बुधवार, 14 दिसंबर 2011
लोकतंत्र के घरों से
एक बड़े से
देश के
छोटे छोटे
लोकतंत्रों
में आंख बंद
और
मुह बंद
करना सीख
वरना भुगत
अरे हम अगर
कुछ खा रहे हैं
तो देश का
लोकतंत्र भी
तो बचा रहे हैं
देख नहीं रहा है
कितनी बड़ी
बीमारी है
एक बड़े
लोकतंत्र
के सफाई
अभियान
की बड़ी सी
तैयारी है
सारी आँखे
लगी हुवी है
भोर ही से
बाबाओं की ओर
बता अगर हम
ही नहीं जाते
जलूस में टोपियां
नहीं दिखाते
तो तुम्हारे
बाबा जी क्या
कुछ कर पाते
सीख कुछ
तो सीख
घर की बात
घर में रख
बाहर जा
अपने को परख
अरे बेवकूफ
खा भी ले
थोड़ी सी घूस
कुछ नहीं जायेगा
थोड़ा जमा करना
थोडा़ बाबा को देना
छोटा पाप कटा लेना
बड़े पुण्य से
एक बड़े लोकतंत्र
को बचा
छोटा लोकतंत्र
अगर डूब भी
जायेगा तेरा
क्या जायेगा
सोच बड़ा अगर
भूल से गया डूब
छोटा क्या कहीं
रह पायेगा
और
तू कल किसको
फिर मुंह दिखायेगा ?
देश के
छोटे छोटे
लोकतंत्रों
में आंख बंद
और
मुह बंद
करना सीख
वरना भुगत
अरे हम अगर
कुछ खा रहे हैं
तो देश का
लोकतंत्र भी
तो बचा रहे हैं
देख नहीं रहा है
कितनी बड़ी
बीमारी है
एक बड़े
लोकतंत्र
के सफाई
अभियान
की बड़ी सी
तैयारी है
सारी आँखे
लगी हुवी है
भोर ही से
बाबाओं की ओर
बता अगर हम
ही नहीं जाते
जलूस में टोपियां
नहीं दिखाते
तो तुम्हारे
बाबा जी क्या
कुछ कर पाते
सीख कुछ
तो सीख
घर की बात
घर में रख
बाहर जा
अपने को परख
अरे बेवकूफ
खा भी ले
थोड़ी सी घूस
कुछ नहीं जायेगा
थोड़ा जमा करना
थोडा़ बाबा को देना
छोटा पाप कटा लेना
बड़े पुण्य से
एक बड़े लोकतंत्र
को बचा
छोटा लोकतंत्र
अगर डूब भी
जायेगा तेरा
क्या जायेगा
सोच बड़ा अगर
भूल से गया डूब
छोटा क्या कहीं
रह पायेगा
और
तू कल किसको
फिर मुंह दिखायेगा ?
मंगलवार, 13 दिसंबर 2011
इच्छा
कोई हमको
कभी क्यूं
नहीं बनाता
अपना दलाल
कब से कोशिश
कर रहे हैं
लग गये हैं
कई साल
क्या क्या
होना चाहिये
शक्ल में
कोई नहीं बताता
जिसको देखो
लाईन तोड़
हमसे आघे
निकल जाता
अटल जी के
लोगों ने
कभी नहीं दिया
हमें भाव
आदर्श दिखना
बोलना
शायद है
वहां का दांव
सोनिया के लोग
भी कन्नी
काट निकल
जाते हैं
अन्ना के जलूस
में नहीं
गये फिर भी
नहीं बुलाते हैं
हाथी मैडम के
पास जाने
के लिये
पैसे चाहिये
कालेज में
छोटे घोटाले
से इतना
कैसे बनाइये
हमारे दर्द
को जरा
अपना दर्द
कभी बनाइये
दलाली के
गुर हमें
भी कभी
सिखलाईये
बहुत इच्छा
है एक
नामी दलाल
बनने की
सफेद कुर्ता
पायजामा
सफेद टोपी
पहनने की ।
कभी क्यूं
नहीं बनाता
अपना दलाल
कब से कोशिश
कर रहे हैं
लग गये हैं
कई साल
क्या क्या
होना चाहिये
शक्ल में
कोई नहीं बताता
जिसको देखो
लाईन तोड़
हमसे आघे
निकल जाता
अटल जी के
लोगों ने
कभी नहीं दिया
हमें भाव
आदर्श दिखना
बोलना
शायद है
वहां का दांव
सोनिया के लोग
भी कन्नी
काट निकल
जाते हैं
अन्ना के जलूस
में नहीं
गये फिर भी
नहीं बुलाते हैं
हाथी मैडम के
पास जाने
के लिये
पैसे चाहिये
कालेज में
छोटे घोटाले
से इतना
कैसे बनाइये
हमारे दर्द
को जरा
अपना दर्द
कभी बनाइये
दलाली के
गुर हमें
भी कभी
सिखलाईये
बहुत इच्छा
है एक
नामी दलाल
बनने की
सफेद कुर्ता
पायजामा
सफेद टोपी
पहनने की ।
सोमवार, 12 दिसंबर 2011
अखबार
आज का
अखबार
कल की
थीं खबर
मुख्य पृष्ठ
पर दहाडे़
अन्ना लगा
निशाना
बेचारे राहुल
पर सोनिया
को छोड़ कर
छोड़ विदेशी
डालर और मिशन
कुछ लोगों
ने लिया
सेना में कमीशन
बेटा कर्नल
बाप को
मार रहा
था सैल्यूट
यही परिवार
पीड़ी दर पीड़ी
सेना में
ठोक रहा
है बूट
पेज पलट
कर देखा
शिक्षण
संस्थाओं में
छात्र छात्राऎं
दिखा रहे थे
बैनर झंडे
मास्टरों को
भगा रहे थे
दिखा दिखा
कर डंडे
विद्वतगणों की
मारा मारी
दिखा रहा
था पेज तीन
भारी भारी
लोग दिख
रहे थे
फोटो में तल्लीन
अपनी ही
प्रतिभा नहीं
आ रही
प्रदेश के काम
हैडिंग थी
खबर थी
अंत में थे
शहर
के भारी नाम
शिक्षा तंत्र
को विकसित
करने पर
लगायें जोर
आह !
