एक आदमी
लिखता है
कुछ पागल
का जैसा
जो वो खुद
भी समझ
नहीं पाता है
आदमी आदमी
की बात होती है
इसका लिखा
बहुत से
आदमियों
को बिना पढे़
भी समझ में
आ जाता है
हर आदमी
उसके लिखे
पर कुछ ना
कुछ जरूर
कह जाता है
एक पागल
लिख जाता है
आदमी
जैसा कुछ
पता नहीं कैसे
कभी कहीं पर
ना कोई आता है
ना कोई जाता है
कुछ लिखना तो
रही दूर की बात
गलती से भी
कोई देखना भी
नहीं चाहता है
पागल को कोई
फर्क नहीं पड़ता
कोई आये
कोई जाये
ना पढे़ ना कुछ
लिख कर जाये
लेकिन आदमी
अपने लिखे पर
गिनता है
पागलों की
संख्या भी
और
दिखाता है
आदमी ही
बस आये
एक दिन
गलती से
पागल का नाम
बडे़ आदमियों
की सूची में
छपा हुआ
आ जाता है
उस दिन
पागल अपने
बाल नोचता
हुआ दिख
जाता है
उसे
दिखता है
उसके लिखे
हुऎ पर
हर आदमी
कुछ ना कुछ
जरूर लिख
के जाता है ।
लिखता है
कुछ पागल
का जैसा
जो वो खुद
भी समझ
नहीं पाता है
आदमी आदमी
की बात होती है
इसका लिखा
बहुत से
आदमियों
को बिना पढे़
भी समझ में
आ जाता है
हर आदमी
उसके लिखे
पर कुछ ना
कुछ जरूर
कह जाता है
एक पागल
लिख जाता है
आदमी
जैसा कुछ
पता नहीं कैसे
कभी कहीं पर
ना कोई आता है
ना कोई जाता है
कुछ लिखना तो
रही दूर की बात
गलती से भी
कोई देखना भी
नहीं चाहता है
पागल को कोई
फर्क नहीं पड़ता
कोई आये
कोई जाये
ना पढे़ ना कुछ
लिख कर जाये
लेकिन आदमी
अपने लिखे पर
गिनता है
पागलों की
संख्या भी
और
दिखाता है
आदमी ही
बस आये
एक दिन
गलती से
पागल का नाम
बडे़ आदमियों
की सूची में
छपा हुआ
आ जाता है
उस दिन
पागल अपने
बाल नोचता
हुआ दिख
जाता है
उसे
दिखता है
उसके लिखे
हुऎ पर
हर आदमी
कुछ ना कुछ
जरूर लिख
के जाता है ।
बहुत बढ़िया है आदरणीय ||
जवाब देंहटाएंअब जो लोग पागल को जानते हैं उनके लिये नहीं है भाई जी वो तो भाई है अपना करके आ ही जाते हैं :)
हटाएंआभारी हूँ !
पागल जैसे दिख रहे ,क्या पागल है आप ।
जवाब देंहटाएंक्यों करते इस काम को लिखते रहते बात ।
लिखते रहते बात ,प्रतिक्रिया भी ना सुनते ।
लिखने का ही काम ,भाव स्वभाव से करते।
कहते सुन लोकेश , दर्द कवि बड़ा पुराना ।
मिलेगा एक दिन श्रेय ,था इक पागल मस्ताना।
बहुत शानदार प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: बसंती रंग छा गया
आपकी पोस्ट की चर्चा 17- 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें ।
जवाब देंहटाएंकिसने लिखा का प्रश्न तभी उठता है जब लिखी अनुभूतियों से रिश्ता जुड़ता है
जवाब देंहटाएंनाम न भी मालूम हो तो अनजान नाम रूह को छूता है
भीड़ में जो धक्कमधुक्की है,उसमें प्राण नहीं
जहाँ खामोशी है - संवेदना वहीँ होती है ...
पागलपन का कुछ अंश सबके हिस्से आय़ा है
जवाब देंहटाएंहाँ , उन तीन के कुछ अधिक!
क्या खूब कहा आपने वहा वहा बहुत सुंदर !! क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