उलूक टाइम्स: मर
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मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

डरना मना है /जो डर गया सो मर गया/ डरना है/ डर के आगे जीत है


रोज के डरे हुऐ के लिये 
कोई नयी बात नहीं है एक नया डर
या फिर हमेशा के कुछ
पुराने कई छोटे छोटे अनेक डर 

या
भयानक बड़ा सा एक डर

घेर कर डराने की कला में माहिर
एक डरे हुऐ के पैदा किये हुऐ डरों से डरते
सारे डरे हुऐ घिर गये हैं
डरों के खण्डहरों के अन्दर की
चाहरदीवारों के बीच कहीं

घर घर खेलने बुनने के आदेश का पालन
करने की जुगत लगाते हुऐ
खिसियाये नहीं हैं हर्षित हैं
बाँट रहे हैं खुश्बूदार फूलों से
लबालब भरी टोकरियों के भड़कीले चित्र

जिनके नीचे से किसी कोने में दुबका हुआ है अंधा हो चुका
काला चश्मा लगाया हुआ डर

सब पर सब कुछ लागू नहीं होता है
निडर होना दिखाना निडर होना
अलग अलग पहलू हैं

मृत्यु शाश्वत है
समय निर्धारित है आस्तिकों के लिये
नास्तिक होना गुनाह नहीं है

डर पर निडर के मुखौटे चिपकाये
सकारात्मकता के लबादे ओढ़े
मौसमी संतों के प्रवचनों के संगीत से उछलती
टी आर पी से

पेट में भरे पानी में बनती उर्मियों का
साँख्यिकी में कोई उपयोग होता है अनसुना है

ऐसे ही एक एक कर डरे हुओं का जमा होना
इशारों इशारों में किसी डरे हुऐ के
डरे सिपाहियों की फौज से
टकराने निकल पड़ना
पकड़ कर अपने अपने खाली हवा भरे पेट
गलत कहाँ है

ऐसे में ही
एक भरे पेट को शिकायत होना
दूसरे भरे पेट से
कुछ करते क्यों नहीं
का
उलाहना देना 


आप ही बता दीजिये
पेट दर्द में मालिश से हवा निकालने की दवा
 
एक जम्हाई के साथ शट डाउन का बटन का दबना
और फिर नींद का आ जाना

अपने डर तू भी निकाल ले ‘उलूक’
माहौल बना बनाया है
फिर क्या पता कब शुरु हो अगली बार
निडरों की जमात का ये खेल
डरना मना है डर के आगे जीत है वाला।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

तेरह सौ वीं बकवास हमेशा की तरह कुछ नहीं खास कुछ नजर आये तो बताइये


तेरह 
के नाशुक्रे
नामुराद अंक
पर ना जाइये

इतनी तो
झेल चुके हैं
पुरानी कई

आज की
ताजी नयी पर
इरशाद फरमाइये

कहने का
बस अन्दाज है
एक नासमझ का
जनाब अब तो
समझ ही जाइये

हिन्दी और
उर्दू से मिलिये
इस गली की
इस गली में

उस गली की
अंगरेजी
उस गली में
रख कर आइये

किसलिये
बतानी हैं
दिल की
बातें किसी को

छुपाने के लिये
कुछ छुपी
बातें बनाइये

तलबगार
किसलिये हैं
मीठे के इतने
नमकीन खाइये


निकल लीजिये
किसी पतली गली में
बेहोश हो कर गिर जाइये


छुपती नहीं है
दोस्ती दुश्मनी
बचिये नहीं
खुल के सामने आइये

मरना तो
सब को है इक दिन
कुछ इस तरह से
या उस तरह से


मरवा दे
कोई इस से पहले
मौका ना देकर
खुद ही मर जाइये


‘उलूक’
तेरहवीं करे
तेरह सौ वीं
बकवास
की जब तक

नई
इक ताजी
खबर की
कबर पर
आकर

मुट्ठी भर
धूल उड़ाइये।

चित्र साभार: https://www.lilly.com.pk/en/your-health/diabetes/complications-of-diabetes/index.aspx

