उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

फिल्म देखना गुनाह

फिर से शुरू कर दिया ना आपने वही शोर मचाना
छोटी सी बात को लेकर बड़ा सा हल्ला बनाना

अब तो बाज भी आ जाओ शर्म करो थोड़ा सा तो शर्माओ

क्या हो गया 
तीन मंत्री थे
देख रहे थे अपने मोबाइल में तस्वीरें ही तो कुछ
आप दुखी हो रहे हों या हो गये टी वी पै देख खुश

अच्छी पार्टी के अच्छे लोग बताये जाते हैं दिखाये जाते हैं
बुरी पार्टी के बुरे लोग बताये जाते हैं दिखाये जाते हैं
सबूत भी लाये जाते हैं फंसाये भी जाते हैं
जेल में दिखाये भी जाते हैं

खेल होते होते पुराने हो गये हैं
पहले मैदान में हो जाया करते थे
दर्शक होते थे ताली भी बजाया करते थे

सूचना क्रांति का अब जमाना भी है
खेल करना है तो विधान सभा में तो जाना ही है

हर जगह माल परोसा जा रहा है
कोई दुकान में सीधे
तो कोई दुकान के पीछे पर्दे में खा रहा है

दुकान के पीछे खाने वाला ज्यादा हल्ला मचा रहा है
अरे खा गया देखो खा गया खुले आम खा गया
अपनी प्लेट पीछे छिपा के सामने वाले को सीन दिखा रहा है

अब जब 
मेरे छोटे से स्कूल का चपरासी भी चटकारे ले कर हमें सुना रहा है
उसका साहब तो बरसों से देखता आ रहा है
कोई कैमरे वाला उसको क्यों नहीं पकड़ पा रहा है

चपरासी जी को कौन बता पायेगा
बेचारा कैमरा मैन
इस गरीब देश के कोने कोने में कैसे जा पायेगा
एक दो जगह की फोटो आपको दिखायेगा
बाकी समझायेगा

समझ जाइये अपने आप
आपका देश और देश का कर्णधार
आपको कहाँ कहाँ ले जा पायेगा

कितना अच्छा कैमरे वाला निकला
सब कुछ साफ साफ दिखा के भी नहीं फिसला
बहुत से तो खाली कुछ नहीं दिखाते
खाली पीली ध्यान हैं बटाते

जहाँ बन रही होती है असली वाली पिक्चर
वहाँ गलती से भी नहीं पहुँच पाते

पहुंच भी गये अगर तो किनारे से आँख मारकर 
कैमरे का मुँह आकाश को हैं घुमाते
आपको बताते 
चिड़ियाँ आजकल उड़ नहीं रही हैं तैर रही हैं

टी आर पी  के खेल में उलझा के पब्लिक को
किनारे से हौले से बगल की गली में निकल
कठपुतली का खेल दिखाना शुरु हो जाते

साथ में सीटी बजा के गाते
ये देश है वीर जवानो का अल्बेलों का मस्तानो का।

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

"चेस्टर" सितम्बर 2008- 08-02-2012


निर्मोही आँखिर तुम भी
हो गये एक चित्र
हमें मोह में उलझा के
हौले से चल दिये मित्र
बहुत कुछ दे गये एक
इतने छोटे से काल में
मौन से स्पर्श से
हावभाव से संकेत से
निस्वार्थ निश्चल प्रेम से
अपनो का अपना दिखा के
अपनो को अपना बना के
दूर तक साँथ चलने का
झूठा सा अहसास दिला के
उड़ गये फुर्र से
हम देखते ही रह गये
किंकर्तव्यविमूढ़ बह गये
भावनाओं के ज्वार मे
उलझ के तुम्हारे प्यार में
रोक भी नहीं पाये तुमको
ये बताया भी कहाँ हमको
जल्दी है तुम्हें बहुत जाने की
कहीं और जा के लोगों को
कुछ बातें समझाने की
यहाँ लेना था तुम्हें
बहुत से लोगों से
पुराना कुछ हिसाब
शायद लाये भी होगे
कहीं कोई बही किताब
दूर हो या नजदीक
बुलाया उन सभी को
किसी ना किसी तरह
कभी ना कभी
अपने ही पास
जीवन मृत्यू का
एक पाठ पुन:
समझा के एक और बार
चल पडे़ हो एक लम्बी
डगर पर हमें दे कर केवल
अपनी एक याद
शुभ यात्रा प्रिय
करना क्षमा  तृटियों के लिये
फिर जन्म लेना कहीं
हमसे मिलने के लिये
करेंगे इंतजार लगातार।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

