उलूक टाइम्स

रविवार, 15 फ़रवरी 2015

पन्नों के पहले पन्ने पन्नों के बाद पन्ने



कुछ काले सफेद पन्ने कुछ खाली सफेद पन्ने
पन्नो से उलझते पन्ने पन्नो से निबटते पन्ने
एक दो से शुरु होकर एक हजार होते पन्ने
किसने गिनने हैं पन्ने किसने पलटने हैं पन्ने
पन्नो के ऊपर पन्ने पन्नो के नीचे पन्ने
कुछ उठे उठे से पन्ने 
कुछ आधी नींद के उनींदे उनींदे से पन्ने
कुछ सोते हुऐ से पन्ने
पन्नों की सुनते पन्ने पन्नों की कहते पन्ने
कुछ इसके यहाँ के पन्ने कुछ उसके वहाँ के पन्ने
कुछ इसके उठाते पन्ने कुछ उसके सजाते पन्ने
कुछ कुछ घटा कर लगाते पन्ने
कुछ कुछ जुड़ा कर लगाते पन्ने
कुछ बस देखने ही आते पन्ने
कुछ देख कर ही जाते पन्ने
कुछ अपने उठाते पन्ने कुछ उसके उठाते पन्ने
पन्नों की भीड़ में कुछ के कभी खो भी जाते पन्ने
पन्नों के आघे पन्ने पन्नों के पीछे पन्ने
पन्नों की कहानियों को पन्नों को सुनाते पन्ने ।

चित्र साभार: www.yoand.biz

शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

जोकर बनने का मौका सच बोलने लिखने से ही आ पायेगा

व्यंग करना है
व्यंगकार
बनना है
सच बोलना
शुरु कर दे
जो सामने से
होता हुआ दिखे
उसे खुले
आम कर दे
सरे आम कर दे
कल परसों में ही
मशहूर कर
दिया जायेगा
इसकी समझ में
आने लगा है कुछ
करने कराने वाला
भी समझ जायेगा
पोस्टर झंडे लगवाने
को नहीं उकसायेगा
नारे नहीं बनवायेगा
काम करने के
बोझ से भी बचेगा
और नाम भी
कुछ कमा खायेगा
 बातों में बोलना
अच्छा नहीं
लगता हो
तो सच को
सबके सामने
अपने आप करना
शुरु कर दे
खुद भी कर और
दूसरों को करने
की नसीहत भी
देना शुरु कर दे
एक दो दिन भी
नहीं लगेंगे
तेरे करने
करने तक
जोकर तुझे
कह दिया जायेगा
किसी ना किसी
अखबार में
छप छपा जायेगा
अपने आस पास
के सच को देख कर
आँख में दूरबीन
लगा कर चाँद को
देखने वालों को
चाँद का दाग
फिर से नजर आयेगा
बनेगी कोई गजल
कोई गीत देश प्रेम
का सुनायेगा
 प्रेम और उसके दिन
की बात भूलकर
रामनामी दुप्ट्टा
ओढ़ कर
कोई ना कोई
संत बाबा जेल
भी चला जायेगा
बचेगी संस्कृति
बचेगा देश
कुछ नहीं भी बचा
तब भी तेरे खुद का
थोड़ा बहुत किसी
छोटे मोटे अखबार
या पत्रिका में
बिकने बिकाने
का जुगाड़ हो जायेगा ।

चित्र साभार: www.picturesof.net

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

लिख कोई भी किताब बिना इनाम बिना सम्मान की कभी भी जिसमें सभी पाठ हों बस तेरे सामने के हो रहे झूठों के


किसी दिन
शायद दिखे
बाजार में
गिनी चुनी
किताबों की
कुछ दुकानों में
एक ऐसी
किताब

जिसमें
दिये गये हों
वो सारे पाठ
जो होते तो हैं
 पर हम
पढ़ाते नहीं हैं
कहीं भी
कभी भी

प्रयोगशाला
में किये
जाने वाले
प्रयोग नहीं
हों जिसमें

होंं झूठ के साथ
किये गये प्रयोग
जो हम
सब करते हैं
रोज अपने लिये
या
अपनो के लिये
ग़ाँधी के सत्य के
साथ किये गये
प्रयोगों की तरह
रोज

