कुछ बहुत अच्छा लिखने की सोच में
बस सोचता रह जाता है
कुकुरमुत्तों की भीड़ में खुल के उगना
इतना आसान नहीं हो पाता है
महीने भर का कूड़ा
कूड़ेदान में ही छोड़ना पड़ जाता है
कई कई दिनों तक मन मसोस कर
बन्द ढक्कन फिर खोला भी नहीं जाता है
दो चार गिनती के पके पकायों को पकाने का शौक
धरा का धरा रह जाता है
कूड़ेदान रखे रास्तों से निकलना कौन चाहता है
रास्ते फूलों से भरे एक नहीं बहुत होते हैं
खुश्बू लिखे से नहीं आती है अलग बात है
खुश्बू सोच लेने में कौन सा किसी की जेब से
कुछ कहीं खर्च हो जाता है
समय समय की बात होती है
कभी खुल के बरसने वाले से निचोड़ कर भी
कुछ नहीं निकल पाता है
रोज का रोज हिसाब किताब करने वाला
जनवरी के बाद फरवरी निकलता देखता है
सामने ही मार्च के महीने को मुँह खोले हुऐ
सामने से खड़ा हुआ पाता है
कितने आशीर्वाद छिपे होते हैं
कितनी गालियाँ मुँह छुपा रही होती है
शब्दकोष में इतना कुछ है अच्छा है सारा कुछ
सब को हर समय समझ में एकदम से नहीं आ जाता है
चार लाईन लिख कर अधूरा छोड़ देना बहुत अच्छा है
समझने वाला पन्ने पर खाली जगह देख कर भी
समझ ले जाता है
पता नहीं कब समझ में आयेगा उल्लू के पट्ठे ‘उलूक’ को
आदतन कुछ भी नहीं लिखे हुऐ को
खींच तान कर हमेशा
कुछ बन ही जायेगा की समझ लिये हुऐ बेशरम
कई दिनों के सन्नाटे से भी निकलते हुऐ
भौंपू बजाने से बाज नहीं आता है।
चित्र साभार: https://www.clipartmax.com/
बस सोचता रह जाता है
कुकुरमुत्तों की भीड़ में खुल के उगना
इतना आसान नहीं हो पाता है
महीने भर का कूड़ा
कूड़ेदान में ही छोड़ना पड़ जाता है
कई कई दिनों तक मन मसोस कर
बन्द ढक्कन फिर खोला भी नहीं जाता है
दो चार गिनती के पके पकायों को पकाने का शौक
धरा का धरा रह जाता है
कूड़ेदान रखे रास्तों से निकलना कौन चाहता है
रास्ते फूलों से भरे एक नहीं बहुत होते हैं
खुश्बू लिखे से नहीं आती है अलग बात है
खुश्बू सोच लेने में कौन सा किसी की जेब से
कुछ कहीं खर्च हो जाता है
समय समय की बात होती है
कभी खुल के बरसने वाले से निचोड़ कर भी
कुछ नहीं निकल पाता है
रोज का रोज हिसाब किताब करने वाला
जनवरी के बाद फरवरी निकलता देखता है
सामने ही मार्च के महीने को मुँह खोले हुऐ
सामने से खड़ा हुआ पाता है
कितने आशीर्वाद छिपे होते हैं
कितनी गालियाँ मुँह छुपा रही होती है
शब्दकोष में इतना कुछ है अच्छा है सारा कुछ
सब को हर समय समझ में एकदम से नहीं आ जाता है
चार लाईन लिख कर अधूरा छोड़ देना बहुत अच्छा है
समझने वाला पन्ने पर खाली जगह देख कर भी
समझ ले जाता है
पता नहीं कब समझ में आयेगा उल्लू के पट्ठे ‘उलूक’ को
आदतन कुछ भी नहीं लिखे हुऐ को
खींच तान कर हमेशा
कुछ बन ही जायेगा की समझ लिये हुऐ बेशरम
कई दिनों के सन्नाटे से भी निकलते हुऐ
भौंपू बजाने से बाज नहीं आता है।
चित्र साभार: https://www.clipartmax.com/
अच्छा-कम अच्छा,
जवाब देंहटाएंकूड़ा या खुशबू
कुकुरमुत्ते या फूल
लिखने वाली क़लम की
शब्दकोश से
निकले विचार
आधे-अधूरे पन्नों पर
जब चलती है
भोंपू नहीं
सायरन बजाती है।
----
प्रणाम सर
