हथियार
किसी के हाथ में
ना कभी थे ना अभी हैं
पर कुछ तो
डाल चुकें है लोग
क्या ?
बस इसी का आभास नहीं है
बहुत कुछ
उबल रहा है पर भाप नहीं है
ना कोई
हंस रहा है ना कोई रो रहा है
सबके पास
काम है कुछ महत्वपूर्ण
जो दिया गया है
उन्हें
अपने होने का ही आभास नहीं है
रास लीला के समय
सुना है कुछ ऐसा ही हुआ था
गोपियां
थी तो सही कहीं
पर उन्हें पता ही नहीं था
क्या वही समय
अपने को दोहरा रहा है ?
आँखे
देख नहीं रही है कुछ भी
कानों से
सुना नहीं जा रहा है
जिह्वा
चिपक चुकी है तालुओं के साथ
शायद कहीं
समुंदर से भी बड़ा कुछ मथा जा रहा है
उसी में से
निकला अमृत हर एक के हिस्से का
उसके गले से
जैसे नीचे की और खिसकाया जा रहा है
अब
इससे बड़ा और क्या चाहिए ?
आदमी सम्मोहन में है
आदमी ध्यान में है
आदमी समाधिस्थ है
‘उलूक’
कितना अजीब है तू
ऐसे में भी
बकवास करने से
बाज नहीं आ रहा है ?
चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/
अलख जगाते रहिए
जवाब देंहटाएंसम्मोहन में रहे या ध्यान में
कुछ तो असर पड़ेगा ही
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ब्रेक के बाद लेखनी की धार तीक्ष्ण हो गयी है सर...:)
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सर, सादर प्रणाम।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सर मेरा आमंत्रण स्पेम में चला गया शायद देख लीजिएगा।
जवाब देंहटाएंसादर।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 06 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह गहन तंज ।
जवाब देंहटाएंअप्रतिम।
कैसे बकवास लगा?
जवाब देंहटाएंओहो जोशी जी, क्या बात कही...गहरा तंज़ कि ...''आदमी सम्मोहन में है
जवाब देंहटाएंआदमी ध्यान में है
आदमी समाधिस्थ है''....मगर ये भी सच है कि आदमी सोया नहीं है...
वाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंआँखे
जवाब देंहटाएंदेख नहीं रही है कुछ भी
कानों से
सुना नहीं जा रहा है
जिह्वा
चिपक चुकी है तालुओं के साथ
सच कहा अजीब सम्मोहन है..
बहुत कुछ
उबल रहा है पर भाप नहीं है
शायद होनी को परखा जा रहा है
फिर सारे ध्यान सम्मोहन एक साथ टूटेंगे ।
लाजवाब कटाक्ष
वाह!!!
आदमी सम्मोहन में है
जवाब देंहटाएंआदमी ध्यान में है
आदमी समाधिस्थ है.....
फिर भी आदमी तो है।
कटाक्ष तीखा है।