कल मिला वो
मुस्कुराया
फिर हाथ मिलाया
बोला
लिखते हो
बहुत लिखते हो
रोज लिखते हो
मैं भी पढ़ता हूँ रोज पढ़ता हूँ
कोशिश करता हूँ बहुत करता हूँ
एक छोर पकड़ता हूँ दूसरा खो जाता है
दूसरे तक पहुँचने का मौका ही नहीं आता है
क्यों लिखते हो क्या लिखते हो
क्या कोई और भी इस बात को समझ ले जाता है
मेरी समझ में ये भी कभी नहीं आ पाता है
शरम आती है बहुत आती है
उसकी
मासूमियत पर
मुझे भी थोड़ी सी हंसी आयी
मासूमियत पर
मुझे भी थोड़ी सी हंसी आयी
मैने भी उसे ये बात यूँ बतायी
भाई
ज्यादा दिमाग मैं लिखने में नहीं लगाता हूँ
बस वो ही बात बताता हूँ
जो घर में सड़क में शहर में और सबसे ज्यादा
अपने बहुत बडे़ से स्कूल में देख सुन कर आता हूँ
ज्यादातर बातों में
गांधी जी का एक बंदर बन जाता हूँ
कभी आँख कभी कान कभी मुँह पर ताला लगाता हूँ
जब बहुत चिढ़ लग जाती है
तो कूड़े के डब्बे को यहाँ लाकर उल्टा कर ले जाता हूँ
कितनो के समझ में आयी ये बात
उस पर ज्यादा दिमाग नहीं लगाता हूँ
लोग वैसे ही चटे चटाये लगते हैं आजकल व्यवस्था की बात करने पर
मैं अपनी धुन में
जिस बात को कोई वहाँ नहीं सुनता यहाँ आकर पकाता हूँ
यहाँ
बहुत बडे़ बडे़ शेर हैं मैदान में
जो दहाड़ते हैं मेरी तरह आ कर रोज
मैं गधा भी
कुछ ऎसे ही तीसमारखाँओं के बीच में रेंकते रेंकते
थोड़ी कुछ आवाज कर ही ले जाता हूँ
परेशान मत हुआ करिये जनाब मत पढ़ा करिये
इस कूडे़ के ढेर में
मैं भी आकर
रोज कुछ कूड़ा अपने घर का भी फेंक जाता हूँ ।
चित्र सभार: http://clipart-library.com/
बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
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