उलूक टाइम्स

गुरुवार, 18 जनवरी 2018

आग लगा दीजिये शराफत को समझ में आ गये हैं बहुत शरीफ हैं बहुत सारे हैं हैं शरीफ लोग

कुछ में
बहुत कुछ
लिख देते हैं
बहुत से लोग

बहुत से लोग
बहुत कुछ
लिख देते हैं
कुछ नहीं में भी

कुछ शराब
पर लिख देते
हैं बहुत कुछ
बिना पिये हुऐ भी

कुछ पीते हैं शराब
लिखते कुछ नहीं हैं
मगर नशे पर कभी भी

कुछ दूसरों
के लिखे को
अपने लिखे में
लिख देते हैं

पता नहीं
चलता हैं
पढ़ने वाले को

बहुत बेशरम
होते हैं बहुत से
बहुत शरीफ
होते हैं लोग

चेहरे कभी
नहीं बताते
हैं शराफत
बहुत ज्यादा
शरीफ होते हैं
बहुत से लोग

दिमाग घूम
जाता है
‘उलूक’ का
कई बार

उसकी पकाई
हुई रोटियाँ
अपने नाम से
शराफत के
साथ जब
उस के सामने
से ही सेंक
लेते  हैं लोग ।

चित्र साभार: http://www.clker.com

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

तेरह सौ वीं बकवास हमेशा की तरह कुछ नहीं खास कुछ नजर आये तो बताइये


तेरह 
के नाशुक्रे
नामुराद अंक
पर ना जाइये

इतनी तो
झेल चुके हैं
पुरानी कई

आज की
ताजी नयी पर
इरशाद फरमाइये

कहने का
बस अन्दाज है
एक नासमझ का
जनाब अब तो
समझ ही जाइये

हिन्दी और
उर्दू से मिलिये
इस गली की
इस गली में

उस गली की
अंगरेजी
उस गली में
रख कर आइये

किसलिये
बतानी हैं
दिल की
बातें किसी को

छुपाने के लिये
कुछ छुपी
बातें बनाइये

तलबगार
किसलिये हैं
मीठे के इतने
नमकीन खाइये


निकल लीजिये
किसी पतली गली में
बेहोश हो कर गिर जाइये


छुपती नहीं है
दोस्ती दुश्मनी
बचिये नहीं
खुल के सामने आइये

मरना तो
सब को है इक दिन
कुछ इस तरह से
या उस तरह से


मरवा दे
कोई इस से पहले
मौका ना देकर
खुद ही मर जाइये


‘उलूक’
तेरहवीं करे
तेरह सौ वीं
बकवास
की जब तक

नई
इक ताजी
खबर की
कबर पर
आकर

मुट्ठी भर
धूल उड़ाइये।

चित्र साभार: https://www.lilly.com.pk/en/your-health/diabetes/complications-of-diabetes/index.aspx

रविवार, 14 जनवरी 2018

अलाव में रहे आग हमेशा ही सुलगती हुई इतनी लकड़ियाँ अन्दर कहीं अपने कहाँ जमा की जाती हैं

लकड़ियों से उठ रही लपटें 
धीरे धीरे 
एक छोटे से लाल तप्त कोयले में 
सो जाती हैं 

रात भर में सुलग कर 
राख हो चुकी 
कोयलों से भरी सिगड़ी 
सुबह बहुत शांत सी नजर आती है 

बस यादों में रह जाती हैं 
ठंडी सर्द शामें जाड़ों के मौसम की 

धीमे धीमे 
अन्दर कहीं सुलगती हुई आग 
बाहर की आग से जैसे 
जान पहचान लगवाना चाहती हैं 

लकड़ी का जलना 
आग धुआँ और फिर राख 
इतनी सी ही तो होती है जिन्दगी 

फिर भी 
सिरफिरों की आग से खेलने की आदत 
नहीं जाती है 

कुरेदने में बहुत मजा आता है 
बुझी हुई राख को 

जलती 
तेज लपटों से तो दोस्ती 
बस दो स्केल दूर से ही की जाती है 

कहाँ सोच पाता है आदमी 
एक अलाव हो जाने का खुद भी 
आखरी दौर में कभी 

अन्दर 
जलाकर अलाव ताजिंदगी 
ना जाने बेखुदी में 
कितनी कितनी आगें पाली जाती हैं 

‘उलूक’ 
कुछ भी लिख देना 
इतना आसान कहाँ होता है

किसी भी बात पर 
फिर भी 
किसी की बात रखने के लिये 

बात
कुछ इस तरह भी 
अलाव में
अन्दर सेक कर 
बाहर पेश की जाती हैं । 

चित्र साभार: http://www.clipartpanda.com

बुधवार, 10 जनवरी 2018

क्या लिखना है इस पर कुछ नहीं कहा गया है हिन्दी सीखिये रोज कुछ लिखिये गुरु जी ने वर्षों पहले एक मन्त्र दिया है

