उलूक टाइम्स: दिल्ली
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गुरुवार, 7 मार्च 2019

करना कुछ नहीं है होता रहता है होता रहेगा सूरज की ओर देख कर बस छींक देना है



एक 
जूता
मार रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

एक 
जूता
खा रहा है 

नहीं 
देखना है 

कुछ
नहीं कहना है 

दूर दर्शन 
दिखा रहा है 

दिखा
रहा होगा 

बस
 देख लेना है 

अखबार में 
छप गया है 

छपा
दिया गया होगा 

बस
सोच लेना है 

उसके साथ
खड़े रहना है 

मजबूती से 

मजबूरी है 

जमीर 
होता ही है 

परेशान
करे 
तो बेच देना है 

घर की 
बातें हैं 

जनता
के बीच 
जा जा कर 
क्यों कहना है 

दिल्ली 
दूर
नहीं होती है 

दूरबीन लगाये 
बस उधर देखना है 

अकेले 
रहना भी 
कोई रहना है 

गिरोह में 
शामिल
नहीं होना
हिम्मत 
का काम 
हो सकता है 

पर
आत्मघाती 
हो जाता है 

सोच लेना है 

कविता करना 
कहानी कहना 
शाबाशी लेना 
शाबाशी देना 

गजब बात है 

सच की
थोड़ी सी
वकालत करना

बकवास 
करना 
हो जाता है 

ये भी
देख लेना है 

‘उलूक’ 

अपने 
आस पास के 
जूते जुराबों को 
छुपा देना है 

बस 
चाँद के
पाँव धो लेने है 

और
 सोच सोच कर 
बेखुदी में
कुछ पी लेना है 


कुछ भी 
हो जाये 

लेकिन 

बस 
धरती पर 
उतारा गया 

गफलत का 

वही चाँद 
देख लेना है 

वही चाँद 
खोद लेना है ।

चित्र साभार: https://openclipart.org

सोमवार, 22 जून 2015

वाशिंगटन से चली है खबर ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ ने की है कवर

झूठ
बोलने वाले
होते हैं
दिमाग के तेज

‘दैनिक हिन्दुस्तान’
का सबसे
पीछे का है पेज

बच्चों पर
शोघ कर
खबर
बनाई गई है

दूर की
एक कौड़ी
जैसे मुट्ठी
खोल के
बहुत पास से
दिखाई गई है

शोध
करने वाले
बेवकूफ
नजर आते हैं

बच्चे
भी कभी
कोई बात
सच बताते हैं

यही शोध
कुछ बड़ों
पर भी
होना चाहिये

बिना पढ़े
और
पढ़े लिखों
पर होना चाहिये

सारा सच
खुल कर
सामने
आ जायेगा

पढ़ा लिखा
पक्का
बाजी मार
ले जायेगा

वाशिंगटन
महंगी जगह है

डालर
बेकार में रुलायेगा

दिल्ली में
रुपिया सस्ता है

सस्ते में
काम हो जायेगा

शोघ
करने की
जरूरत
नहीं पड़ेगी

निष्कर्ष
पहले
मिल जायेगा

सबको पता है
सब जानते है

झूठ
जहाँ सच
कहलाता है
सच को झूठा
कहा जायेगा

झूठ
बड़े अक्षर में
पहले पन्ने में

सच
छोटे शब्दों में
पीछे के पन्ने में

मुँह अपना
छुपायेगा

संविधान है
और
विधान है

मुहर लगा
सच की माथे पर

अपने जैसों
के कांधे पर
सच की
अर्थी उठायेगा

कंधा देने
उमड़ पड़ेगा
एक एक सच्चा
बच्चा बच्चा

सच्चे
दिमाग का
कच्चे झूठ का

परचम
चारों दिशा
में फहरायेगा

जय
जय होगी
बस
जय होगी

‘उलूक’
बिना दिमाग

झूठ देख कर

सच है
सच है
यही सच है
यही सच है

गली
में जाकर
अपने घर की

जोर
जोर से
चिल्लायेगा

सच बोलने
वालों के
दिमाग में
नहीं होते
हैं पेंच

अपने आप
बिना शोध
सिद्ध
हो जायेगा ।

चित्र साभार: wallpaper.mohoboroto.com

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

बिल्ली जब जाती है दिल्ली चूहा बना दिया जाता सरदार है



नदी है नावें है बारिश है बाढ़ है
नावें पुरानी हैं छेद है पानी है
पतवार हैं हजार हैं
पार जाने को हर कोई भी तैयार है