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

समय के साथ मर जाने वाले लिखे पढ़े को छापने से क्या होगा

पेड़ की शाख पर ही
बैठ कर देखा था
जटायू ने भी
बहुत कुछ उस समय
बहुत कुछ बताया भी था
मरते मरते तक भी
राम को सीताहरण
का आँखों देखा हाल
तुलसीदास जी तो
लिख भी गये थे
रामचरित मानस में
जंगल के बीच हुआ
सारा का सारा बबाल
दूरियाँ बहुत थी
बात जाती ही थी
बहुत दूर तलक जब
निकल ही लेती थी
गजल तब भी बनती थी
संगीत भी दिया जाता था
अपसरायें भी उतर लेती थी
कभी कभी ऊपर
आसमान से नीचे
इस धरती पर
धरती पर ही जैसे
एक स्वर्ग उतर आता था
लिखा गया होगा
जरूर कहीं ना कहीं
सच भी होगा
एक कहाँनी नहीं होगी
जरूर इतिहास के किसी
मोड़ का वर्णन होगा
और इसी लिये तो
उस जमाने का राम
आज तक जिंदा होगा
औरत का अपहरण
और उसके घर से
उसके निष्काशन का बिल
उस समय की संसद में
ही पास हो गया होगा
इसी लिये बेधड़क
हिम्मती लोगों के द्वारा
आज तक प्रयोग
हो रहा होगा
बस राम राज्य की
कल्पना को कहीं
ऊपर से संशोधन
के लिये लौटा
दिया गया होगा
जटायू को दूर तक
नहीं देखने की
चेतावनी भी तभी
दे दी गई होगी
एक उल्लू भी तभी से
हर शाख पर बैठा
दिया गया होगा
और इन्ही उल्लुओं
की खबर छापने के लिये
उल्लुओं में सबसे उल्लू
को एक अखबार निकालने
के लिए कह
दिया गया होगा
इतिहास भी होगा
सीता और राम
भी चलता चलेगा
तुलसीदास की
रामचरित मानस की
रायल्टी के लिये
सुप्रीम कोर्ट का
फैसला भी होगा
उल्लूक की समझ में
नहीं आई तो बस
यही बात कि उसने
उल्लूक के अखबार
की किताब छाप लेने
को क्यों कहा होगा
शायद उसे मालूम
हो गया होगा
आने वाले समय में
कूड़े के व्यापार में ही
नुकसान कम और
नफा ज्यादा होगा !

सोमवार, 3 सितंबर 2012

अच्छी दिखे तो डूब मर

घरवाली
की आँखें
एक अच्छे
डाक्टर को
दिखलाते हैं

काला चश्मा
एक बनवा के
तुरंत दिलवाते हँ

रात को भी
जरूरी है
पहनना

एक्स्ट्रा
पैसे देकर
परचे में
लिखवाते हैं

दिखती हैं
कहीं भी
दो सुंदर
सी आँखें

बिना
सोचे समझे ही
कूद जाते हैं

तैराक होते हैं
पर तैरते नहीं
बस डूब जाते हैं

मरे हुऎ
लेकिन कहीं
नजर नहीं आते हैं

आयी हैं
शहर में
कुछ
नई आँखे

खबर पाते ही

गजब के
ऎसे कुछ
कलाकार

कूदने
की तैयारी
करते हुऎ

फिर
से हाजिर
हो जाते हैं

हम
बस यही
समझ पाते हैं

अच्छे
पिता जी
अपने बच्चों को

तैरना
क्यों नहीं
सिखाते हैं ।

बुधवार, 11 जुलाई 2012

हाथी के निकलते अगर पर

चींटी की जगह
हाथी के अगर
पर निकलते
तो क्या होता
क्या होता
वही होता
जो अकसर
हुआ करता है
जिसे सब
आसानी से
मान जाते हैं
और अपना
दिमाग फिर
नहीं लगाते हैं
मतलब मंजूरे
खुदा होता
पर सुना है
जब पर
निकलते हैं
तो चीटीं मर
जाती है
दुबारा कहीं
नजर नहीं
कभी आती है
तो हाथी भी
क्या उड़ते
उड़ते मर जाता
अब हाथी
मरता तो पक्का
नजर आता
ऊपर से गिरता
तो पता नहीं
कितनो को
अपने साथ
ऊपर ले जाता
सुबह सुबह
अखबार के
फ्रंट पेज पर
भी फोटो के
साथ आ जाता
चींटी की खबरे
अखबार छुपा
भी ले जाता
तो किसी को
क्या पता
चल पाता
चींटी को
दफनाना तो
छोटी सी
लकड़ी से
हो जाता
पर हाथी
दफनाने के
लिये उतनी
ही बड़ी मशीन
कोई कहाँ से
ला पाता
खाली पीली
एक्स्पोज
नहीं हो जाता
अच्छा है
चींटी का ही
पर निकलता है
और किसी को
पता भी नहीं
कुछ चलता है ।