वृन्द के दोहे
‘करत करत
अभ्यास के
जड़मति
होत सुजान’
के
याद आते ही
याद आने शुरु
हो जाते हैं


हिन्दी के
मास्टर साहब
श्यामपट चौक
हिन्दी की कक्षा

याद आने
लगता है
‘मार मार कर
मुसलमान
बना दूँगा मगर
हिन्दी जरूर
सिखा दूँगा’
वाली उनकी
कहावत में
मुसलमान
शब्द का प्रयोग

और जब भी
याद आता है
उनका दिया
गुरु मन्त्र

‘लिख
कर पढ़
फिर पढ़
कर समझ’

जड़मति
‘उलूक’
फिर से लिखना
शुरु हो जाता है

लिखना
रोज का रोज
वो सब जो
उसकी समझ में
नहीं आ पाता है

लिखते लिखते
पता नहीं कितना
कितना लिखता
चला जाता है

ना जड़ मिलती है
ना मति सुधरती है
ना ही मुसलमान
हो पाता है

मार पड़ने का
तरीका बदलता
चला जाता है

मार खाता है
लिखता है
लिख कर
चिल्लाता है

फिर भी
ना जाने क्यों
ना हिन्दी ही
आ पाती है

ना
समझ ही
अपनी समझ
को समझ
पाती है

एक पन्ने के
रोज के
अभ्यास को
पढ़ने के लिये

कोई
आता है
कोई नहीं
आता है

कहाँ पता
हो पाता है
यही
‘करत करत
अभ्यास के
जड़मति
होत सुजान’

उससे
पता नहीं
कब तक
कितना कितना
और ना जाने
क्या क्या आगे
लिखवाता है ?

चित्र साभार: http://www.clipartguide.com

सोमवार, 8 जनवरी 2018

घर का कुत्ता बहुत प्यारा होता है आओ कुत्ता हो जायें और घर में रहें

मुझे कोई
दिलचस्पी
नहीं है
करने में

 मेरा कुत्ता
तेरे कुत्ते से
सफेद कैसे

तेरा कुत्ता
सफेद है
पॉमेरियन है
मेरा कुत्ता
ढटुआ है
भूरा है

ये भी
कोई
बात है

कुत्ते भी
कभी
नापे
जाते हैं

कुत्ते कुत्ते
होते हैं

होते हैं
तो
होते हैं
इसमें
कौन सी
बुराई है

एक कुत्ते
को लेकर
काहे
इतनी सारी
कहानियाँ
बनाना

कुछ लोग
कुत्ते पर ही
रामायण
लिख रहे हैं
आजकल

रामायण या
रामचरित
मानस में
कुत्ते
का जिक्र
हुआ या
नहीं हुआ
उसे
पता होगा
जिसने
पढ़ी होगी
किताबें
तुलसी की
या
बाल्मीकि की

कितने
लोग
पढ़ते हैं
कहाँ पता
चलता है

फिर भी
कुत्ते को
देखकर
बहुत
से लोग
बहुत कुछ
कहते हैं

लोग
और कुत्ते
दो अलग
बातें हैं

कुत्ते को
देखकर
कुछ
कह देना
आसान है

लोग भी
कुत्ते होते हैं
भौकते भी हैं
सारे कुत्तों
को पता
होता है
लोगों का
जो
भौंकते हैं

कुत्तों
की तरह
वफादारी
करना
सबके
बस का
नहीं होता है

बहुत
मन होता है
कुत्ता
हो जाने का
बहुत
मन होता है
भौंकने का
बहुत
मन होता है
काटने का
बहुत
मन होता है
पूँछ हिलाने का
बहुत
मन होता है
बहुत कुछ
करने का
पर
‘उलूक’
कुछ नहीं
हो सकता है यहाँ
जहाँ सब
कुत्ते हो चुके हैं
अपने अपने
हिसाब के
अपनी अपनी
वफादारी बेचकर

कुत्तों को
मानकर
कुत्ता हो जाना
बुरा सौदा नहीं है ।

चित्र साभार: www.wpclipart.com