उलूक टाइम्स: टी वी
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शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

होता है उलूक भी खबर लिये कई दिनों तक जब यूँ ही नदारत हो रहा होता है

होता है

सभी के
साथ होता है


कोई
गा देता है
कोई रो देता है

कोई
खुद के
खो गये होने के
आभास जैसा
मुँह बनाये लटकाये

शहर
की किसी
अंधेरी गली
की ओर
घूमने जाने
की बात करते हुए

चौराहे
की किसी
पतली गली
की ओर
हो रहा होता है


कोई
रख देता है
बोने के लिये बीज

सभी
चीजों के

नहीं
बनते हैं
जानते हुए
बूझते हुए
पेड़ पौंधे
जिनके

कुछ को
आनन्द आता है
जूझते हुए

हुए के साथ

होने
ना होने का
बही खाता बनाये

हर खबर
की कबर
खोदने वाला
भी भूल सकता है

खबरें
भी लाशें
हो जाती है

सड़ती हैं
फूलती हैं
गलती हैं
पड़ी पड़ी

अखबार
समाचार टी वी
रेडियो पत्रकार

निकल निकल
कर गुजर जाते हैं

उसके
अगल बगल से

कुछ
उत्साहित

उसे
उसी के
होंठों पर
बेशरमी
के साथ

सरे आम
भीड़ के
सामने सामने
चूमते हुए भी

अपनी
अपनी ढपली
पीटते सरोकारी लोग

झंडे
दर झंडे जलाते

पीटते
फटी आवाज
के साथ

फटी
किस्मत के
कुछ घरेलू बीमार

लोगों की
तीमारदारी
के रागों को

शहर भी
इन सब
सरोकारों के साथ
जहाँ लूला काना
अंधा हो चुका होता है

सरोकारी
‘उलूक’ भी
अपनी चोंच को
तीखा करता हुआ

एक
खबर को
बगल में दबाये हुए

एक
कबर को
खोदने में
कई दिनों से
लगा होता है

सब को
सब मालूम

सब को
सब पता होता है

मातम होना है

पर मातम होने
तक का इंतजार

किसी
को भी
नहीं होता है

ना खून होता है
ना आँसू होते हैं

ना ही
कोई होता है
जो जार जार
रोता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

चेहरे को खुद ही बदलना आखिर क्यों नहीं आ पाता है

घर के चेहरे
की बात करना 
फालतू
हो जाता है
रोज देखने की
आदत जो
पड़ जाती है
याद जैसा
कुछ कुछ
हो ही जाता है
किस समय
बदला हुआ है
थोड़ा सा भी
साफ नजर में
आ जाता है
मोहल्ले से
होते हुऐ
एक चेहरा
शहर की
ओर चला
जाता है
भीड़ के
चेहरों में
कहीं जा
कर खो
भी अगर
जाता है
फिर भी
कभी दिख
जाये कहीं
जोर डालने
से याद
आ जाता है
चेहरे भी
चेहरे
दर चेहरे
होते हुऐ
कहीं से
कहीं तक
चले जाते हैं

कुछ टी वी
कुछ अखबार
कुछ समाचार
हो जाते हैं
उम्र का
असर
भी हो
तब भी
कुछ कुछ
पहचान ही
लिये जाते हैं
समय के
साथ
कुछ चेहरे
बहुत कुछ
नया भी
करना
सीख ही
ले जाते हैं
पहचान
बनाने
के लिये
हर चौराहे
पर
चेहरा अपना
एक टांक
कर आते हैं
कुछ चेहरों
को
चेहरे बदलने
में महारथ
होती है
एक चेहरे
पर
कई कई
चेहरे
तक लगा
ले जाते हैं
'उलूक'
देखता है
रोज ऐसे
कई चेहरे
अपने
आस पास
सीखना
चाहता है
चेहरा
बदलना
कई बार
रोज
बदलता है
इसी क्रम में
घर के
साबुन
बार बार
रगड़ते
रगड़ते
भी कुछ
नहीं हो
पाता है

सालों साल
ढोना एक
ही चेहरे को
वाकई
कई बार
बहुत बहुत
मुश्किल सा
हो जाता है !

रविवार, 20 अक्टूबर 2013

एक की हो रही पहचान है एक पी रहा कड़वा जाम है !

