उलूक टाइम्स: भ्रष्टाचार
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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

खिचड़ी

लोहे की
एक पतली
सी कढ़ाही
आज सीढ़ियों
में मैंंने पायी

कुछ
चावल के
कुछ
माँस की
दाल के दाने

अगरबत्ती
एक
बुझी हुवी
साथ में
एक
डब्बा माचिस

मिट्टी का दिया
तेल पिया हुवा
जलाने वाले
की
तरह बुझा हुवा

बताशे
कपड़े के
कुछ टुकड़े
एक रूपिये
का सिक्का

ये दूसरी बार
हुवा दिखा
पहली बार
कढ़ाही
जरा छोटी थी
साँथ मुर्गे की
गरधन भी
लोटी थी

कुत्ता मेरा
बहुत खुश
नजर आया था
मुँह में दबा कर
घर उठा लाया था

सामान
बाद में
कबाड़ी ने
उठाया था
थोड़ा मुंह भी
बनाया था
बोला था
अरे
तंत्र मंत्र
भी करेंगे
पर फूटी कौड़ी
के लिये मरेंगे
अब कौन
भूत
इनके लिये
इतने सस्ते
में काम करेगा
पूरा खानदान
उसका
भूखा मरेगा

इस बार
कढ़ाही
जरा बड़ी
नजर आई
लगता है
पिछली वाली
कुछ काम
नहीं कर पायी

वैसे अगर
ये टोटके
काम करने
ही लग जायें
तो क्या पता
देश की हालत
कुछ सुधर जाये

दाल चावल
तेल की मात्रा
तांत्रिक थोड़ा
बढ़ा के रखवाये
तो
किसी गरीब
की खिचड़ी
कम से कम
एक समय की
बन जाये

बिना किसी
को घूस खिलाये
परेशान आदमी
की बला किसी
दूसरे के सिर
जा कर चढ़ जाये
फिर दूसरा आदमी
खिचड़ी बनाना
शुरू कर ले जाये

इस तरह

श्रंखला
एक शुरू
हो जायेगी
अन्ना जी की
परेशानी भी
कम हो
जायेगी

पब्लिक
भ्रष्टाचार
हटाओ को
भूल जायेगी

हर तरफ
हर गली
कूचें मेंं
एक कढ़ाही
और
खिचड़ी
साथ में
नजर आयेगी ।

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

मौन की ताकत

कुछ
मौन रहे
कुछ रहे
चुप चुप

कुछ
लगे रहे
कोशिश में

लम्बे
अर्से तक
उनको
सुनने की
छुप छुप

पर
कहां
कैसे सुन पाते

कोई
मूड में
होता
सुनाने के
जो सुनाते

एक
लम्बे दौर
का आतंक
अत्याचार
भ्रष्टाचार

धीरे धीरे
चुपचाप
गुमसुम
बना देता है

हिलता
रहता मौन

अंदर से
सिमटते
सिमटते

अपने
को ठोस
बना देता है
मजबूत
बना देता है

ऎसे
मौन की
आवाज

कोई
ऎसे ही

कैसे
सुन सकता है

वो
जो ना
बोल सकता है

ना कुछ
कह सकता है

ऎसे
सारे मौन
व्यक्त
कर चुके हैं

अपने अपने
आक्रोश

बना चुके हैं
एक कोश

किसने
क्या कहा
किसने
क्या सुना
कोई नहीं
जान पायेगा

पर
हरेक
का मौन

एक होकर
अपनी बात

सबको
एक साथ
चिल्ला चिल्ला
के सुनायेगा

आतंकियों
भ्रष्टाचारियों
अत्याचारियों को

पता है
मौन की बात

अब ये
सारे लोग

खुद
आतंकित
होते चले जायेंगे

मौन
ने बोये हैं
जो बीज
इस बीच

प्रस्फुटित होंगे

बस
इंतजार है
कुछ और
दिनो का

धीरे धीरे
सारे मौन
खिलते
चले जायेंगे

किसका
कौन सा
मौन रहा होगा

कोई कैसे
जान पायेगा

जब
सब से
एक सा
एक साथ
प्रत्युत्तर पायेगा

खिलेगा
मौन का फूल

महकेगा

आतंक
अत्याचार
व्यभिचार
भ्रष्टाचार
की जमीन पर

ठीक
उसी कमल
की तरह

जिसे
कीचड़ में
भी खिलना
मंजूर होता है

मौन
मुखरित होगा

मौन
सुनेगा
मौन के गीत

मौन गायेगा
मौन मुस्कुरायेगा ।

सोमवार, 21 नवंबर 2011

ईमानदार

आज
अचानक मैं
कहीं
गलती से
पहुंच बैठा
तभी कोई
सामने आया
और बोला
गुरू जी
भ्रष्टाचार
के विरुद्ध
चल रही है
अंदर
हाल में
लड़ाई
आप भी
शामिल हो के
जरा ले लो
ना अंगड़ाई
मैं झेंपा
थोड़ा शर्माया
फिर थोड़ा
हिम्मत कर
बड़बड़ाया
भाई क्यों
मुझ भ्रष्ट को
ताव दिला
रहे हो
बहुत कुछ
हो रहा है
शहर में
वहां
क्यों नहीं
बुला रहे हो?
कुछ उधर
मेरा जुगाड़
लगाओ तो
बात बने
कुछ नोट
हाथ लगें
तो तन्ख्वाह
के सांथ
दाल में तड़का
तो लगे।