उलूक टाइम्स: श्रीमती जी
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गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

आज कुत्ते का ही दिन है समझ में आ रहा था

सियार को
खेत से
निकलता
हुआ देखते ही

घरेलू कुत्ता
होश खो बैठा

जैसे
थोड़ा नहीं
पूरा ही
पागल हो गया

भौंकना शुरु
हुआ और
भौंकता ही
चला गया

बहुत देर तक
इंतजार किया
कहीं कुछ
नहीं हुआ

इधर बाहर
से किसी
ने आवाज
लगाई

सुनकर
श्रीमती जी
रसोई से ही
चिल्लाई

देख भी दो
बाहर कोई
बुला रहा है

कितनी देर से
बाबू जी बाबू जी
चिल्ला रहा है

उधर बंदरों
की टोली
ने लड़ना
शुरु किया
एक के
बाद दूसरे ने
खौं खौं
चीं चीं पीं पीं
करना शुरु किया

छत से पेड़ पर
पेड़ से छत पर
एक दूसरे
के पीछे
लड़ते मरते
कूदते फाँदते
भागना शुरु किया

उसी समय
बिजली ने
बाय बाय
कर अंधेरा
करते हुऐ
एक और
झटका दे दिया

इंवर्टर
चला कर
वापस
लौटा ही था
फोन तुरंत
घनघना उठा

बगल के
घर से ही
कोई बोल
रहा था
दो कदम
चलने से भी
परहेज कर
रहा था

टेलीफोन
डायरेक्टरी
देख किसी
का नम्बर
बताने को
बोल रहा था

झुंझुलाहट
शुरु हो
चुकी थी
मन ही मन
खीजना
मुँह के अंदर
बड़बड़ाने को
उकसा चुका था

बीस मिनट
दिमाग खपाने
के बाद भी
माँगे गये
नंबर का
अता पता
नहीं था

फोन पर
माफी मांग
थोड़ा चैन से
बैठा ही था

इंवर्टर ने
लाल बत्ती
जला कर
बैटरी डिसचार्ज
होने का
ऐलार्म बजाना
शुरु कर दिया था

कुत्ता अभी भी
पूरे जोश से
गला फाड़ कर
भौंके जा रहा था

श्रीमती जी
का
सुन्दर काण्ड
पढ़ना शुरु
हो चुका था

घंटी
बीच बीच में
कोई बजा
ले रहा था

लिखना शुरु
करते ही
जैसे पूरा
हो जा रहा था

आज इतने
में ही
सब कुछ
जैसे कह दिया
जा रहा था

बाकी सोचने
के लिये
कौन सा
कल फिर
नहीं आ
रहा था

कुत्ता
अभी भी
बिल्कुल
नहीं थका था

उसी अंदाज
में भौंकता
ही चला
जा रहा था ।

शनिवार, 11 अगस्त 2012

श्रीमती जी की एक राय

लिख लिख 
और लिख
लिखता ही 

चला जा
पर तुझे वो कुछ 

नहीं है पता 
जो मुझको है पता
बस लिखने से
नहीं होने वाला है
तेरा कुछ भला
इन चार लोगों की
दी हुई टिप्पणियों
पर मत इतरा
कुछ मेरी भी
कभी सुनता जा
कुछ करना ही
चाहता है तो
जूते नये ब्राँडेड
लेकर आ
पालिश लगा
कर चमका
ऎसा एक ही दिन
नहीं करना है
समझ जा
इसे अपनी
रोज की
एक आदत बना
कोट की जेब
वो भी ऊपर वाली
में सफेद रुमाल भी
एक अटका
जरा सा धूल
नजर आये
कहीं भी जूते पर
तो थोड़ा रुक जा
रुमाल फिरा
और जूता चमका
व्यक्तित्व की
एक झलक होता है
किसी का
चमकता हुआ जूता
हींग लगे ना फिटकरी
सबसे सस्ता भी
होता है ये तरीका
जूते पर
कर भरोसा
अब भी समय है
समझ जा
लिखने को
मत आजमा
किसी को नहीं
आता है
तेरे लिखे में
कोई मजा
एक बार अपनी
श्रीमती के
कहने को
भी तो आजमा
फिर देख
कैसे उठता है
लोगों के
दिल से धुआँ ।

शुक्रवार, 11 मई 2012

धैर्य मित्र धैर्य

आज प्रात:
उठने से ही

विचार
आ रहा था

श्रीमती जी पर
कुछ लिखने का
दिल चाह रहा था

सोच बैठा
पूरे दिन
इधर उधर
कहीं भी
नहीं देखूंगा

कुछ
अच्छा सा
उन पर लिख कर
शाम को दे दूंगा

घर से
विद्यालय तक
अच्छी बातें
सोचता रहा

कूड़ा
दिखा भी तो
उसमें बस
फूल ही
ढूंढता रहा

पर
कौए की
किस्मत मेंं
कहां
मोर का
पंख आता है

वैसे
लगा
भी ले
अगर तो
वह मोर नहीं
हो जाता है

कितना भी
सीधा देखने
की कोशिश करे

भैंगे को
किनारे में
हो रहा सब
नजर आ
ही जाता है

उधर
मेरा एक साथी
रोता हुआ सा
कहीं से
आ रहा था

एक
महिला साथी से
बुरी तरह
डांठ
उसने
अभी अभी
खायी है

सबको
आ कर के
बता रहा था

ऎसा
पता चला
कि
महिला को
महिला पर ही
गुस्सा आ रहा था

मेरे को तो
भाई जी पर
बहुत तरस
आ रहा था

इसी
उधेड़बुन में
घर वापस आया
तो श्रीमती जी 
मैने अपनी भुलायी

कलम
निकाली मगर
श्रीमती तो दूर दूर
तक कहीं भी
नजर नहीं आयी

दिमाग ने
बस एक
निरीह मित्र को
किसी से मार
खाते हुवे जैसी
छवि एक दिखाई

योजना
आज की
मैंने खटाई
में डुबायी

कोई बात नहीं
कुम्भ जो क्या है
फिर कभी मना लूंगा

अपनी ही
हैंं श्रीमती
उसपर
कविता एक
किसी और दिन
चलो बना लूंगा।