उलूक टाइम्स

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

दीमकों में से हो और दीमक नहीं हो नहीं होता है !



दीमकों
का काम
ही होता है
कुतरना

उसी
काम को
वो करते
जा रहे हैं

सारे दीमक
कुतरने में
लगे हुऎ हैं
जब एक
निकाय को

हे दीमक

तेरे
रंग ढंग
मेरी
समझ में तो
नहीं आ रहे हैं

दीमक है
दीमकों के
बीच में रहता है

दीमक हूँ भी
हमेशा से
खुद ही कहता है

फिर
वो कौन लोग हैं

जो
तुझ को
तेरे पेशे से ही
दूर ले जा रहे हैं

ऎसी
अजीब सी
हरकत तुझसे
पता नहीं क्यों
करवा रहे हैं

लगता है
दीमकों की
रानी का
नहीं होना

तेरे
कदमों को
पीछे को
ले जा रहे हैं

समझता
क्यों नहीं

राजतंत्र
अब बचा नहीं

दीमक ही
उसे कुतर कर
दफना कर के
आ रहे हैं

दीमकतंत्र
का आह्वान
किया जा चुका है

दीमकों
के बीच से ही एक को
दीमकों
की रानी की
कुर्सी में बैठाया
भी जा चुका है

दीमक
अब दीमकतंत्र
को फैला रहे हैं

उसी का बाजा
बजा रहे हैं
उसी को खाये
भी जा रहे हैं

दीमक हैं
और
दीमकों के जैसे
कामों को ही
तो कर रहे हैं

खुद कुतर रहे हैं
कुतरने के काम ही
करवाऎ जा रहे हैं

ये सब तो आम
सी ही बातें हैं
इस को हम कहाँ
किसी को समझाने
को जा रहे हैं

पर दीमकों मे से
एक दीमक इतना
ऎबनार्मल हो जायेगा

बस यही बात
अपने गले के नीचे
नहीं उतार पा रहे हैं

समझता क्यों नहीं
कुतरने का काम तो
चलता ही चला जायेगा

निकाय को
गिरना ही है
एक दिन
वो गिर कर
जमीन पर
आ ही जायेगा

दीमकों ने
कुतर कुतर
के खा दिया है अंदर से

किसी को
कहाँ ये सब
पता चल पायेगा

गिरने से पहले ही
हर दीमक भाग कर
दूसरी नयी जगह पर
जब पहुँच जायेगा

ना तेरा नाम होगा
नहीं कुतरने वालों में
ना कुतरने वालों को
ही कहीं गिना जायेगा

वो सब भी
दीमक ही रहेंगे
तुझे भी दीमकों में
ही गिना जायेगा

आपदा के नाम से
किसी के हाथ में एक
कटोरा जरूर आ जायेगा

दीमकों को कहीं
और कुतरने के काम
के लिये भेज दिया जायेगा

तू कुतर
तू ना कुतर
तुझे दीमक ही तो
तब भी कहा जायेगा

सारे दीमक लगे हैं
जब कुतरने में
कोई इतना समय
कहाँ निकाल पायेगा

फिर
ये बात पता नहीं
कौन आ कर
तुझे इस समय
समझायेगा

हे दीमक
तू दीमक था
दीमक है
दीमक ही रहेगा
