उलूक टाइम्स

सोमवार, 21 नवंबर 2011

राजा लोग

कुछ साल
पहले ही
की बात है

हर शाखा
का
होता था
एक राजा

प्रजा भी
होती थी
चैन से
सोती थी

खुशहाली
ना सही
बिकवाली
तो नहीं
होती थी

राजा
आज भी
हुवा करता है

पर प्रजा
अब
पता नही
कहाँ है

अब तो
हर शख्स
राजा बना
बैठा है

कोई
राजा भी
कभी
राजा की
सुनता है

इसलिये
हर एक
अपना
किला
बुनता है

हर तरफ
किलों कि
भरमार है

लेकिन
सिपाही
फिर भी
ना
जाने क्यों
रहे हार हैं ?

सब ठीक है

सब कुछ
आराम से
चलता रहे
इस देश में
अगर
कुछ लोग
फालतू में
अन्ना ना
बनकर
दूसरौं के
गन्नो को
लहलहाने दें
सब कुछ
ठीक चलता
रहता है
सिर्फ
थोड़ी देर
असमंजस
होती है उसे
जिसे
फटे में टांग
अड़ाने की
आदत है
सब कुछ
होता है
सब स्वीकार
करते हैं
बस कुछ
बिल्लियां
खिसियाती हैं
और पंजो
के निशान
आप देख
सकते हैं
ब्लाग के
पन्नो पर ।

टी ऎ डी ऎ

एक पैन
एक कागज
ही तो
चाहिये होता
है बस

बनाने
के लिये
चार लोग
एक कार
को

रेल
हवाई जहाज
या बैलगाड़ी
के चार लोग

बाजीगरी
खूँन में
नहीं आती
किसी के

हुनर सिखाने
में माहिर
हो गये हैं
मेरे मोहल्ले
के लोग ।

ईमानदार

आज
अचानक मैं
कहीं
गलती से
पहुंच बैठा
तभी कोई
सामने आया
और बोला
गुरू जी
भ्रष्टाचार
के विरुद्ध
चल रही है
अंदर
हाल में
लड़ाई
आप भी
शामिल हो के
जरा ले लो
ना अंगड़ाई
मैं झेंपा
थोड़ा शर्माया
फिर थोड़ा
हिम्मत कर
बड़बड़ाया
भाई क्यों
मुझ भ्रष्ट को
ताव दिला
रहे हो
बहुत कुछ
हो रहा है
शहर में
वहां
क्यों नहीं
बुला रहे हो?
कुछ उधर
मेरा जुगाड़
लगाओ तो
बात बने
कुछ नोट
हाथ लगें
तो तन्ख्वाह
के सांथ
दाल में तड़का
तो लगे।

रविवार, 20 नवंबर 2011

रंग

आदमी भी
तो बदलता
है कई रंग
पर नहीं सुना
कभी उसे
किसी के द्वारा
बुलाते हुवे
'ऎ इन्द्र धनुष'
आज जब
वो पारंगत
हो चुका है
कई रंग
बदलने में
फिर भी
कहलाया जा
रहा है
केवल एक
'गिरगिट'।