बैठने को पूछना नहीं है कुर्सियों की भरमार है

गंजे की कंघी है
सपने के बालों को रहा संवार है

लाईन है दिखानी है
पीछे के रास्ते पूजा करवानी है
बारी का करना नहीं इंतजार है

नियम हैं कोर्ट है
कचहरी है वकील हैं
दावे हैं वादे हैं वाद हैं परिवाद हैं
फैसला करने को न्यायाधीश तैयार है

भगवान है पूजा है मंत्र हैं पंडित है 
दक्षिणा माँगने का भी एक अधिकार है

पढ़ना है पढ़ाना है स्कूल जरुरी जाना है
सीखने सिखाने का बाजार गुलजार है

धोती है कुर्ता है झोला है लाठी है
बापू की फोटो है 
मास्साब तबादले के लिये
पीने पिलाने को खुशी खुशी तैयार है

‘उलूक’ के पास काम नहीं कुछ
अड़ोस पड़ोस की चुगली का
बना लिया व्यापार है ।

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

कभी बड़ा ढोल पीट



कब तक पीटेगा एक कनिस्तर 

कभी बड़ा 
एक ढोल भी पीट

घर के 
फटे पर्दे छोड़ टांगना
नंगी धड़ंगी सही 
पीठ ही पीट

आती हो 
बहुसंख्यकों को समझ में 
ऎसी अब ना कोई
लीक पीट

अपने घर के 
कूडे़ को कर किनारे 
कहीं छिपा ना दिखा

दूर की एक कौड़ी लाकर 
सरे आम शहर के
बीच पीट

क ख से 
कब तक करेगा शुरु 
समय आ गया है अब 
एक महंगा शब्दकोश 
ला कर के पीट

पीट रहे हैं 
सब जब कुछ ना कुछ 
किनारे में जा कर अपने लिये ही जब 

तू अपने लिये 
अब तो पीटना ले इन से कुछ सीख 
कुछ तो पीट 

कुछ ना 
मिल पा रहा हो कहीं अगर तुझे तो 
छाती अपनी ही खोल  
और  
खुले आम 
पीट 

मक्खियाँ भिनभिनायें 
गिद्ध लाशों को खायें 
किसने कहा जा कर के देख
समझदारी बस दिखा 
महामारी फ़ैलने की
खबर पीट

घर की मुर्गी उड़ा 
कबूतर दिल्ली से ला 
ओबामा का कव्वा
बता कर
के पीट

पीटना 
है नहीं तुझको जब छोड़ना
कुछ बड़ा सोच कर 
बड़ी बातें ही पीट

कब तक पीटेगा 
एक कनिस्तर 
कभी एक बड़ा ढोल
भी पीट । 

चित्र साभार: https://www.cffoxvalley.org/

गुरुवार, 9 मई 2013

मजदूर का हितैषी ठेकेदार


ठेकेदार लोग
बहुत ही ज्यादा
ईमानदार लोग
अपने अपने ठेके
का पूरा पेमेंट
ले के आते हैं
इसलिये वो
मलाई भी
थोड़ा खाते हैं
इतनी सी बात
आप क्यों नहीं
समझ पाते हैं
सब एक जैसे
थोडे़ होते हैं
कुछ मजदूरों का
ध्यान रखने
वाले भी
तो होते हैं
ये बात
दिहाडी़ करने
वाले जानते हैं
हर ठेकेदार की
नब्ज पहचानते हैं
ठेकेदार का हर
काम इसलिये
वो चुटकी में
कर ले जाते हैं
उसके लिये
भीड़ भी
बनाते हैं
समाचार बने
या ना बने
वो बेचारे
अपनी फोटो
जरूर खींच
कर दे जाते हैं
ठेकेदार उनकी
मदद करने
में अपनी
जान न्योछावर
कर ले जाते हैं
रोटी अगर
दिलवा भी
ना सके उनको
डबलरोटी
दिलवाने के
लिये तुरंत
धरने में
बैठ जाते हैं
अपना पैमेंट
पहले ही
ले आते हैं
गरीब मजदूर
को फिर
एक बार
इक्ट्ठा करके
समझाते हैं
वो तो बस
उनके हित के
लिये ही
बस ठेकेदारी
करने के लिये
आते हैं
वरना तो
देश के लिये
जान देने के
लिये दिल्ली
से लोग बडे़ बडे़
उन्हे बहुत
बार बुलाते हैं ।

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

किसी का भी जुर्म हो वो तेरा बहूरानी


स्कूल कालेज 
सरकारी हो
या 
गैर सरकारी 

किसी की
संपत्ति थोड़े 
ना हो जाता है

उस पर 
अधिकार 
होता है
तो 
केवल उसका 

जिसकी
दीवार से 
आसानी से कूड़ा
शिक्षाकेन्द्र के 
अंदर तक 
किसी तरह 
फेंका जाता है