दीमक ही
एक कहलायेगा ।

सोमवार, 2 सितंबर 2013

कभी कुछ अच्छा सुनाई दे तो अच्छा कहा जाये

सुन

कब तक 


शरम
का लबादा

ओढे़
तू रहेगा

बाप दादा
के जमाने
की सोच

कब
जाकर के
तू कहीं छोडे़गा

हमाम
में भी कपडे़
पहन कर
चला आता है

तरस
आता है
तेरे जैसों की
अक्ल पर कभी

ऊपर
वाला भी
तेरे जैसों के लिये
कहाँ तक करेगा

और
क्या क्या
कर के छोडे़गा

भूखों
की भूख

मान
भी लेते हैं
तू रोटी दे कर
मिटा ले जायेगा

नंगों
को कपडे़
कुछ उड़ा कर
भी आ जायेगा

पर
बहुत कुछ
होते हुऎ भी

अगर
कोई भूखा
और
नंगा हो जायेगा

तो
तू क्या
कोई भी
कहीं भी

ऎसों
के लिये
कुछ भी नहीं
कर पायेगा

ऎसे में

कैसे
सोच लेता है तू

कभी
एक अच्छा
सा गीत
या गजल
लिख ले जायेगा

किसी भी
चोर से
पूछ के आजा
आज भी जाकर

हर कोई
अन्ना का
रिश्तेदार
अपने को
ही बतायेगा

तेरी तो
उससे
भी नहीं है
कोई रिश्तेदारी

अंत में
तू खुद ही

एक चोर
साबित हो जायेगा

सबको
नजर
आती रहेंगी
तितलियाँ
और
फूल भी

बस
एक तू ही
अपना जैसा

मौजू
उठा के
ले आयेगा

मान
भी लेते हैं
लिख लेगा
दो चार
बेकार की बातों
के कुछ पुलिंदे

पढ़ने
को कौन
आयेगा

क्यों आयेगा

और
आखिर
कब तक
आ पायेगा

लिखना
पढ़ना तो
बौद्धिक भूख
मिटाने के लिये
किया जाता है

ये
किसने कह दिया

दिमाग
में भरा
गोबर भी
इसी में
दिखा
दिया जाता है

कभी
किसी के
लिये लडे़गा

कभी
खुद से लडे़गा

कभी
अपनों
से लडे़गा

तू
अपनी
तलवार
हवा में ही
इस तरह
चलाता
चला जायेगा

जिसके
लिये लडे़गा
उसकी भी
गालियाँ खायेगा

मौका
मिलते ही

उसे भी
रोटी में
झपटता
हुआ पायेगा

कुछ नहीं
कह पायेगा

यूँ ही बस
झल्लायेगा

बहुत
तेजी से
बदल रही है
भाई सभ्यता

इस
बात को
पता नहीं

कब
तू समझ पायेगा

सिद्धांत
किसी के
नहीं होते हैं
आज के जमाने में

मौका
मिलते ही
हर कोई

समझौता
कर ले जायेगा

मुझे पता है

तू
कभी भी नहीं
सुधर पायेगा

इन
सब में से भी

तुझे
कूडे़दान में
कुछ कूड़ा
भरने का
मौका
मिल जायेगा

सोच
में रख लेना
फिर भी अपनी

एक गीत
और
एक गजल को

क्या पता
किसी दिन
कुछ नहीं
होगा कहीं

और
शायद
तुझसे
उस दिन
कुछ नहीं कहा जायेगा ।

रविवार, 1 सितंबर 2013

गजब के भाई जी के गजब के खेल !