बदल भी जाइये

बातों को
हलके से लेना
अब तो
सीख भी जाइये

इतना गौर
जो फरमाया
करते थे
भूल भी जाइये

छोटे छोटे थाने
अब तो ना ही
खुलवाइये

जो खुल चुके हैं
पहले से
हो सके तो
बंद करवाइये

छोटे चोर
उठाईगीरों को
बुला बुला के
समझाइये

समय
बदल चुका है
स्कोप
बढ़ते जा रहा है
कोर्स
करके आइये

और
तुरंत प्लेसमेंट
भी पाईये

ऎसे मौके
बार बार
नहीं आते
एक मौका
आये तो
हजारों
करोड़ो पर
खेल जाइये।

चोरी डाके
की कोचिंग
हुवा करती है
कहीं दिल्ली में

एक बार
जरूर
कर ही आइये

अब ऎसे भी
ना शर्माइये

काम
वाकई में
आपका
गजब का
हुवा करता है

लोगों को
मत बताइये
खुले आम
मैदान में
खुशी से
आ जाईये

जेल
नहीं जाईये
मैडल पे मैडल
पाइये।

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

मलुवा या हलुवा

सामरिक महत्व की
सड़क कहलाती है
सर्पीले पथों से होते
हुवे किसी तरह
तिब्बत की सीमा
को कहीं दूर से
देख पाती है
छू नहीं पाती है
एक वर्ष से ज्यादा
बीता जा रहा है
प्राकृतिक आपदा
का प्रभाव जैसा था
वैसा ही है हर
गुजरने वाला राही
ये ही अब तक
बता रहा है
पहाड़ कच्चा हो चुका है
मलुवा गिरता जा रहा है
मलुवा सुनते ही अधिकारी
मूँछ के कोने से मुस्कुराये
बिल्कुल भी नहीं झेंपे
बगल वाले के कान में
हौले से फुसफुसाये
कैसे बेवकूफ हैं
मलुवा बोले जा रहे हैं
इन्हें कहां पता कि
इन्ही मलुवों का
हम रोज एक
हलुवा बना रहे हैं
बस एक बार उपर
वाले ने गिराना चाहिये
अगली बार से हम
गिराते रहेंगे
इसी तरह ये मलुवे
हलुवे बन हम पर
पैसे बरसाते रहेंगे
चीन ने चार लेन
सड़क अपनी सीमा
तक बना भी ली
तो भी पछताते रहेंगे
हम सीमा तक जाने
वाली हर सड़क को
मलुवा बनाते रहेंगे
अपनी सड़कों से चीन
हमला करने अगर
आ भी जायेगा
तब भी सिर के बाल
नोचेगा और खिसियाऎगा
कहाँ जा पायेगा
हमारे देश के अंदर
आकर टूटी सड़कों
की श्रंखला में
फंस कर रह जायेगा
हमारी सोच और
मलुवे के हलुवे की
तकनीक से मात
खा ही जायेगा ।

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

बाघ

जंगल में बाघ कम
होते जा रहे हैं
इस बात से लोग
आदमी को डरा रहे हैं
पहाड़ो में बाघ ने
आजकल आदमी
खाना भी शुरू कर
दिया है
फिर बाघ के कम
होने पर तो खुशी
होनी चाहिये
आदमी तो मातम
मना रहा है
तमाम तरह के
उपाय अपना
रहा है
बाघ का समाप्त होना
आदमी के लिये
खतरे की घंटी है
बताया जा रहा है
बाघ इस बात से
बेखबर होकर
फिर भी कस्बों
शहर की ओर
आ रहा है
खामखाह में
मारा जा रहा है
अरे कोई बाघ
को समझाने
क्यों नहीं जा
रहा है
बाघ को जंगल में
ही जाना चाहिये
बाघ ही को मार के
खाना चाहिये
जैसे आदमी आदमी
को खा रहा है
फिर भी संख्या में
दिन पर दिन
बढ़ता जा रहा है।