पागल उल्लू
आज फिर
अपनी
औकात
भुला बैठा
आदत
से बाज
नहीं आया
फिर
एक बार
लात खा बैठा
बंदरों के
उत्पात पर
वक्तव्य
एक छाप
बंदरों के
रिश्तेदारों के
अखबार
के दफ्तर
दे कर
आ बैठा
सुबह सुबह
अखबार में
बाक्स में
खबर
बड़ी सी
दिखाई
जब पड़ी
उल्लू के
दोस्तों के
फोनो से
आज फिर
अपनी
औकात
भुला बैठा
आदत
से बाज
नहीं आया
फिर
एक बार
लात खा बैठा
बंदरों के
उत्पात पर
वक्तव्य
एक छाप
बंदरों के
रिश्तेदारों के
अखबार
के दफ्तर
दे कर
आ बैठा
सुबह सुबह
अखबार में
बाक्स में
खबर
बड़ी सी
दिखाई
जब पड़ी
उल्लू के
दोस्तों के
फोनो से
बहुत सी
गालियाँ
उल्लू को
सुनाई पड़ी
खबर छप
गई थी
बंदरों के
सारे
कार्यक्रमों
की फोटो
के साथ
उल्लू
बैठा था
मंच पर
अध्यक्ष
भी बनाया
गया था
बंदरों के
झुंड से
घिरा हुआ
बाँधे
अपने
हाथों
में हाथ ।
गालियाँ
उल्लू को
सुनाई पड़ी
खबर छप
गई थी
बंदरों के
सारे
कार्यक्रमों
की फोटो
के साथ
उल्लू
बैठा था
मंच पर
अध्यक्ष
भी बनाया
गया था
बंदरों के
झुंड से
घिरा हुआ
बाँधे
अपने
हाथों
में हाथ ।
छाये उल्लू हर जगह, पा बन्दर का साथ |
जवाब देंहटाएंराग यहाँ फैला रहे, डाल हाथ में हाथ |
डाल हाथ में हाथ, दिवाली आने वाली |
आये काली रात, खाय जब उल्लू काली |
तांत्रिक लेते खोज, अगर उल्लू छुप जाये |
देखो बन्दर मित्र, कहीं ना तुम्हें छकाये ||
दमदार पोस्ट के लिये सुसील जी बधाई,,,,
जवाब देंहटाएंबंदर मिलते बहुत है,उल्लूक मिलते कम
मगर आज की पोस्ट में,दीखे बड़ा है दम,,,,,
RECENT POST:..........सागर
बहुत सशक्त व्यंग्य...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया ...
जवाब देंहटाएंव्यंग्य के रंग उलूक टाइम्स के संग ,
जवाब देंहटाएंबंदरों के jalve dekhe ulookon ke sang .
वो क्या पागल बनेगा, जिसका उल्लू नाम।
जवाब देंहटाएंडूब मरो मझधार में, क्या चुल्लू का काम।।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंउल्लू बैठा
जवाब देंहटाएंथा मंच पर
अध्यक्ष भी
बनाया
गया था
बंदरों के झुंड
से घिरा हुआ
बाँधे अपने
हाथों में हाथ !
- अब तो रोज़ का तमाशा है यह !
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सुंदर मनोरंजक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट पर स्वागत है।
हँसते हँसते बात कह गये,अपने मन की भाई !
जवाब देंहटाएंउस के मन की गांठें खुल गयीं, जिस क समझ में आईं||
वर्ष 2013 आपको सपरिवार शुभ एवं मंगलमय हो ।शासन,धन,ऐश्वर्य,बुद्धि मे शुद्ध-भाव फैलावे---विजय राजबली माथुर
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