भाई जी बहुत
अच्छे खिलाड़ियों
में गिने जाते हैं
क्या खेलते हैं
कभी किसी को
नहीं बताते हैं
कारनामें उनके
अखबार में
बहुत बार आते हैं
हरफन मौला
उनको अखबार
वाले बताते हैं
बाकी बहुत होता है
उनके बारे में
अखबार में
बस उनके खेलने
के बारे में बताने
से वो भी हमेशा
कुछ कतराते हैं
बहुत अनुभवी हैं
अच्छा खेलते हैं
जहाँ कोई नहीं
पहुँच पाता है
वहाँ जा कर के भी
गोल कर के आते हैं
फिर समझ में
ये नहीं आता
लोग उनकी इस
कला की बात
करने में क्यों
शरमाते हैं
जब की सब ही
उनके खेल के
कायल होते हैं
खेलना भी उनकी
तरह ही चाहते हैं
मैच फिक्सिंग की
समस्या कहीं भी
नहीं आ पाती है
खेल ऎसे खेला
जाता है जिसमें
बस एक ही टीम
खेल पाती है
गोल भी बस एक
ही देखा जाता है
खेल के हिसाब से
मन चाही जगह
पर जा कर बना
लिया जाता है
बौल भी दिखाई
नहीं जाती है
कमेंटरी भी की
नहीं जाती है
महत्वपूर्ण तो
ये होता है कि
किसी काम को
करवाने के लिये
बस खेल भावना
जगा ली जाती है
एक गोल होने से
मतलब होता है
अच्छे खिलाडी़ को
ये बात बहुत अच्छी
तरह समझ में आती है
काम के हिसाब से
खिलाड़ी उसे खेलने
के लिये घुस जाता है
इन सब में बहुत
ही महारथी होता है
अपनी दूरदृष्टी
काम में लाता है
सब से बात भी
अलग अलग
कर के आता है
हर एक को एक
बौल का सपना
थमा के आता है
खेल खेल में गोल
जब हो जाता है
सबको जा जा के
समझाया जाता है
मिल जुल कर
खेलने से कितना
फायदा हो जाता है
मैदान में कोई
कहीं नहीं जाता है
अच्छा नहीं है
क्या कि खेल
एक टीम से ही
खेला जाता है
दो टीम के खेल
में फिक्सिंग होने
का डर हो जाता है
ऎसे भाई जी के
ऎसे खेल को
ओलंपिक में क्यों
नहीं खेला जाता है
अपने देश में तो
पता नहीं क्या
संख्या होगी पर
मेरे आसपास में
दो में से एक का
भाई जी होना
मेरे लिये गर्व
का विषय एक
जरूर हो जाता है ।

शनिवार, 31 अगस्त 2013

सच्चा और अच्छा होने का लाइसेंस ले आ फिर करता जा मत घबरा


चार लोगों को
जो अपने साथ खड़ा भी नहीं कर सकता हो 
वो भला सच्चा कैसे हो सकता है

सब के साथ में सब जगह दिखेगा
कुछ नहीं कहेगा कुछ नहीं लिखेगा
वो जरूर अच्छा हो सकता है

अच्छे और सच्चे होने की परिभाषा
निर्धारित की जा चुकी है
सदन में पास हो चुकी है अखबार में छापी जा चुकी है

जल्दी ही इसके लिये निविदा
एक निकाली भी जाने वाली है

अच्छे और सच्चे होने के लाइसेंस
सरकार जल्दी ही बनवा के बंटवाने वाली है

छोटे छोटे गली नुक्कड़ के अपराधों के लिये
किसी को कोई सजा अब नहीं दी जाने वाली है

अपने अपने हिसाब से
जिसको जो अच्छा लगता हो प्रायोजित करवा सकता है
जिसे धरना कराना हो वो धरना करा सकता है
जिसे किसी को उठवाना हो
वो उसे उठा के अपने घर में रखवा सकता है

जल्दी ही इन सब पर
नियम कानून की किताब बन के आ जाने वाली है
  
छोटी मोटी घटनाओं की बड़ती आवृति से
पुलिस भी अब निजात पा जाने वाली है

बुद्धिजीवियों को भी गुंडागर्दी करने की
कुछ छूट भी 
इसमें दी जाने वाली है

राजनैतिक दल से जुडे़ होने पर
दल की हैसियत के अनुसार
कम बाकी कर दी जाने वाली है

सरकार के दल से जुडे़ अच्छे और सच्चे को
छूट के साथ ईनाम भी दिया जायेगा

सरकार के कमीशन का कुछ प्रतिशत
उसके खाते में अपने आप जमा जा के हो जायेगा
रोज रोज छोटे मोटे हाथ साफ करने से
कुछ तो राहत वो पायेगा

विपक्ष का भी ध्यान रखा जायेगा
उनके अच्छे और सच्चे लोगों को
उनके अपने हिसाब से काम करने दिया जायेगा

बस उनको ये बता दिया जायेगा
कि पक्ष के अच्छे और सच्चे लोगों से
उनका कोई भी आदमी कहीं भी नहीं टकरायेगा

