उलूक टाइम्स

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

लिख आ कहीं जा कर किसी पेड़ की छाल पर ये भी

ईश्वर के
उस पुजारी
की तरफ
मत देख

जिसे उसके
मंदिर की
जिम्मेदारी
दी गई है

उसका पूजा
करने का
तरीका तुझे
पसंद नहीं भी
हो सकता है

पर यज्ञ
हो रहा है
एक बहुत
विशाल

ईश्वर को
लेकर नहीं
नरक हो
चुके लोकों
के उद्धार
करने के लिये

अवतरित
होने की प्रथा
में परिवर्तन कर
पास किया
जा चुका है

ईश विधेयक
नहीं भेजता
भक्तों के
अवलोकन
के लिये कभी

भक्तों का
विश्वास उसकी
ताकत होती है

आहुति देने
के सामान
के बारे में
पूछ ताछ
करना
सख्त मना है

आचार संहिता
और
सरकार के
भरोसे को
तोड़ने वाले को
जेल भेजने
के लिये
बहुत से कानून
उसने अपने
भक्तों को
बांंटे हुऐ हैं

अब ऐसे में
‘उलूक'
तू यही कहेगा

किसी भी
पुजारी का
आदमी नहीं है

किसी मंदिर
मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च से
तुझे कुछ लेना
और देना नहीं है

तो समझ ले
तेरी सारी
परेशानी की
जड़ तू खुद है

इसीलिये
तुझको
राय दी
जा रही है

तेरे और
तेरे जैसे
थोड़े बहुत
कुछ और
बेवकूफों को
बताने के लिये

यज्ञ
हो रहा है
मान ले
आहुति
देने को
तैयार रह

ईश्वर
और भक्तों
की सत्ता को
मत ललकार

पागल
हो जायेगा
आहुति
का सामान
बाजार में भी
मिलता है
खरीद डाल

बिल की
मत सोच
नेकी कर
कुऐं में
डाल दी गई
चीजों की लिस्ट

कभी किसी
जमाने में
खुदाई में
जरूर निकल
कर के आयेंगी

आगे तेरी
ही पीढ़ी में
किसी को
ताम्र पत्र
दिलाने
के काम
आ जायेंगी
ठंड रख।

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

बहुत हैं माचिस के डब्बे चिंता की बात नहीं आग पक्का लगेगी

माचिस का एक
नया डिब्बा
कल गलती से
छूट गया
बाहर आँगन
की दीवार पर
और आज
उसका रंग
उतरा हुआ मिला
शायद ओस ने
या दिन की
तेज धूप ने
हो कुछ कह दिया
तीलियां उसी तरह
तरतीब से लगी हुई
महसूस हुआ
जो भी है आग है
कहीं ना कहीं
इस डब्बे में भी
और शायद
कुछ अंदर
भी कहीं
एक बहुत शाँत  
तीलियों से चिपकी
अनुशाशित
और
एक बिना धुऐं
और चिगारी के
आग होने की सोच
का ढोंग ओढ़े हुऐ
जहाँ बहुत से पागल
लगे हुऐ हैं
पागल बनाने में
जिनके पास
दिखाई देती है
मशाल बनाने
के लिये लकड़ी
पुराना कपड़ा
थोड़ा कैरोसिन
पानी मिला हुआ
और माचिस
ओस से भीग कर
तेज धूप में सुखाई हुई
सुलगने का एक
अहसास ही सही
तीलियाँ आग को
अपने में लपेटे हुऐ
कुछ भीगी कुछ सीली
पर आग तो आग है
कुछ ही दिन की
बस अब बात है
लगने वाली है आग
और उस आग में
सब भस्म हो जायेगा
आग की देवी या देवता
जो भी है कहीं सुना है
कोशिश कर रहा है
गीली तीलियों के
मसाले को सुखा कर
कुछ कुरकुरा बनाने
के जुगाड़ का 

उलूक तुझे कुछ 
नहीं करना है
तीली को रगड़ने
के लिये अगर कोई
माचिस का खाली
डब्बा माँगने  
आ जाये भूले भटके
धूप में सुखा के रखना है
बस एक माचिस का डब्बा ।

सोमवार, 14 अप्रैल 2014

चादर नहीं होती है अपडेट और कुछ बदल


किसी को
कहाँ 
जरूरत होती है अब
एक चादर 
ओढ़ने के बाद
बाहर निकलते हुऐ
पैरों की लम्बाई देखकर
उनको 
मोड़  लेने की

बहुत तेज हो 
चुकी है जिंदगी
पटरी को बिना छुऐ उसके ऊपर हवा में
दौड़ती हुई एक सुपर फास्ट रेल की तरह

हैसियत की बात 
को
चादर से 
जोड़ने वालों को
अपने ख्यालात दुरुस्त करने में
जरा सा भी नहीं हिचकिचाना चाहिये

उन्हें समझना होगा
गंवार कह कर 
नहीं बुलाया जा सकता है किसी को यहाँ

जिस जगह गाँव 
भी
रोज एक 
नये शहर को ओढ़ कर दूसरे दिन
अपने को अपडेट करने से नहीं चूकता हो

क्योंकि सब जानते हैं
जमीन की मिट्टी से उठ रही धूल
कुछ ही दिनों में बैठ जायेगी

उनकी आशायें 
उड़ चुकी हैं
बहुत दिन हुऐ आकाश की तरफ
दूर बहुत दूर के लिये

बस एक नजर भर 
रखने की जरूरत है
रोज के अखबार के मुख्य पृष्ठ पर
उस समय जब सब कुछ बहुत तेज चल रहा हो

पुरानी हो चुकी
धूल खा रही मुहावरों की किताब को
झाड़ने 
की सोच भी दिल में नहीं लानी होती है