किताबों
का होना
और
उसमें लिखी
इबारत का
एक
इबारत होना
देखता
आ रहा है
सदियों से
हर पढ़ने
और नहीं
पढ़ने वाला

लिखने
वाले की
कमजोर
कलम
उठती तो
है लिखने
के लिये
अपनी
बात को
जो उठती
है शूल
की तरह
कहीं उसके
ही अंदर से

पर लिखना
शुरु करने
करने तक
चुन लेती
है एक
अलग रास्ता
जिसमें
कहीं कोई
मोड़
नहीं होता

चल देता
है लेखक
कलम के
साथ स्याही
छोड़ते हुऐ
रास्ते रास्ते
अपनी
बात को
हमेशा
की तरह
ढक कर
पीछे छोड़
जाते हुऐ

जिसे देखने
का मौका
मुड़कर
एक जिंदगी
में तो नहीं
मिलता

फिर भी
हर कोई
लिखता है
एक किताब
जिसमें होते
हैं कुछ
जिंदगी के पाठ

जो बस
लिखे होते
हैं पन्नों में
उतारे जाते हैं
सुनाये जाते हैं
उसी पर प्रश्न
पूछे जाते हैं
उत्तर दिये
जाते हैं
और
जो हो रहा
होता है
सामने से
वो पाठ
कहीं किसी
किताब में
कभी
नहीं होता

क्या पता
किसी दिन
कोई
हिम्मत करे
नहीं हो
एक कायर

’उलूक’
की तरह का
और
लिख डाले
एक किताब
उन सारे
झूठों के
प्रयोगों की
जो हम
तुम और वो
कर रहे हैं रोज
सच को
चिढ़ाने
के लिये
गाँधी जी
की फोटो
चिपका कर
दीवार से
अपनी पीठ
के पीछे ।

चित्र साभार: galleryhip.com

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

इधर का इधर और उधर का उधर करें

हो गया
इधर पूरा
अब उधर चलें
करने वाले
कर रहे हैं
कुछ इधर
कुछ उधर
सोचना है
हमको कब
किधर चलें
कविता गीत
गजल की
बौछार है
उधर भी
और इधर भी
कुछ बोलने
वाले कुछ भी
हमेशा इधर
भी हैं और
उधर भी हैं
फर्क पड़ना
नही है
किसी को
कोई किधर
को भी चले
जिंदगी कट
रही है उनकी
इधर का
उधर करने में
हम भी कुछ
कम कहाँ हैं
उधर का इधर
करने में
कर रहे हैं
सब ही
कुछ ना कुछ
इधर और उधर
बात इधर की
वो इधर करें
हम भी चलें
हमेशा की
तरह आदतन
चल कर उधर
कुछ उधर करें
आइये सब मिल
कर अब करें
इधर और उधर
अलग अलग
रह कर इधर
का इधर और
उधर का उधर
करने की आदतों
को पहले
इधर उधर करें ।

चित्र साभार: www.flickr.com

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

क्या धोया ना कपड़ा रहा ना साबुन रहा सब कुछ पानी पानी हो गया

अब क्या कहूँ
कहने के लिये
कुछ भी नहीं
कहीं रह गया
कुछ मैला तो
नहीं हो गया
सोचने सोचने
तक बिना साबुन
बिना पानी के
हवा हवा में
ही धो दिया
धोना बुरी
बात नहीं पर
इतना भी
क्या धोना
पता चला
कपड़ा ही
धोते धोते
कहीं खो गया
साबुन गल
गया पूरा
बुलबुलों भरा
झाग ही झाग
बस दोनों ही
हाथों में रह गया
हे राम
तू निकला
गाँधी के मुँह से
उनकी अंतिम
यात्रा के पहले
उसके बाद
आज निकल
रहा है एक नहीं
कई कई मुँहों से
एक साथ
हे राम
ये क्या हो गया
भक्तों की पूजा
अर्चना करना
क्या सब
मिट्टी मिट्टी
हो गया
आदमी मेरे
गाँव का लगा
आज तेरे से
ज्यादा ही
पावरफुल
हो गया
अब क्या कहूँ
किससे कहूँ
रोना आ रहा है
धोने के लिये
बाकी कहीं भी
कुछ नहीं रह गया ।

चित्र साभार: www.4to40.com