उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

हिम्मत कर छाप

कुछ
सोचते हैं
कुछ
छांटते हैं
फिर
छलनी से
उठा कुछ
छापते हैं
क्योंकि
सच
छन जाते हैं
छोटे होते हैं
छनित्र में
चले जाते हैं

चलिये
करते हैं कुछ
उलटफेर
थोड़ा अंधेर

सभी
करना करें
शुरू
स्टेटस अपडेट
छलनी से नहीं
छनित्र से
उठा
दें कुछ
छाप यहां
बिना किसी
लाग लपेट

बबाल शुरू
हो जायेंगे
बगलें
झांकते हुवे
एक एक कर
ज्यादातर
फरमायेंगे
गलत चीजें
यहां छापी
जा रही हैं
संविधान की
फलाँ फलाँ
धारा बेशरमी
से लाँघी
जा रही है

एक सच
को
बता कर
स्पैम
रिपोर्ट
फटाफट
कर दी
जायेगी
पोस्ट
तुरन्त
डीलिट कर
सूचना
प्रसारित
की जायेगी

हो गयें है
प्रोफाईल
चोरी
चोर हैं जो
छाप
रहे हैं
अपने ही
अंदर की
कमजोरी ।

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

आईना

आज एक लम्बे
अर्से के बाद
पता नहीं कैसे मैं
जा बैठा घर के
आईने के सामने
मेरे दिमाग की तरह
आईने ने कोई अक्स
नहीं दिखलाया
मैं थोड़ा घबराया
नजर को फिराया
सामने कैलेण्डर में
तो सब नजर
आ रहा था
तो ये आईना
मुझसे मुझको
क्यों छिपा रहा था
सोचा किसी को बुलाउं
आईना टेस्ट करवाउं
बस कुता भौंकता
हुवा आया थोडा़ ठहरा
फिर गुर्राया जब
उसने अपने को आईने
के अंदर भी पाया
मुझे लगा आईना
भी शायद समय
के सांथ बदल रहा होगा
इसी लिये कबाड़ का
प्रतिबिम्ब दिखाने से
बच रहा होगा
विज्ञान का हो भी
सकता है ऎसा
चमत्कार
जिन्दा चीजों का ही
बनाता हो आईना
इन दिनो प्रतिबिम्ब
और मरी हुवी चीजों
को देता हो चेतावनी
कि तुम अब नहीं हो
कुछ कर सकते हो
तो कर लो अविलम्ब।

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कुछ कहो

बस दो चार ही
लोग गांव के
अब कुछ
अपने जैसे
नजर आते हैं
सड़क और गली
की बात मगर
कुछ और ही
दिखाई देती है
सारे ही कुत्ते
सामने पा कर
जोर जोर से
अपनी पूंछे
हिलाते हैं
फिर भी समझ
नहीं पाते हैं
पागलखाने के
डाक्टर साहब
को अब भी
नार्मल ही
नजर आते हैं
हां लोग देख
कर थोड़ा सा
अब कतराते हैं
बहुमत साथ ना
होने का फायदा
हमेशा पार्टी के
लोग उठाते हैं
फुसफुसा कर ही
करते हैं बात भी
मोहल्ले वाले
फिर गया दिमाग
कहते तो नहीं हैं
बस सोच कर
सामने सामने से
ही मुस्कुराते हैं
कुछ तो समझाओ
'उलूक' जमाने को
पागल खाने के डाक्टर
ऐसे लोगों को ऐसे में भी
मुहँ 
क्यों नहीं लगाते हैं?

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

होश

एक खामोश
कब जिंदगी
के आगोश
में मदहोश
हो जायेगा
ये होश में
रहने वाला
ही बता
पायेगा

बेहोश
लोगों 
के
शब्दकोश

में आक्रोश
नहीं होता
एक सरफरोश
कभी अहसान
फरामोश

नहीं होता
परहोश
भले ही

हो जायेगा
लेकिन
कभी भी

लच्छेदार
बातों 
में
नहीं आयेगा

बेहोश
करने 
वाले
होश में

योजनाऎं
बना

मदहोश
लोगों 
के
साथ फिर

एक बार
आ रहे हैं
परहोश
करने

लेकिन
इस 
बार
पाला

उल्टा पड़
जायेगा
बेहोश
जल्दी 
ही
इस बार

फिर से
होश 
में
आ जायेगा

ऎसा हसीन
सपना जब
किसी दिन
किसी 
को
आयेगा

उस दिन
वाकई

सवेरा हो
जायेगा

अंधेरे का
व्यापारी

कुछ भी नहीं
समझ पायेगा
और बेहोश
हो जायेगा।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

शर्म

शर्म होती है
या
कहते हैं शरम
फर्क पड़ता है
क्या
कर लेते हैं
शरम का ही
चलो भरम
शरम नहीं
आती है तो
बन जाते हैं
सभी होने ना
होने वाले काम
शरमाने वाले को
तो लगता है
हो गया हो
जैसे
खतरनाक जुखाम
वो जुखाम को देखे
या करवाले
अपने कोई काम
आपको आती है क्या
आती है तो अभी
भी सम्भल जाइये
कुछ तो सीख लीजिये
शरमाना तो
कम से कम
भूल ही जाइये
जिसने की शरम
उसके फूटे करम
आपसे कोई कभी
नहीं कह पायेगा
आपकी हो
जायेगी चाँदी
पांचों अंगुलियां
होंगी घी में                
और
सर कढ़ाई
में डूब जायेगा
जनज्वार वाले
लगे हैं एक
खबर पढ़वाने में
जोर लगा रहे हैं
डाक्टरों के शर्माने में
अरे छोड़ भी
दीजिये जनाब
किस किस
को शरमाना
इस जमाने
में सिखायेंगे
ज्याद किया
तो खुद ही
शरमाना
भूल जायेंगे
मास्टरों ने
छोड़ दिया
कब से
शरमाना
डाक्टर भी
अब नहीं
शरमा रहा
मिल गया ना
आप को
एक बहाना
चलिये बताइये
या
कुछ गिनवाइये
कितनो को
आ रही है
इस देश में
इस समय शरम
नहीं गिनवा
पा रहे तो
करवा ही लिजिये
चलिये चुनाव
शरम आती है
या नहीं आती है
अब तो पता ही
नहीं लग पाता
लोकतंत्र है
शरमाता या
अन्ना को ही
आनी चाहिये
कुछ तो शरम
ये शरम भी ना
अब बड़ी
अजीब ही
होने लगी है
जिसको आती है
उसको हर जगह
मार खिलवाती है
जिसको नहीं आती
उसके पीछे पता नहीं
क्यूं खामखां पब्लिक
झाडू़ ले के पड़ जाती है ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com