अपना कुछ लिखा होता
कभी अपनी सोच से
उतार कर किसी
कागज पर जमीन पर
दीवार पर या कहीं भी
तो पता भी रहता
क्या लिखा जायेगा
किसी दिन की सुबह
दोपहर में या शाम
के समय चढ़ती धूप
उतरते सूरज
निकलते चाँद तारे
अंधेरे अंधेरे के समय
के सामने से होते हैं
सजीव ऐसे जैसे को
बहुत से लोग
उतार देते हैं हूबहू
दिखता है लिखा हुआ
किसी के एक चेहरे
का अक्स आईने के
पार से देखता हो
जैसे खुद को ही
कोशिश नहीं की
कभी उस नजरिये
से देखने की
दिखे कुछ ऐसा
लिखे कोई वैसा ही
आदत खराब हो
देखने की
इंतजार हो होने के
कुछ अपने आस पास
अच्छा कम बुरा ज्यादा
उतरता है वही उसी तरह
जैसे निकाल कर
रोज लाता हो गंदला
मिट्टी से सना भूरा
काला सा जल
बोतल में अपारदर्शी
चिपका कर बाहर से
एक सुंदर कागज में
सजा कर लिख कर
गंगाजल ताजा ताजा ।
चित्र साभार: www.fotosearch.com
कभी अपनी सोच से
उतार कर किसी
कागज पर जमीन पर
दीवार पर या कहीं भी
तो पता भी रहता
क्या लिखा जायेगा
किसी दिन की सुबह
दोपहर में या शाम
के समय चढ़ती धूप
उतरते सूरज
निकलते चाँद तारे
अंधेरे अंधेरे के समय
के सामने से होते हैं
सजीव ऐसे जैसे को
बहुत से लोग
उतार देते हैं हूबहू
दिखता है लिखा हुआ
किसी के एक चेहरे
का अक्स आईने के
पार से देखता हो
जैसे खुद को ही
कोशिश नहीं की
कभी उस नजरिये
से देखने की
दिखे कुछ ऐसा
लिखे कोई वैसा ही
आदत खराब हो
देखने की
इंतजार हो होने के
कुछ अपने आस पास
अच्छा कम बुरा ज्यादा
उतरता है वही उसी तरह
जैसे निकाल कर
रोज लाता हो गंदला
मिट्टी से सना भूरा
काला सा जल
बोतल में अपारदर्शी
चिपका कर बाहर से
एक सुंदर कागज में
सजा कर लिख कर
गंगाजल ताजा ताजा ।
चित्र साभार: www.fotosearch.com
किसी के एक चेहरे
जवाब देंहटाएंका अक्स आईने के
पार से देखता हो
जैसे खुद को ही
कोशिश नहीं की
कभी उस नजरिये
से देखने की
Creative Thinking.......
आभार मनोज !
हटाएंशुभ प्रभात भाई...
जवाब देंहटाएंअभी आते साथ ही
उलूक के दर्शन हो गए
मैं धन्य हो गई
अभी अंधेरा ही है
और उलूक जी महाराज
कि जरूर...
श्री महा लक्ष्मी जी मार्निंग वाक
पर निकली होंगी....
मैंने अपने को धन्य मानते हुए
फिर हेरा-फेरी
करने का मन में
ठान लिया...
सादर
आभार यशोदा जी आप से ज्यादा 'उलूक' धन्य हो गया :)
हटाएंताजा ताजा गंगा जल तो अब ऐसा ही गंदला सा होगा उलूक भाई। बाकी दिखना और लिखना तो हरेक की अपनी बात है। उसी चीज को कोई कैसे देखे, कोई कैसे।
जवाब देंहटाएंआभार आशा जी ।
हटाएंThanks for this quite interesting poem
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराग ।
हटाएंरोज लाता हो गंदला
जवाब देंहटाएंमिट्टी से सना भूरा
काला सा जल
बोतल में अपारदर्शी
चिपका कर बाहर से
एक सुंदर कागज में
सजा कर लिख कर
गंगाजल ताजा ताजा ।
आभारी हूँ कविता जी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (05-07-2015) को "घिर-घिर बादल आये रे" (चर्चा अंक- 2027) (चर्चा अंक- 2027) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभार आदरणीय ।
हटाएंसर! पिछले एक महीने से ब्लॉगर जगत में निष्क्रिय हो गया हूँ।
जवाब देंहटाएंपरीक्षाएं विद्यार्थियों के कल्पनाशीलता को प्रभावित कर देती हैं। कुछ ब्लॉग मुझे बेहद पसंद है जैसे उच्चारण, दिगंबर सर का ब्लॉग स्वप्न मेरे, सुधीमन और उलूक टाइम्स..इन सब को बहुत मिस किया...ढेर सारी कहानियां , कवितायेँ छूट गईं...अब नियमित रहूँगा...हमेशा की तरह इस बार भी आपकी अभिव्यक्ति पसंद आई।
अभिषेक लिखने वाले भी पढ़ने वालों की कमी महसूस करते हैं और वहाँ जहाँ वैसे ही अकाल पड़ा रहता हो एक की कमी भी बड़ी कमी होती है । आभार है आपको 'उलूक' की बक बक में कुछ नजर आता है :)
हटाएंलिखने वाले तो पता नहीं क्या क्या लिख देते हैं पर सच्चाई कौन छुपा सकता है ...
जवाब देंहटाएंआभार दिगम्बर जी ।
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