कि कल रात से बगल में मेरे
वो भूखा है सोया हुआ
मुझे
अपनी आफत नहीं बुलानी है
अपनी आफत नहीं बुलानी है
जो एक्स्पायरी डेट
छपे हुऎ
डिब्बा बंद खाना
बनाने की
तकनीक का कंंसेप्ट सीखकर
मेरे और
मेरे और
मेरे आस पास के
भूखे लोगों को
तमीज सिखाने भिजवाया गया है
वो
चाँद सोचता है
और बस चाँद ही खोदता है
भूखों के लिये
रोटी के सपने
तैयार करने वाली मशीन का कंंसेप्ट
उसे देने वाला
अब
तैयार करने वाली मशीन का कंंसेप्ट
उसे देने वाला
अब
भूखों को उलझाता है
इधर जब
ये प्यार से झुनझुना बजाता है
इस तरह
उसपर से बोझ सारा
अपने ऊपर ले आता है
चिन्ता सारी त्याग कर
वो चैन से चाँद खोदने
चाँद की ओर चला जाता है
ऐसे ही धीरे धीरे
एक सभ्य समाज का निर्माण
हम भूखों के लिये हो जायेगा
हम भूखों के लिये हो जायेगा
क्योंकि
बहुत से लोगों को
चाँद सोचने का
मौका हथियाने का तमीज आ जायेगा
मैं और मेरे जैसे भूखे भी
सीख लेंगे
एक दिन चाँद की
तरफ देखने की हिम्मत कर ले जाना
और भूखे पेट
लजीज खाने के सपने बेच कर
चैन से सो जाना ।
चित्र साभार: https://publicdomainvectors.org/
चित्र साभार: https://publicdomainvectors.org/
बहुत सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया और सटीक रचना | मज़ा आ गया पढ़कर |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय ब्लॉग बुलेटिन पर |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंlatest post मोहन कुछ तो बोलो!
latest postक्षणिकाएँ
SANDARBHGAT, SATIK AUR KUCH KHATTI KUH MITHI RACHNA
जवाब देंहटाएंकहाँ उलझा दिया यार चाँद और डबलरोटी में :)
जवाब देंहटाएंकुछ हम जैसे नासमझों के लिए है यहाँ ??
शुभकामनायें आपको !
जी मैं अभी खुद ही उलझा हुआ हूँ मेरी समझ भी बंद हो चुकी है और बंद दिमाग ऎसा भी कर ले रहा है गजब नहीं है क्या ? शुभकामनाओं के लिये कोटिश आभार !
हटाएंएसे ही धीरे धीरे
जवाब देंहटाएंएक सभ्य समाज
का निर्माण हम भूखों
के लिये हो जायेगा
क्योंकी बहुत से
लोगों को चाँद
सोचने का मौका
हथियाने का
तमीज आ जायेगा...
बहुत बढ़िया उम्दा प्रस्तुति ..