उलूक टाइम्स

मंगलवार, 10 मार्च 2015

वो लेखा अधिकारी जो नहीं कोशिश करता है हिसाब किताब समझने की ज्यादा समय एक ही कुर्सी पर बिता ले जाता है

अधिकारी का
मतलब 
अधिकार
से ही 
होता
होगा शायद 

ऐसा महसूस
होता है 

और ऐसा नजर 
भी आता है 
पैसे का
हिसाब किताब 

करने वाले को 
लेखाधिकारी
कहा जाता है 

लेखाधिकारी का
बहुत 
कम संख्या
में पाये जाने 

का हिसाब समझ 
में नहीं आता है 
वैसे तो सरकार
की 
नजर लेकर
सरकारी आदमी ही 

कुर्सी पर बैठाया
जाता है 
पर
कभी कभी
हिसाब किताब 

की मजबूरियाँ
गैर सरकारी 

को भी कुर्सी पर
बैठा ले जाता है

‘उलूक’ की आँख
भी देखती है 
पैसे
का हिसाब किताब 

पैसा खाने खिलाने
में उसे 
भी बहुत
मजा आता है

हर अधिकारी
के कार्यकाल 

की अवधि अलग
अलग होती है 

लेकिन लेखाधिकारी
बहुत 
थोड़े समय में
यहाँ से वहाँ 

कर दिया जाता है 
लेखा का हिसाब
समझने  
वाले
का इतना छोटा 

कार्यकाल
क्यों होता है 

किसी से पूछने
पर भी 
पता
नहीं चल पाता है 

थोड़ी सी जासूसी
करने पर 
कुछ
कुछ कहीं खुला 

हुआ नजर आता है 
लेखाधिकारी आता है 
कोशिश करता है 
समझने की
हिसाब किताब को 

और जैसे ही
समझने वाले को 

पता चलता है
वो समझ गया 

तुरंत उसका
स्थानांतरण 

किसी दूसरी
जगह का 

हिसाब किताब
समझने 
के लिये
कर दिया जाता है ।

चित्र साभार: www.presentermedia.com

सोमवार, 9 मार्च 2015

नहीं लिखा जाता है तो क्यों लिखने चला आता है


छोड़ता कोई किसी को है डाँठ कोई और खाता है
इस देश में होने लगा है बहुत कुछ अजीब गरीब
किसी की करनी का फल किसी और की झोली में चला जाता है

फैसला घर वालों 
का घर में ही लिया जाता है
घर से निकल कर कैसे जनता में चला जाता है

चीर फाड़ होना 
शुरु होती है
कोई छुरा तो कोई कुल्हाड़ी लिये नजर आता है

बकरी खेत में खुली 
घूम रही होती है
फोटो खींचने वाला रस्सी की फोटो खींच लाता है

लिखने के लिये रोज ही मिलता है कुछ मसाला
पकाते पकाते कुछ कच्चा कुछ पक्का हो जाता है

खाने को भी 
किसने आना है
किसी के लिये नमक कम किसी के लिये मसाला ज्यादा हो जाता है

कौन किसके साथ है कौन किसके साथ नहीं है
पहले भी कभी समझ में नहीं आ पाया
अब इस उम्र में आकर जो क्या आ पाता है

घर संभलता नहीं है 
जिस किसी से
वो देश को संभालने के लिये चला जाता है
‘उलूक’ बैठा  टी वी के सामने रोज दो में से चार घटाता है

