जुम्मा जुम्मा
आ कर अभी तो पाँव कुछ जमाई हैंं
कुछ बातें समझनी बहुत जरूरी होती हैं
पता
नहीं क्यों नहीं समझ पाई हैंं
पढ़ी लिखी हैंं और समझदार हैंं
दिखती मजबूत सी हैंं बाहर से काम करने में भी काफी होशियार हैंं
पर हर जगह के
अपने अपने कुछ उसूल होते हैं
अपने अपने कुछ उसूल होते हैं
बहुत
से लोग होते हैं जो बहुत पुराने हो चुके होते हैं
उन लोगों के भी अपने अपने दुख : होते हैं
जो
उनसे भी पुराने लोग उनको जाते जाते दे गये होते हैं
इसी चीज को ही तो अनुभव कहते हैं
जल्दी बाजी नहीं करेगी
तो समय आने पर सब कुछ तू भी समझ जायेगी
तो समय आने पर सब कुछ तू भी समझ जायेगी
देख लेना आने वाले समय में तू भी उनकी जैसी जरूर हो पायेगी
उनका तो कुछ वैसे भी
तू कुछ बिगाड़ नहीं पायेगी
हाँ आने वाली नयी खेप से
अपनी खुंदकें निकालने में पुरानी खेप तेरा कुछ भी नहीं कर पायेगी
अपनी खुंदकें निकालने में पुरानी खेप तेरा कुछ भी नहीं कर पायेगी
कुछ समय लगा काम करना सीख जा
समीकरण बनाना अगर सीख जायेगी
तो थोड़ा गणित लगाने में महारथ भी तेरी हो जायेगी
अच्छे काम तो किसी भी तरह हो जायेंगे
पर किसी की वाट लगाने में यही सब अनुभव तेरे काम आयेंगे
किसी को मारना हो
तो सामने से कभी नहीं मारा जाता है
तो सामने से कभी नहीं मारा जाता है
हिसाब किताब
धर्म का जाति का गांव का वर्ग का उम्र का लिंग का अंदर की आग का अपने विभाग का
या
फिर काम के कमीशन के हिसाब का
सबसे पहले लगाया जाता है
जिस से निशाना साफ नजर आता है
उसे छाँट कर मिलबाँट कर ठिकाने लगा लिया जाता है
हर बार एक ही तिकड़म से काम नहीं किया जाता है
अगली बार किसी और तरीके से उल्लू सीधा
कर लिया जाता है
तुझे लगता है लगना भी चहिये कि तुझको बहुत कुछ आता है
अब क्या करेगी
अगर सब मिलकर कह देंगे सब से कह देंगे तेरा बताया हुआ किसी के समझ में नहीं आता है
हर एक की चाह होती है बहुत ऊपर तक उठता चले जाने की
सीढ़ी नहीं होती है
इसीलिये
अपने आसपास के मजबूत कंधों की सीढ़ी बनाने की जरूरत होती है
अपने आसपास के मजबूत कंधों की सीढ़ी बनाने की जरूरत होती है
सीढ़ी बन गया कोई किसी की ये भी तभी पता चल पाता है
जब चढ़ा हुआ बंदर पेड़ की चोटी पर दूर नजर
आता है
मुझ से भी हमेशा इस तरह कहाँ कहा जाता है
आँखों में तैरता बाहर को निकलता हुआ सा पानी
कहीं दिख जाता है
किया जब कुछ नहीं जाता है
बस आक्रोश ऎसे ही समय में शब्दों के रूप में बाहर निकल जाता है
उपर वाला भी तो उम्र
के साथ अक्ल की जुगलबंदी हमेशा कहाँ कराता है ।
कृष्ण-जन्माष्टमी की कोटि कोटि वधाई !
जवाब देंहटाएंबड़े काम का है यह उल्लूक टाइम्स भाई !!
गंभीरता के साथ हल्का व्यंग्य गुजराती तीखे, चटपटे और मीठे व्यंजन सा है !
सुन्दर प्रस्तुति -
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