कहाँ शरण
लेंगे अब
शिक्षा माफिया
के नामी
गिरामी चोर
पेज चार
पर थी वही
वेतन की
मारा मारी
पेज पांच
पर बनायी
गयी थी
योजना एक
बड़ी भारी
हिमालय बचाने
को लाया
जाने वाला
है बहुत पैसा
सेमिनार
कार्यशाला
पर दिख
रहा था
विज्ञान का
भरोसा
पेज पांच से
अंत तक
विज्ञापन और
थे समाचार
जिन्हें पढ़ कर
आ रही
थी नींद
क्योंकी बिना
धंधे के
वे सब
थे बेकार ।
अखबार
कल की
थीं खबर
मुख्य पृष्ठ
पर दहाडे़
अन्ना लगा
निशाना
बेचारे राहुल
पर सोनिया
को छोड़ कर
छोड़ विदेशी
डालर और मिशन
कुछ लोगों
ने लिया
सेना में कमीशन
बेटा कर्नल
बाप को
मार रहा
था सैल्यूट
यही परिवार
पीड़ी दर पीड़ी
सेना में
ठोक रहा
है बूट
पेज पलट
कर देखा
शिक्षण
संस्थाओं में
छात्र छात्राऎं
दिखा रहे थे
बैनर झंडे
मास्टरों को
भगा रहे थे
दिखा दिखा
कर डंडे
विद्वतगणों की
मारा मारी
दिखा रहा
था पेज तीन
भारी भारी
लोग दिख
रहे थे
फोटो में तल्लीन
अपनी ही
प्रतिभा नहीं
आ रही
प्रदेश के काम
हैडिंग थी
खबर थी
अंत में थे
शहर
के भारी नाम
शिक्षा तंत्र
को विकसित
करने पर
लगायें जोर
आह !
कहाँ शरण
लेंगे अब
शिक्षा माफिया
के नामी
गिरामी चोर
पेज चार
पर थी वही
वेतन की
मारा मारी
पेज पांच
पर बनायी
गयी थी
योजना एक
बड़ी भारी
हिमालय बचाने
को लाया
जाने वाला
है बहुत पैसा
सेमिनार
कार्यशाला
पर दिख
रहा था
विज्ञान का
भरोसा
पेज पांच से
अंत तक
विज्ञापन और
थे समाचार
जिन्हें पढ़ कर
आ रही
थी नींद
क्योंकी बिना
धंधे के
वे सब
थे बेकार ।
रविवार, 11 दिसंबर 2011
बूढ़े के भाग से छींका टूटा
पड़ोसन
जो कल
सिर्फ मम्मी थी
आज
नानी हो गयी
नानी हो गयी
अखबार में थे
कई समाचार
कुछ गंभीर कुछ चटपटे
और
कुछ रसीले मसालेदार
और
कुछ रसीले मसालेदार
बावरे मियां
बिना चश्मे के हो रहे थे रंगीले
जो
साठ में
चले जाने वाले थे
और
इसीलिये हो रहे थे ढीले
कल अचानक
हुवा उन सब में उर्जा का संचार
हो ही गयी पैंसठ
सुन कर
बिस्तरे से उड़ पड़े सारे बीमार
नींद में जैसे ही पत्नी ने सुनाया
फ्रंट पेज का समाचार
आज ऐसे सारे सैनिक
लौट के आने लगे लगातार
छुट्टियां
करवा दी सब ने सारी कैंसिल
और
सारे के सारे
बिना घंटी सुने
कक्षाओं मे जाने लगे
कक्षाओं मे जाने लगे
वादन पूरा होने के बाद भी
अब तक
अब तक
बाहर निकलने को
नहीं हैं तैयार।
चित्र साभार: https://www.gograph.com
नहीं हैं तैयार।
चित्र साभार: https://www.gograph.com
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