जरूरत है
फिर से देखने की फिर से सोचने
और फिर से मनन करने की
विक्रमादित्य को भी और उसके बेताल को भी
यहाँ तक
उस वृक्ष को भी खोजना जरूरी है इतिहास में
जहां जा कर बार बार बेताल
फिर फिर लटक जाया करता था
उम्र बढ़ने के सांथ सुना है
सांथ छूटने लगता है यादाश्त का
वो बात अलग है कि अब जो भी याद है
पता नहीं याद है या नहीं याद है
पर याद दिलाया जरूर जा रहा है
कि हम सब अपनी अपनी
यादाश्त खो चुकें हैं
बहुत कुछ गिराया गया था
कुछ नया बनाए जाने के लिए
अभी सब कुछ
जमीन पर चल रहा है
‘उलूक’ रात में भी पता नहीं
कैसे देख लेता है जमीन के नीचे तक
उसे मालूम है राख तो बह चुकी है
कई शरीरों की पानी में
पहुँच चुकी हैं समुन्दर के अनंत में
पर लाशें जमीन में दबी हुई
अभी भी देखी जा सकती हैं कि
ज़िंदा है या मर चुकी है वाकई में
बहुत कुछ खोदा जाना है
बहुत कुछ पर मिट्टी डाली जानी है
अभी व्यस्त है समय
और मशीने लगी है नोट गिनने में
पकडे गए जखीरों के
कुछ भी है
लेकिन बेताल और विक्रमादित्य को भी
लेकिन बेताल और विक्रमादित्य को भी
सबक सिखाना जरूरी है
और समझना है कि
भगवान कल्कि का कलयुगी अवतार
भगवान कल्कि का कलयुगी अवतार
इसीलिए पैदा किया गया है |
स्तब्ध हूँ....
जवाब देंहटाएंशायद कल ही हो जाए अवतार
जवाब देंहटाएंकुछ ज्ञानियों का उत्थान हो
अज्ञानियों की राह देख रहा है गर्त
सादर वंदे
समय को बेधती गहरी कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर उत्कृष्ट लेखन।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 07 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंआहा ... बहुत कुछ कह दिय आपने ... ज़रुरी है इतिहास ...
जवाब देंहटाएंआपकी यह कविता याद रखने लायक रचना है . सचमुच कितना कुछ दबा दिया गया है . अब जबकि खोज की कोशिशें होती हैं ,हंगामे होते हैं . कीट बिलबिला उठते हैं जैसे गरम पानी डालने पर .
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह! अद्भुत!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति. नव वर्ष की मंगल कामनाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, कितना कुछ कह दिया।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना में हमेशा ही गूढ़ बातें होती।
जवाब देंहटाएंइतिहास वही लिखते हैं जो विजयी होते हैं, हारे हुओं का इतिहास नहीं होता
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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