सादर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 02 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (02-03-2022) को चर्चा मंच "शंकर! मन का मैल मिटाओ" (चर्चा अंक 4357) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शानदार अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसटीक गहन।
चार लाईन लिख कर
अधूरा छोड़ देना बहुत अच्छा है
समझने वाला
पन्ने पर खाली जगह देख कर भी
समझ ले जाता है ।
–आप रोज लिखें... लिखना जब तय किये तो लिखना धर्म हुआ
जवाब देंहटाएं°°
–आपकी रचना अनेक अर्थ समेटे हुए होती है
°°
–बधाई और साधुवाद
लिखना या न लिखना, क्यों लिखना किसके लिए लिखना, ये सारे सवाल जब उठने लगें तो समझना चाहिए कि कुछ बेहतर है जो कहने में नहीं आ रहा है
जवाब देंहटाएंवाह! गज़ब कहा सर 👌
जवाब देंहटाएंकुछ
बहुत अच्छा
लिखने की सोच में
बस सोचता रह जाता है
कुकुरमुत्तों की भीड़ में
खुल के उगना
इतना आसान नहीं हो पाता है।
कई बार ढक्कन अपने आप खुल जाते हैं ... भौंपू अपने आप बज जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंकलम भी अपने आप चल जाती है ...
बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंकुछ भी हो आपकी रचना हमेशा चिंतन मनन वाली होती है
जवाब देंहटाएंमौलिकता तो उसका विशेष गुण है।
लिखते रहें बस।
धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा
कुछ
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
लिखने की सोच में
बस सोचता रह जाता है
कुकुरमुत्तों की भीड़ में
खुल के उगना
इतना आसान नहीं हो पाता है..
बहुत उम्दा उत्कृष्ट सोच की परिचायक ये पंक्तियां सोचने को मजबूर कर गईं ।
पहले से कुछ अलग, कुछ उम्दा लिखने की गुंजाइश बाकी है ।
शानदार रचना के लिए बधाई आदरणीय💐👏
खुश्बू लिखे से नहीं आती है
जवाब देंहटाएंअलग बात है
खुश्बू सोच लेने में
कौन सा किसी की जेब से
कुछ कहीं खर्च हो जाता है
समय समय की बात होती है
कभी खुल के बरसने वाले से
निचोड़ कर भी
कुछ नहीं निकल पाता है
एकदम सटीक...
गहन अर्थ समेटे बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह!!!
बहुत सुंदर रचना sir 🙏
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी हमारी मार्गदर्शिका है सर
जवाब देंहटाएंवर्तमान परिदृश्य एवं मनोद्वेग की उलटबांसियाँ ... कुछ अलग-सा मारक... कुछ गहरे तक भेदक। कहे से ज्यादा कहती हुई।
जवाब देंहटाएंचार लाईन लिख कर
जवाब देंहटाएंअधूरा छोड़ देना बहुत अच्छा है
समझने वाला
पन्ने पर खाली जगह देख कर भी
समझ ले जाता है ,,,,,,, बहुत सटीक बात लिखी है सर, बहुत सुंदर ।
बहुत सटीक।
जवाब देंहटाएंकितनी सहजता से कटाक्ष कर देते हैं
जवाब देंहटाएंवाकई समझने के लिए पारदर्शिता चाहिए
कमाल का व्यंग
सादर
बहुत अच्छी रचना है सर आपकी
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 28 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंकितने आशीर्वाद छिपे होते हैं
जवाब देंहटाएंकितनी गालियाँ मुँह छुपा रही होती है
शब्दकोष में इतना कुछ है अच्छा है सारा कुछ
सब को हर समय समझ में एकदम से नहीं आ जाता है
.
.
वाह वाह वाह बहुत सुंदर रचना 🙏
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं