उलूक टाइम्स: साथ
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सोमवार, 19 अगस्त 2019

कलम की भी आँखें निकल सकती हैं कभी चश्मे भी आ सकते हैं बाजार में पढ़ देने वाले निराश नहीं होते हैं




कुछ
लिखते
बहुत कुछ हैं

मगर
किताब
नहीं होते हैं 

कुछ
लिखी
लिखायी
किताबों के

पन्ने
साथ
नहीं होते हैं 

कुछ
किताबें
देखते हैं

लिखते हैं
दिन
और रात
नहीं होते हैं 

किताबों
को
लिखना
नहीं होता है

उनके
हाथ नहीं होते हैं 

कुछ
बस
लिखते
चले जाते हैं

रुकने के
हालात
नहीं होते हैं 

चलती
कलम होती हैं

और

पैर
कभी
किसी के
आँख
नहीं होते हैं 

अजीब
सा रोते हैं

कुछ
रोने वाले
हमेशा
सोच कर

बेबात
नहीं रोते हैं 

लिखें
और
पढ़ें भी

पढ़ें और
लिखें भी

दो रास्ते

एक
साथ
नहीं होते हैं 

सीखने वाले
सीख लेते हैं
लिखते पढ़ते

कुछ ना कुछ
लिखना पढ़ना
‘उलूक’

इतना
भी
हताश
नहीं होते हैं

कलम
की भी

आँखें
निकल
सकती हैं
कभी

चश्मे भी
आ सकते हैं
बाजार में
पढ़
देने वाले

निराश
नहीं होते हैं ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com

रविवार, 25 अक्टूबर 2015

राम ही राम हैं चारों ओर हैं बहुत आम हैं रावण को फिर किसलिये किस बात पर जलाया


विजया दशमी के जुलूस में
भगदड़ मचने पर 
पकड़ कर थाने लाये गये
दो लोगों से 
जब पूछताछ हुई 

एक ने अपने को लंका का राजा रावण बताया 

दस सिर तो नहीं थे 
फिर भी हरकतों से सिर से पाँव तक
रावण जैसा ही नजर आया 

और दूसरे की पहचान
बहुत आसानी से 
अयोध्या के भगवान राम की हुई 

जिनको बिना देखे भी 
सारे के सारे रामनामी दुपट्टे ओढ़े भक्तों ने 
आँख नाक कान बंद कर के 
जय श्री राम का नारा जोर शोर से लगाया 

दोनो ने अपना गाँव 
इस लोक में नहीं 
परलोक में कहीं होना बताया 

मजाक ही मजाक में उतर गये 
उस लोक से इस लोक में 
इस बार दशहरा 
पृथ्वी लोक में आकर
खुद ही देखने का प्लान 
उन्होने खुद नहीं 
उनके लिये ऊपर उनके ही
किसी चाहने वाले ने बनाया 
ऊपर वालों ने नीचे आने जाने में अड़ंगा भी नहीं लगाया 

भीड़ से पल्ला पड़ा जब 
राम और रावण का नीचे उतर कर 

भीड़ में से किसी ने अपने आप को राम का भाई 
किसी ने चाचा 
किसी ने बहुत ही नजदीक का ताऊ बताया 

रावण के बारे में पूछने पर 
किसी ने कोई जवाब नहीं दिया 
इसने उससे और उसने किसी और से
पूछने की राय दे कर अपना 
मुँह इधर और उधर को किया 
सभी ने अपना अपना पीछा रावण को देखते ही छुड़ाया 

राम की बाँछे खिली 
सामने खड़ी सारी जनता से उनकी 
खुद की रिश्तेदारी मिली 

और 
रावण बेचारा
सोच में पड़े खड़ा रह पड़ा 
किसलिये और किस मुहूर्त में 

राम के साथ रामराज्य की ओर 
ऊपर से नीचे एक बार 
और 
अपनी जलालत देखने निकल पड़ा ? 

चित्र साभार: www.shutterstock.com

सोमवार, 9 मार्च 2015

नहीं लिखा जाता है तो क्यों लिखने चला आता है


छोड़ता कोई किसी को है डाँठ कोई और खाता है
इस देश में होने लगा है बहुत कुछ अजीब गरीब
किसी की करनी का फल किसी और की झोली में चला जाता है

फैसला घर वालों 
का घर में ही लिया जाता है
घर से निकल कर कैसे जनता में चला जाता है

चीर फाड़ होना 
शुरु होती है
कोई छुरा तो कोई कुल्हाड़ी लिये नजर आता है

बकरी खेत में खुली 
घूम रही होती है
फोटो खींचने वाला रस्सी की फोटो खींच लाता है

लिखने के लिये रोज ही मिलता है कुछ मसाला
पकाते पकाते कुछ कच्चा कुछ पक्का हो जाता है

खाने को भी 
किसने आना है
किसी के लिये नमक कम किसी के लिये मसाला ज्यादा हो जाता है

कौन किसके साथ है कौन किसके साथ नहीं है
पहले भी कभी समझ में नहीं आ पाया
अब इस उम्र में आकर जो क्या आ पाता है

घर संभलता नहीं है 
जिस किसी से
वो देश को संभालने के लिये चला जाता है
‘उलूक’ बैठा  टी वी के सामने रोज दो में से चार घटाता है

चित्र साभार: galleryhip.com

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

बदल जमाने के साथ चल

जमाने के 
साथ आ
जमाना अपना मत बना
ईमानदारी कर मत बस खाली दिखा

अन्ना की तरफदारी भी कर ले
कोई तेरे को कहीं भी नहीं रोक रहा
सफेद टोपी भी लगा 

शाम को मशाल जलूस अगर कोई निकाले
अपने सारे गिरोह कोउसमें शामिल करा लेजा

"सत्य अहिंसा भाईचारा कुछ नये प्रयोग" पर
सेमिनार करा 
संगोष्ठी करा वर्कशोप करा

इन सब कामों में हम से कुछ भी काम तू करवा

हमें चाहे एक धेला भी ना दे जा
पर हमारे लिये परेशानी मत बनजा 

कल उसने कुत्ते को देख कर बकरी कहा
कोई कुछ कर पाया
हमने कुत्ते को कागज पर 
"एक बकरी दिखी थी"
का स्टेटमेंट जब लिखवाया 

अब भी संभल जा उन नब्बे लोगों में आ
जिन्होने कुत्ते को बकरी कहने पर 
कुछ भी नहीं कहा
बस आसमान की तरफ देख कर 
बारिश हो सकती है कहा
बचे दस पागलों का गिरोह मत बना 
जिनको कुत्ता कुत्ता ही दिखा

गाड़ी मिट्टी के तेल से घिसट ही रही हो
पहुंच तो रही है कहीं
पैट्रोल से चलाने का सुझाव मत दे जा

'उलूक' जाके कहीं भी आग लगा
और हमारी तरह 
सुबह के अखबार मे अपनी फोटो पा
बधाई ले लडडू बंटवा। 

चित्र सभार: https://www.deviantart.com/kimjam/art/you-look-like-a-dog-798957425