चित्र साभार: galleryhip.com

रविवार, 8 मार्च 2015

महिला के लिये कुछ करना नहीं है उसका दिन ही बस एक मना लेते

दिन डूबते चाय
की तलब लगी
और आदतन
मुँह से निकल बैठा
आज चाय
नहीं बनेगी क्या
उत्तर मिला
आज महिला दिवस है
आज तुम ही
क्यों नहीं बना देते
एक कप खुद पी लेते
एक हमें भी पिला देते
एक दिन ही सही
हम भी अपना
कुछ मना लेते
पूरे साल भर
कुछ करने के लिये
कुछ नहीं कहा गया है
एक दिन दिखाने
के लिये ही सही
फोटो सोटो कुछ
खिचवा लेते
सालों साल से
लगी हुई हैं माँऐं
बहने बीबियाँ
तराशने में
कुछ ना कुछ
एक दिन थोड़ा
कुछ कर करा कर
अपना बिगुल
क्यों नहीं
बजवा लेते
सीखने सिखाने
के लिये बहुत
से बाजीगर
मिल जायेंगे
अपने ही
आस पास तुमको
अपने घर
को छोड़ कर
किस और
के बगीचे में
कुछ फूल पत्तियाँ
ही सजवा लेते
महिला दिवस
मनाने के लिये
महिलाओं को
शामिल किया जाये
ये किसी कानून
में नहीं लिखा है
कुछ आदमी
जमा कर के
कुछ केक सेक
कटवा लेते
ढिंढोरा पीटने को
खड़ी रहती ही सेना
तुम्हारे छींकने का
ढिंढोरा पीटने के लिये
छीँकना भी इसके
लिये जरूरी नहीं
दूर से ही सही
अपनी घर की
महिला के लिये
प्रेस काँफ्रेंस कर एक
सफेद रुमाल
बस हिला कर
महिला दिवस ही
आज मना लेते ।


चित्र साभार: www.clipartpanda.com

शनिवार, 7 मार्च 2015

मुझे ही लगा या तुझे भी कुछ महसूस हुआ

किसी ने गौर
भी नहीं किया
मीडिया भी
चुप चाप रहा

हर बार इसकी
और उसकी
तलवार लेकर
वार करने की
फितरत वाला

इस बार की
होली में आखिर
क्यों कहीं
भी नहीं दिखा

होली में देश
नहीं होता है क्या
होली में प्रेम
नहीं होता है क्या

उसके चेहरे पर
किसी ने कोई रंग
आखिर
क्यों नहीं लिखा

ज्वलंत है प्रश्न
पर उत्तर कहीं भी
लिखा हुआ
नहीं बिका

ऐसा क्या बस
मुझे ही लगा
या किसी और ने भी
इस बात को सोचा

झाडू‌ तक उठा
ले गया था किसीका
रंग देख कर क्यों
और
कहाँ खिसक गया

हिंदू मुसलमान
सिख और ईसाई
को भूल गया

समझ में सच में
नहीं आ रहा है
कोई समझाये मुझे

क्या इसी बीच
कुछ दिनों
कश्मीर जाकर क्या

वो आदमी हो गया
रंगीन चेहरे बनाने
में माहिर रंग हीन
किसलिये हो गया ?

चित्र साभार: www.disneyclips.com


शुक्रवार, 6 मार्च 2015

होली हो ली मियाँ चलो आओ शुरु करते हैं खोदना फिर से अपना अपना कुआँ

होली हो ली मियाँ
चलो आओ
शुरु करते हैं
खोदना फिर से
अपना अपना कुआँ
अपनी अपनी समझ
की समझ है
अपनी अपनी
आग और
अपना ही
होता है धुआँ
जमाना बहुत
तरक्की पर है
अनदेखा
मत कीजिये
देखिये परखिये
अपनी अपनी
अक्ल से नापिये
कुत्तों की पूँछ
की लम्बाईयाँ
एक ही नस्ल
की अलग
मिलेगी यहाँ
और अलग
मिलेगी वहाँ
वो अपने कुत्ते
को होशियार
बतायेगा
मुझे अपने ही
कुत्ते पर
बहुत प्यार आयेगा
कुत्ता आखिर
कुत्ता ही होता है
ना वो समझ पायेगा
ना मेरी ही समझ
में ये आ पायेगा
सियार भी अब
टोलियों में
निकलते हैं कहाँ
कर जरूर रहे हैं
पर अकेले में
खुद अपने अपने
लिये हुआँ हुआँ
होली हो ली
इस साल की मियाँ
आगे के जुगाड़
पर लग जाओ
लगाओ आग कहीं
बनाओ कुछ धुआँ
मिलेगी जरूर
कोई पहचान
‘उलूक’ तुझे भी
और तेरी सोच को
कर तो सही
कुछ उसका जैसा
जिसे कर कर के
वो बैठा है आज
बहुत ऊपर वहाँ ।

चित्र साभार: funny-pictures.picphotos.net