फायदे ही 
फायदे 
गिन लीजिये 
अंगुलियों में 

उस
के लिये 
जो ऎसी
जगह पर 
मकान एक 
बना ही 
ले जाता है

घर तक 
जाने के लिये
मेटल्ड रोड 
स्कूल ही
दरवाजे तक 
खुद ही 
पहुँचा जाता है

कार रख 
सकता है 
अपनी

और 
किराये पर 
दूसरे तीसरे 
की भी

गैरेज बनाने 
के खर्चे से 
सीधे सीधे 
बच जाता है

बेवकूफ 
मैदान इसी के 
तो काम 
में आता है

फर्नीचर
की 
जरूरत में 
चारपाईयों 
की ही हो 
सकती है 

क्योंकि वो ही 
एक फर्नीचर 
होता है जो 
कालेज में 
कम ही 
खरीदा 
जाता है 

कुर्सी मेज 
कितनी हैं 
कौन गिनने में 
लगा रहता है 

अगर कोई 
अपने घर 
को भी 
दो चार एक 
उठा ले 
जाता है 

गाय पालन 
आसान 
और गाय 
का दूध 
सस्ता मिल 
जाता है 

घास मैदान 
में उगती है 
और 
गोबर कालेज 
का जमादार 
जब
उठा ले जाता है

पानी बिजली 
की
जरूरत 
रात को तो 
होती नहीं वहां 

इसलिये ये 
दोनो रात के 
लिये ही बस 
ले जाता है 

देखो कितना 
मितव्ययी होकर
बर्बाद होने से 
दोनो महंगी 
चीजों को 
बचाता है

अब इन 
छोटी छोटी 
चीजों को 
कहने के लिये 
किसके पास 
फुर्सत है

स्कूल कालेज 
किसी का 
अपना ही 
घर जैसा 
थोड़े ना 
हो जाता है

ज्यादा
ही 
परेशानी
किसी 
को हो 
रही होती है 
समस्याओं
से 
इस तरह 
की
कहीं तो 

दिल्ली में 
बैठी तो है 
इंदिरा की बहू 

उसके के 
सर में जाकर 
इसका भी 
ठीकरा
फोड़ने में 
क्या जाता है।

शनिवार, 31 मार्च 2012

रहम

सुन !

मेरे को
मत पका

कभी कुछ
अच्छी दो
बातें भी तो
ढूँढ कर ला

गजल सुना
चुटकुला सुना
रंगीन नहीं है तो
ब्लैक एंड वाहिट
ही चल दिखा

कभी दिल्ली
में भटक जाता है
वहाँ नहीं
चला पाता है
तो देहरादून
आ जाता है

तेरा अपना
शहर तो जैसे
तुझे रोज ही
काटने को
आता है

कभी तो
मुस्कुरा
दो बातें
प्रेम की
भी सुना


माना की
बीबी की
डाँठ भी
खाता है
पर कोई
तेरी तरह
नहीं
झल्लाता है

ज्यादा
कचकच
लगाने वाला
अपने को
मत बना

मान जा
कभी हमारे
लिये भी गा

तितलियाँ फूल
झरने देख
कर आ
उनके बारे में
आ कर बता

स्कूल
में बच्चों
को
पढ़ाता होगा
हमको तो
मत पढ़ा

अनारकली
आ रही है
आज टी वी में
क्या तुझे है पता

रोज लिखना
जरूरी है क्या

आज कविता
मत चिपका

हम पर रहम
थोड़ा सा खा ।

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

बदल भी जाइये

बातों को
हलके से लेना
अब तो
सीख भी जाइये

इतना गौर
जो फरमाया
करते थे
भूल भी जाइये

छोटे छोटे थाने
अब तो ना ही
खुलवाइये

जो खुल चुके हैं
पहले से
हो सके तो
बंद करवाइये

छोटे चोर
उठाईगीरों को
बुला बुला के
समझाइये

समय
बदल चुका है
स्कोप
बढ़ते जा रहा है
कोर्स
करके आइये

और
तुरंत प्लेसमेंट
भी पाईये

ऎसे मौके
बार बार
नहीं आते
एक मौका
आये तो
हजारों
करोड़ो पर
खेल जाइये।

चोरी डाके
की कोचिंग
हुवा करती है
कहीं दिल्ली में

एक बार
जरूर
कर ही आइये

अब ऎसे भी
ना शर्माइये

काम
वाकई में
आपका
गजब का
हुवा करता है

लोगों को
मत बताइये
खुले आम
मैदान में
खुशी से
आ जाईये

जेल
नहीं जाईये
मैडल पे मैडल
पाइये।