समय को लिखने
वाले लोगों को
ना तो फुरसत होती है
ना ही कुछ लिखने
लिखाने का समय
उनके पास होता है
अवकाश के दिन भी
उनका समय समय
को ही ठिकाने
लगा रहा होता है
कोई चिंता कोई
शिकन नहीं होती है कहीं
कुछ ऐसे लोगों के लिये
जिनकी नजर में
लिखना लिखाना
एक अपराध होता है
और दूसरी ओर
कुछ लोग समय
के लिये लिख
रहे होते हैं
उन को आभास
भी नहीं होता है
और समय ही
उनको ठिकाने
लगा रहा होता है
समय समय की बातें
समय ही समझ
पा रहा होता है
एक ओर कोई
लिखने में समय
गंवा रहा होता है
तो दूसरी ओर
कुछ नहीं लिखने वाला
समय बना रहा होता है
किसका समय बर्बाद
हो रहा होता है
किसका समय
आबाद हो रहा होता है
‘उलूक’ को इन सब से
कुछ नहीं करना होता है
उस की समझ में
पहले भी कुछ
नहीं आया होता है
आज भी नहीं
आ रहा होता है ।
एक
छोटी सी
बात को
थोड़े से
ऐसे शब्दों
में कहना
क्यों नहीं
सीखता है
जिसका अर्थ
निकालने में
समझने में
ताजिंदगी
एक आदमी
शब्दकोषों
के पन्नों को
आगे पीछे
पलटता हुआ
एक नहीं
कई कई बार
खीजता है
बात समझ में
आई या नहीं
यही नहीं
समझ पाता है
जब बात का
एक सिरा
एक हाथ में
और
दूसरा सिरा
दूसरे हाथ में
उलझा हुआ
रह जाता है
छोटी छोटी
बातों को
लम्बा खींच कर
लिख देने से
कुछ भी
नहीं होता है
समझ में
आ ही गई
अगर एक बात
बात में दम ही
नहीं रहता है
कवि की
सोच की तुलना
सूरज से
करते रहने
से क्या होता है
सरकारी
आदेशों की
भाषा लिखने वाले
होते हैं
असली महारथी
जिनके
लिखे हुऐ को
ना
समझ लिया है
कह दिया जाता है
ना ही
नहीं समझ में
आया है कहा जाता है
और
‘उलूक’
तू अगर
रोज एक
छोटी बात को
लम्बी खींच कर
यहाँ ले आता है
तो कौन सा
कद्दू में
तीर मार
ले जाता है ।
एक दिन के
पूरे होने से
जिंदगी बढ़ी
या कम हुई
ऊपर वाले के
यहाँ आवेदन
करने के
हिसाब से तो
अनुभव में
इजाफा
हुआ ही कहेंगे
नीचे वालों के
हिसाब से
देखा जाये
तो जगह
खाली होने के
चाँस बढ़ने
से दिन
कम ही होंगे
गणित जोड़
घटाने का
गणित के
नियमों के
हिसाब से
नहीं होगा
अपनी सुविधा
के हिसाब
से होगा
जो कुछ
भी होगा
या होना होगा
वैसे भी दिन
गिनने वाले
कम ही होते हैं
बाकी सारे
हिसाब किताब
के ऊपर
टाट रखकर
बैठे होते हैं
फर्क किसे
पड़ता है
थोड़ा भी
उनके हिसाब
किताब में
दिन आधे या
पूरे होते हैं
बाकी सभी
के लिये
मुक्ति के
कहीं भी
कोई भी
मार्ग
कहीं भी
नहीं होते हैं
सब मिलकर
काँव काँव
कर लेते हैं
एक ही
आवाज में
मजे की बात
है ना ‘उलूक’
जो कौए भी
नहीं होते हैं ।
बेशरम
भिखारी को
भी शरम
आती जाती है
जब कोई
पूछना शुरु
हो जाता है
उन सब
चीजों के
बारे में
जो नहीं
होती हैं
पास में
पूछने
वाले के
पास होते हैं
हकीकत
से लेकर
सपने सभी
जो भी मिल
जाता है
आज
बाजार में
नकद की
जरूरत
होती ही नहीं
सब कुछ
उपलब्ध
है जब
उधार में
उधारी का रहना
उधारी का गहना
उधारी की सवारी
उधारी की खुमारी
उधारी के ख्वाब
उधारी का रुआब
और
एक बेचारा
सपनों का मारा
जाती है उसकी
मति भी मारी
नहीं ले
पाता है जब
कुछ भी उधारी
झेलता है
प्रश्नो की
तीखी बौछार
पूछ्ने वाला
पूछना कुछ
नहीं चाहता है
बैचैनी उधारी
के साथ
मुफ्त में नकद
खरीद लाता है
चैन उधार में
मिलता नहीं कहीं
उस भिखारी
से पूछने
चला आता है
जो उधारी
नहीं ले पाता है
चैन से पीता है
चैन से खाता है
‘उलूक’
अपनी नजर
से ही
देखा कर
खुद को
किसी की
नजर में
किसी के
भिखारी
हो भी
जाने से
कौन
भीख में
चैन दे
पाता है
उधारी की
बैचेनी
खरीद कर
क्यों
अपनी नींद
उड़ाना
चाहता है
पूछ्ने से
क्या डरना
अगर कोई
पूछ्ने भी
चला
आता है ।
साँप को
देखकर
अत्यधिक
भयभीत
हो गई
महिला के
उड़े हुऐ
चेहरे
को देखकर
थोड़ी देर के लिये
सोच में पड़ गया
दिमाग
के काले
श्यामपट में
लिखा हुआ
सारा सफेद
जैसे काला
होते हुऐ
कहीं आकाश
में उड़ गया
साँप आ ही
रहा था कहीं से
उसी तरह
सरसराता
हुआ निकल गया
हुआ
कुछ किसी
को नहीं
बस माहौल
थोड़ी देर
के लिये
उलटा पुल्टा
होते होते
डगमगाता
हुआ जैसे
संभल गया
जहर था
साँप के अंदर
कहीं रखा हुआ
उसे उसी तरह वो
कंजूस अपने साथ
लेकर निकल गया
महिला ने भी चेहरे
का रंग फिर बदला
पहले जैसा ही
कुछ ही देर में
वैसा ही कर लिया
रोज बदलता है
मेरे चेहरे का रंग
किसी को देखकर
अपने
सामने से
शीशे ने भी
देखते देखते
इससे
सामंजस्य
कर लिया
साँप के
अंदर के जहर
के बारे में
सब ने सब कुछ
पता कर लिया
उसके अंदर
कुछ भी नहीं
फिर कैसे
साँप के
जहर से भी
बहुत ज्यादा
बहुत कुछ
करते ना करते
कर लिया
‘उलूक’
समझा कर
रोज मरने वाले
से अच्छा होता है
एक ही बार
मर कर
पतली गली से
जो
एक बार में ही
निकल लिया ।