शरीर और शक्ल में
हो ही रहा होता है
हमेशा ही अंतर
कभी किसी हीरो
की तरह दिखाई दे
कभी दिखने लगे
अगर एक बंदर
अलग अलग
परिस्थितियों में
अलग अलग सा
अपने को कोई
पाता भी है तो
समझ में आता है
समय के साथ
मगर नजरिया
बदल जाता है
शक्ल और शरीर
की तरह नहीं
अपनी तरह का
कुछ अलग सा
हो जाता है
ऐसा ही कुछ
बहुत बार
कहा जाता है
अपने बारे में सोचो
इस बात को लेकर
तो कुछ भी समझ
में नहीं आता है
माना कि
हर किसी की
आदतों के बारे में
सब कुछ नहीं
कहा जाता है
साथ में ना भी
रहा हो कोई
एक दो बार ही
बस मिला जुला हो
लौट कर कभी
फिर दिख जाता है
बहुत अच्छा लगता है
लगता है बहुत
समझ में आता है
हर कोई इसी का जैसा
क्यों नहीं हो जाता है
और एक रहता है
बरसों साथ में
शक्ल और शरीर को
अपनी बदलते हुऐ भी
लगता है सब कुछ
पता चल जाता है
ज्यादा ध्यान से
नहीं देखा जाता है
अपना होता है
अपने जैसा ही
समझ में आता है
और एक दिन
अचानक चिकनाई से
फिसलता हुआ कोई
इसी तरह के एक
घड़े से टकराते हुऐ
जब अपने को बचाता है
तो समझ में आता है
अरे जिसे कई बरसों से
समझा हुआ ही
समझा जाता है
वही क्यों कई बार
किसी खड़ी फसल
या खंबे के पास से
गुजरता हुआ अपनी
एक टाँग उठाता है
‘उलूक’ तेरा कुछ भी
नहीं हो सकता है
अब भी मान जा
बदलता है या नहीं
ये तो पता नहीं
पर जो होता है
कभी ना कभी
सच्चाई को
छुपाते छुपाते भी
अपने नहीं
किसी और के
आईने में छोड़ कर
चला आता है ।
हो ही रहा होता है
हमेशा ही अंतर
कभी किसी हीरो
की तरह दिखाई दे
कभी दिखने लगे
अगर एक बंदर
अलग अलग
परिस्थितियों में
अलग अलग सा
अपने को कोई
पाता भी है तो
समझ में आता है
समय के साथ
मगर नजरिया
बदल जाता है
शक्ल और शरीर
की तरह नहीं
अपनी तरह का
कुछ अलग सा
हो जाता है
ऐसा ही कुछ
बहुत बार
कहा जाता है
अपने बारे में सोचो
इस बात को लेकर
तो कुछ भी समझ
में नहीं आता है
माना कि
हर किसी की
आदतों के बारे में
सब कुछ नहीं
कहा जाता है
साथ में ना भी
रहा हो कोई
एक दो बार ही
बस मिला जुला हो
लौट कर कभी
फिर दिख जाता है
बहुत अच्छा लगता है
लगता है बहुत
समझ में आता है
हर कोई इसी का जैसा
क्यों नहीं हो जाता है
और एक रहता है
बरसों साथ में
शक्ल और शरीर को
अपनी बदलते हुऐ भी
लगता है सब कुछ
पता चल जाता है
ज्यादा ध्यान से
नहीं देखा जाता है
अपना होता है
अपने जैसा ही
समझ में आता है
और एक दिन
अचानक चिकनाई से
फिसलता हुआ कोई
इसी तरह के एक
घड़े से टकराते हुऐ
जब अपने को बचाता है
तो समझ में आता है
अरे जिसे कई बरसों से
समझा हुआ ही
समझा जाता है
वही क्यों कई बार
किसी खड़ी फसल
या खंबे के पास से
गुजरता हुआ अपनी
एक टाँग उठाता है
‘उलूक’ तेरा कुछ भी
नहीं हो सकता है
अब भी मान जा
बदलता है या नहीं
ये तो पता नहीं
पर जो होता है
कभी ना कभी
सच्चाई को
छुपाते छुपाते भी
अपने नहीं
किसी और के
आईने में छोड़ कर
चला आता है ।
पर जो होता है
जवाब देंहटाएंकभी ना कभी
सच्चाई को
छुपाते छुपाते भी
अपने नहीं
किसी और के
आईने में छोड़ कर
चला आता है ।
...वाह...क्या बात है...लाज़वाब...
अच्छी प्रतिक्रिया सर :-[
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति है सरजी !
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