जहाँ हर खबर 
दूसरे दिन ही
नई दुल्हन की तरह बदल कर
सामने से आ जा रही हो

‘उलूक’ तेरी चादर 
के अंदर
सिकोड़ कर 
मोड़ दिये गये पैरों पर
किसी ने ध्यान नहीं देना है

चादरें अब 
पुरानी हो चुकी हैं
कभी मंदिर की तरफ मुँह अंधेरे निकलेगा
तो ओढ़ लेना
गाना भी बजाया जा सकता है उस समय
मैली चादर वाला

ऊपर वाले के पास 
फुरसत हुई तो देख ही लेगा 
एक तिरछी नजर मारकर

तब तक बस 
वोट देने की तैयारी कर ।

चित्र साभार: 
https://www.alamy.com/

रविवार, 13 अप्रैल 2014

रस्में कोई जानता है किसी को समझाई जा रही होती हैं

चुनाव क्यों
करवा रहे हैं
पता नहीं
वोट क्यों
डलवा रहे हैं
पता नहीं
तो पता क्या है
अरे सब पता है
कौन हार रहा है
कौन जीत रहा है
कैसे हार रहा है
कैसे जीत रहा है
कैसे पता है
किसने बताया
फिर वही बात
जो बात
पता होती है
वो किसी से
पूछी नहीं जाती है
अपने आप
गुणा भाग करके
दिमाग में
बैठ जाती है
गिन लो
उठे हुऐ हाथ
यहाँ कमप्यूटर के
खुले हुऐ सारे
पन्नों में
सब के चेहरों
के ऊपर
उनकी वोट
लिखी हुई
नजर आती है
जिनकी नहीं
लिखी होती है
उनकी कोई बिल्ली
चुगली कर जाती है
कमप्यूटर एक
खुली किताब है
हर पन्ने से
कोई ना कोई
झाँक रहा है
अपनी छोड़ कर
हर तीसरे की
वोट को
आँक रहा है
उसे भी पता है
इस देश में अब
चुनाव दो के
बीच में
ही होता है
बाकी फालतू है
बेकार का है
खाली में
कुछ ना कुछ
यूँ ही
हाँक रहा है
तुझे इतना भी
मालूम नहीं है
तभी तो तेरी
बातों को कोई
तूल नहीं देता है
वो हारने वाला
होता है
जो यहाँ पर गाली
खा रहा होता है
कोई ना कोई
अपने कमप्यूटर
पर जिसका 
एक कार्टून
बना रहा होता है
जीतता वो है
जिसे माला पहनाई
जा रही होती है
कमप्यूटर से
कमप्यूटर तक
जिसकी बिना धागे
की पतंग उड़ाई
जा रही होती है
बाकी बेवकूफ
गरीबों की दुनिया है
किसी पोलिंग बूथ
पर एक लम्बी लाईन
लगा रही होती है
उनकी वोट वोट
नहीं होती है
कमप्यूटर पर अगर
कहीं भी कभी भी
दिखाई नहीं
जा रही होती है 

उलूक पता है 
तू कितना
बेवकूफ है
कितनी बात
किस समय तेरी
समझ में आ
रही होती है
कितनी तेरे 
सिर के ऊपर 
से चली जा
रही होती है
परेशान होने की
जरूरत नहीं होती है
जब सरकार
रिश्तेदारों की ही
आ रही होती है
वोट डालना डलवाना 
एक रस्म है
किसी तरह 
से निभाई जा
रही होती है । 

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

सपने में ताबूत सिलने वाला सामने वाले की लम्बाई नापने के लिये ही साथ में आता है

शरीर और शक्ल में
हो ही रहा होता है
हमेशा ही अंतर

कभी किसी हीरो
की तरह दिखाई दे
कभी दिखने लगे
अगर एक बंदर

अलग अलग
परिस्थितियों में
अलग अलग सा
अपने को कोई
पाता भी है तो
समझ में आता है

समय के साथ
मगर नजरिया
बदल जाता है

शक्ल और शरीर
की तरह नहीं
अपनी तरह का
कुछ अलग सा
हो जाता है

ऐसा ही कुछ
बहुत बार
कहा जाता है

अपने बारे में सोचो
इस बात को लेकर
तो कुछ भी समझ
में नहीं आता है

माना कि
हर किसी की
आदतों के बारे में
सब कुछ नहीं
कहा जाता है

साथ में ना भी
रहा हो कोई
एक दो बार ही
बस मिला जुला हो
लौट कर कभी
फिर दिख जाता है

बहुत अच्छा लगता है
लगता है बहुत
समझ में आता है
हर कोई इसी का जैसा
क्यों नहीं हो जाता है

और एक रहता है
बरसों साथ में
शक्ल और शरीर को
अपनी बदलते हुऐ भी

लगता है सब कुछ
पता चल जाता है
ज्यादा ध्यान से
नहीं देखा जाता है

अपना होता है
अपने जैसा ही
समझ में आता है

और एक दिन
अचानक चिकनाई से
फिसलता हुआ कोई
इसी तरह के एक
घड़े से टकराते हुऐ
जब अपने को बचाता है

तो समझ में आता है
अरे जिसे कई बरसों से
समझा हुआ ही
समझा जाता है

वही क्यों कई बार
किसी खड़ी फसल
या खंबे के पास से
गुजरता हुआ अपनी
एक टाँग उठाता है

‘उलूक’ तेरा कुछ भी
नहीं हो सकता है
अब भी मान जा

बदलता है या नहीं
ये तो पता नहीं
पर जो होता है
कभी ना कभी

सच्चाई को
छुपाते छुपाते भी
अपने नहीं
किसी और के
आईने में छोड़ कर
चला आता है ।