अगला
आदमी भी
कितना
परेशान है

अपनी
एक पहचान
बनाने की
कोशिश में
हो रहा
हलकान है

बगल वाला
है तो
उसका ही जैसा

कुछ भी
नहीं है
थोड़ा सा भी
कहीं कुछ
अलग अलग सा

दिखता भी
नहीं है
करता हुआ
कुछ
अजब गजब सा

समझ में
नहीं आता
हर गली
हर मौहल्ले में
हो रहा फिर भी
उसका ही नाम है

अखबार
रेडियो टी वी
वालों से बनाई
अगले ने
 पहचान है

हजार जतन
कर कराने
के बाद भी

कोई
क्यों नही देता
ऐसे शख्स की तरफ
थोड़ा सा भी ध्यान है

सभी तो
सब कुछ
करने में लगे हुऐ हैं

बस अपने
लिये ही तो
यहां या वहां
होना है

किसी और
के लिये
नहीं जब
कुछ इंतजाम है

इसे मिलता है
उसे मिलता है

अगले
को ही बस
क्यों नहीं मिलता
कुछ सम्मान है

किसी का
नाम होने से
किसी को हो रहा
बहुत नुकसान है

कोई करे
कुछ तो
उसके लिये कभी

इसकी
और उसकी
हो रही पहचान से
किसी की सांसत में
देखो फंस रही जान है ।

सोमवार, 8 जुलाई 2013

मुझ से पूछने आता तो तेरे को कोई कैसे फंसाता

एक डी एन ए
टेस्ट करवाता है
दो नौकर के साथ
बनी सी डी मामले
में फंस जाता है
तीन का फोन
टेप करके चूजे
क्या होते हैं
टी वी पर
सरे आम सबको
बताया जाता है
हे भगवान !
इतनी पकी उम्र
होने पर भी
तेरा सब कुछ
कैसे इतनी
आसानी से
पब्लिक हो
जाता है
वो भी इतना
जिम्मेदार नेता
जो राज्य से
लेकर देश
को चला
ले जाता है
मेरी समझ
में ये नहीं
आता है
तेरे जैसे
लोगों को
उस जगह
पढ़ने कुछ
दिन के लिये
क्यों नहीं
भेज दिया
जाता है
जहाँ ऎसा
वैसा किताबों
में तो कहीं
नहीं दिखाया
जाता है
लेकिन सब कुछ
बहुत आसानी
से किया जाता है
कोई भी
किसी को
कहीं नहीं
फंसाता है
ना टी वी
में आता है
ना ही अखबार
वाला ही वो
सब बताता है
और ये सब करने
वाले को ही बस
इनाम में कुछ
साथ में दिया
भी जाता है
बाकी बचे हुओं
को अभी भी
बता दिया
जाता है
अगर वो भी
एक दो तीन
की तरह ही
कुछ करना
चाहता है
ऎसे स्कूलों
में क्यों नहीं
कुछ दिन
पढ़ने के
लिये आ
जाता है ।

रविवार, 12 मई 2013

अच्छी सोच छुट्टी के दिन की सोच

अखबार आज
नहीं पढ़ पाया


हौकर शायद
पड़ौसी को
दे आया


टी वी भी
नहीं चल पाया
बिजली का
तार बंदर ने
तोड़ गिराया


सबसे अच्छा
ये हुआ कि
मै काम पर
नहीं जा पाया


आज
रविवार है
बड़ी देर में
जाकर
याद आया


तभी कहूँ
आज सुबह
से अच्छी बातें
क्यों सोची
जा रही हैं


थोड़ा सा
रूमानी
हो जाना
चाहिये
दिल की
धड़कन
बता रही है


बहुत कुछ
अच्छा सा
लिखते हैं
कुछ लोग


कैसे
लिखते होंगे
बात अब
समझ में
आ रही है


लेखन
इसीलिये
शायद
कूड़ा कूड़ा
हुआ
जा रहा है


अखबार हो
टी वी हो
या समाज हो
जो कुछ
दिखा रहा है


देखने
सुनने वाला
वैसा ही होता
जा रहा है


कुछ
अच्छी सोच
से अगर अच्छा
कोई लिखना
चाह रहा है


अखबार
पढ़ना छोड़
टी वी बेच कर
जंगल को क्यों
नहीं चले
जा रहा है ?

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

फिल्म देखना गुनाह

फिर से शुरू कर दिया ना आपने वही शोर मचाना
छोटी सी बात को लेकर बड़ा सा हल्ला बनाना

अब तो बाज भी आ जाओ शर्म करो थोड़ा सा तो शर्माओ

क्या हो गया 
तीन मंत्री थे
देख रहे थे अपने मोबाइल में तस्वीरें ही तो कुछ
आप दुखी हो रहे हों या हो गये टी वी पै देख खुश

अच्छी पार्टी के अच्छे लोग बताये जाते हैं दिखाये जाते हैं
बुरी पार्टी के बुरे लोग बताये जाते हैं दिखाये जाते हैं
सबूत भी लाये जाते हैं फंसाये भी जाते हैं
जेल में दिखाये भी जाते हैं

खेल होते होते पुराने हो गये हैं
पहले मैदान में हो जाया करते थे
दर्शक होते थे ताली भी बजाया करते थे

सूचना क्रांति का अब जमाना भी है
खेल करना है तो विधान सभा में तो जाना ही है

हर जगह माल परोसा जा रहा है
कोई दुकान में सीधे
तो कोई दुकान के पीछे पर्दे में खा रहा है

दुकान के पीछे खाने वाला ज्यादा हल्ला मचा रहा है
अरे खा गया देखो खा गया खुले आम खा गया
अपनी प्लेट पीछे छिपा के सामने वाले को सीन दिखा रहा है

अब जब 
मेरे छोटे से स्कूल का चपरासी भी चटकारे ले कर हमें सुना रहा है
उसका साहब तो बरसों से देखता आ रहा है
कोई कैमरे वाला उसको क्यों नहीं पकड़ पा रहा है

चपरासी जी को कौन बता पायेगा
बेचारा कैमरा मैन
इस गरीब देश के कोने कोने में कैसे जा पायेगा
एक दो जगह की फोटो आपको दिखायेगा
बाकी समझायेगा

समझ जाइये अपने आप
आपका देश और देश का कर्णधार
आपको कहाँ कहाँ ले जा पायेगा

कितना अच्छा कैमरे वाला निकला
सब कुछ साफ साफ दिखा के भी नहीं फिसला
बहुत से तो खाली कुछ नहीं दिखाते
खाली पीली ध्यान हैं बटाते

जहाँ बन रही होती है असली वाली पिक्चर
वहाँ गलती से भी नहीं पहुँच पाते

पहुंच भी गये अगर तो किनारे से आँख मारकर 
कैमरे का मुँह आकाश को हैं घुमाते
आपको बताते 
चिड़ियाँ आजकल उड़ नहीं रही हैं तैर रही हैं

टी आर पी  के खेल में उलझा के पब्लिक को
किनारे से हौले से बगल की गली में निकल
कठपुतली का खेल दिखाना शुरु हो जाते

साथ में सीटी बजा के गाते
ये देश है वीर जवानो का अल्बेलों का मस्तानो का।