुजला रहे थे
प्रोफेसर साहब को अपनी राय
फालतू में दिये जा रहे थे
अपना चश्मा वो गेस्ट हाउस
जाकर क्यों नहीं ले आ रहे थे
भोली सी सूरत बना के
प्रोफेसर साहब बता रहे थे
अपना चश्मा वो तो पहले ही
अपने घर पर ही भूल कर
यहाँ पर आ रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र प्रभारी
अपने चपरासी से
एक गिलास पानी ले आ
कह कर रोने जैसा मुँह
पता नहीं क्यों बना रहे थे !
चश्में का चक्कर गजब, अजब कापियां जाँच |
जवाब देंहटाएंचश्मा जाँचेगा नहीं, टेढा आँगन नाच |
टेढा आँगन नाच, कहीं पर मुर्गी अंडा |
देता नम्बर सौ, कहीं पर खींचे डंडा |
अटकी जब पेमेंट, लगें भरी सब रश्में |
बिन चश्मे हैरान, बहाते पानी चश्में ||
अटकी जब पेमेंट, पड़ें भारी सब रश्में |
हटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST: माँ,,,
सुशील जी ,आगे की कुछ और सुनाईये,एक भाई कहीं कापी जाचने गए थे ,दो दिन बाद उन्हें पता चला की जिन कापिओं को वो जाँच चुके है वो उनके विषय की है हीं नहीं ,दक्षिणा भी मस्त मिल गई और गुरूजी की तो .........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (14-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
कुछ तो चारपाई पे बैठ जांचते हैं कापियां ,
जवाब देंहटाएंहवा में उछालते हैं एक बंडल कापियां ,
जो चारपाई पे आ जाएँ ,वो पास .
जो रह जाएं वह फेल .
कोर्पोरेट सेकटर में वक्त का देखो खेल ,
स्पोट इवेल्युएशन बे -मेल
सुशील सर बेहद सुन्दर रचना रची है बधाई हो बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर और सटीक रचना |
जवाब देंहटाएंवाह: बहुत सटीक और सुन्दर रचना..सु्शील जी..
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया.....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
जवाब देंहटाएंइटली का दामाद बना भारत का जीजा ......पूरी कीजिए हुज़ूर .अपेक्षा है बाबू आपसे .
विचार कणिकाएं भी .क्षणिकाएं भी .कुछ भी में इसे ढालिए
बहुत बढ़िया और सटीक...
जवाब देंहटाएंभाई साहब आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए आभार .
जवाब देंहटाएंभारी भरकम मूल्यांकन ...
जवाब देंहटाएंबधाई आपको !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (01-11-2014) को "!! शत्-शत् नमन !!" (चर्चा मंच-1784) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
GAJAB ..DHAN LOLUPATA ...
जवाब देंहटाएं'मूल्याँकन का मूल्याँकन' अपने अतिरेक में यह एक आंशिक किन्तु भयावह सच्चाई है............
जवाब देंहटाएंShabd teer sa kaske maara hai...umda prastuti...!!
जवाब देंहटाएंThanks For Sharing this......
जवाब देंहटाएं