उलूक टाइम्स: इधर उधर का इधर उधर रहने दे इधर ला ला कर रोज रोज ना चिपका

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

इधर उधर का इधर उधर रहने दे इधर ला ला कर रोज रोज ना चिपका

कई बार आता है
खुद की सोच के
किसी कोने में
खुद से ही कहने
रहने दे छोड़
भी दे अब
उस सब पर लिखना
जो सुनाई दे रहा है
जो दिखाई दे रहा है
बहुत हो गया
कुछ अपनी खुद
की सोच का कुछ
ताजा नया लिख
दिमाग भी तो
सोच जरा
बहुत बड़ा भी
नहीं होता है
जितना कुछ भी
आस पास खुद ही
के हो रहा होता है
उसका लेखा जोखा
सँभालते सँभालते
खुद के अंदर का ही
सब अपना ही तो कूड़ा
कूड़ा हो रहा होता है
कुछ देर के लिये
ही सही मान भी जा
सोच में अपनी ही
कृष्ण हो जा
मोर ना सही
कौऐ के पंख की
कलगी सिर पर लगा
पाँचजन्य नहीं भी
बजा सके तो एक
कनिस्तर ही बजा
इससे पहले बंद
कर दे कोई मुँह
और
बाँध दे हाथों को
कर ले कुछ उछल कूद
मुहल्ले की किसी
खाली गली में जाकर
देर रात ही सही
जोर जोर से चिल्ला
दूसरों के बेसुरे गीतों
पर नाचना बंद कर
कुछ अपना खुद का
उट पटाँग सुर
में ही सही
अपने ही सुर से
मिला कर अपना
खुद का कुछ गा
सोच में आने दे
अपनी सोच
इधर उधर की
खोदना छोड़
कुछ तो
ओरीजिनल सोच
ओरीजिनल लिख
ओरीजिनल सुना
इसकी उसकी
इसको उसको
ही करने दे
सब पका ही
रहे हैं ‘उलूक’
तू भी मत पका
सोच में आ रहे
ओरीजिनल को
निकल आने दे
उसके बारे में
थोड़ा ही सही
कुछ तो बता
इधर उधर का
इधर उधर रहने दे
इधर ला ला कर
रोज रोज ना चिपका ।

चित्र साभार: abkldesigns.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय सुशील जी बहुत सही लिखा आपने !

    जहा तक तकनीकी या वैज्ञानिक विषयो पर लिखने का प्रश्न है तो उसके लिए बेसिक कांसेप्ट पहले से ही मौजूद है , हाँ उस विषय पर लिखते समय या उसके बारे में सुचना देते समय लेखक ने कितनी पारदर्शिता दिखाई है या कितने अच्छे से अपने शब्दों में समझाने की कोशिश है यह जरूर महत्वपूर्ण है इसके लिए यही भी जरूरी है की जहा से आपने इसका मूल सन्देश पाया है आप अपनी पोस्ट में उसका रिफरेन्स अवश्य दे और जब हम वैज्ञानिक या तकनीकी विषयो पर पूर्ण रूप से किसी नयी रिसर्च की बात करते हैं तो उसके लिए उस विषय पर मौजूद पहली चीज़ो का अधयन्न करके कुछ नया और अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं जो की वैज्ञानिक लोग करते ही हैं .

    जहा तक कविता या साहित्यक विषय पर लिखने की बात है तो उसका मुझे इतना पता नहीं . फिर भी विषय की नवीनता का होना महत्वपूर्ण है !

    अच्छा लेख आपका बधाई !

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    1. आभार मनोज । यहाँ जो भी लिखा गया होता है वो कविता नहीं होती है । बस एक आप बीती या जग बीती होती है ।

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-07-2015) को "वक्त बचा है कम, कुछ बोल लेना चाहिए" (चर्चा अंक-2033) (चर्चा अंक- 2033) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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