ऊपर वालों को कुछ दिखाने के लिये कुछ करना
अगर बहुत जरूरी हो जायेगा

ऎसे समय में जो किसी भी दल में नहीं होगा
उससे पंगा ले लिया जायेगा

जिसका कोई नहीं होगा 
वो किसी के पास अपनी फरियाद ले कर नहीं जा पायेगा

जनता सुखी होगी उन्नति करेगी
डर सबका भाग जायेगा

मुसीबत आ भी गई कभी सामने तो
अच्छा आदमी सच्चा होने का
लाइसेंस निकाल के दिखायेगा ।

चित्र साभार:
https://economictimes.indiatimes.com/

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

लंगड़ी लगती है तभी तो सीखी भी जाती है

जुम्मा जुम्मा 
आ कर अभी तो पाँव कुछ जमाई हैंं
कुछ बातें समझनी बहुत जरूरी होती हैं 
पता नहीं क्यों नहीं समझ पाई हैंं

पढ़ी लिखी हैंं और समझदार हैंं
दिखती मजबूत सी हैंं बाहर से काम करने में भी काफी होशियार हैंं

पर हर जगह के
अपने अपने कुछ उसूल होते हैं 
बहुत से लोग होते हैं जो बहुत पुराने हो चुके होते हैं 
उन लोगों के भी अपने अपने दुख : होते हैं 
जो उनसे भी पुराने लोग उनको जाते जाते दे गये होते हैं 

इसी चीज को ही तो अनुभव कहते हैं 

जल्दी बाजी नहीं करेगी
तो समय आने पर सब कुछ तू भी समझ जायेगी
देख लेना आने वाले समय में तू भी उनकी जैसी जरूर हो पायेगी 
उनका तो कुछ वैसे भी तू कुछ बिगाड़ नहीं पायेगी 
हाँ आने वाली नयी खेप से
अपनी खुंदकें निकालने में पुरानी खेप तेरा कुछ भी नहीं कर पायेगी 

कुछ समय लगा काम करना सीख जा 

समीकरण बनाना अगर सीख जायेगी 
तो थोड़ा गणित लगाने में महारथ भी तेरी हो जायेगी 

अच्छे काम तो किसी भी तरह हो जायेंगे 
पर किसी की वाट लगाने में यही सब अनुभव तेरे काम आयेंगे 

किसी को मारना हो
तो सामने से कभी नहीं मारा जाता है
हिसाब किताब 
धर्म का जाति का गांव का वर्ग का उम्र का लिंग का अंदर की आग का अपने विभाग का 
या 
फिर काम के कमीशन के हिसाब का
सबसे पहले लगाया जाता है 

जिस से निशाना साफ नजर आता है 
उसे छाँट कर मिलबाँट कर ठिकाने लगा लिया जाता है

 हर बार एक ही तिकड़म से काम नहीं किया जाता है 
अगली बार किसी और तरीके से उल्लू सीधा कर लिया जाता है 
 तुझे लगता है लगना भी चहिये कि तुझको बहुत कुछ आता है 

अब क्या करेगी 
अगर सब मिलकर कह देंगे सब से कह देंगे तेरा बताया हुआ किसी के समझ में नहीं आता है 

हर एक की चाह होती है बहुत ऊपर तक उठता चले जाने की

सीढ़ी नहीं होती है 
इसीलिये
अपने आसपास के मजबूत कंधों की सीढ़ी बनाने की जरूरत होती है

सीढ़ी 
बन गया कोई किसी की ये भी तभी पता चल पाता है 
जब चढ़ा हुआ बंदर पेड़ की चोटी पर दूर नजर आता है 

मुझ से भी हमेशा इस तरह कहाँ कहा जाता है 
आँखों में तैरता बाहर को निकलता हुआ सा पानी कहीं दिख जाता है

किया जब कुछ नहीं जाता है 
बस आक्रोश ऎसे ही समय में शब्दों के रूप में बाहर निकल जाता है 

उपर वाला भी तो उम्र के साथ अक्ल की जुगलबंदी हमेशा कहाँ कराता है ।