कुछ साल
पहले ही
की बात है
हर शाखा
का
होता था
एक राजा
प्रजा भी
होती थी
चैन से
सोती थी
खुशहाली
ना सही
बिकवाली
तो नहीं
होती थी
राजा
आज भी
हुवा करता है
पर प्रजा
अब
पता नही
कहाँ है
अब तो
हर शख्स
राजा बना
बैठा है
कोई
राजा भी
कभी
राजा की
सुनता है
इसलिये
हर एक
अपना
किला
बुनता है
हर तरफ
किलों कि
भरमार है
लेकिन
सिपाही
फिर भी
ना
जाने क्यों
रहे हार हैं ?
पहले ही
की बात है
हर शाखा
का
होता था
एक राजा
प्रजा भी
होती थी
चैन से
सोती थी
खुशहाली
ना सही
बिकवाली
तो नहीं
होती थी
राजा
आज भी
हुवा करता है
पर प्रजा
अब
पता नही
कहाँ है
अब तो
हर शख्स
राजा बना
बैठा है
कोई
राजा भी
कभी
राजा की
सुनता है
इसलिये
हर एक
अपना
किला
बुनता है
हर तरफ
किलों कि
भरमार है
लेकिन
सिपाही
फिर भी
ना
जाने क्यों
रहे हार हैं ?