उलूक टाइम्स: नमी का धुआं धुआं सा हुआ है जैसे भी हुआ है

गुरुवार, 31 जुलाई 2025

नमी का धुआं धुआं सा हुआ है जैसे भी हुआ है

फिर से टपकने लगी हैं बूंदें
सूखी कलम से
न जाने ऐसा क्या हुआ है

रेत के सन्नाटे ने भी करवट ली है
कुछ धूल सी उड़ी है
ऐसा क्यों हुआ है

हुआं हुआं बरसों हो गए हैं सुने
शहर के जंगलों में फिर कुछ हुआ है
कितना हुआ है

शब्द डगमगाते लगे हैं
कागज में चले हैं आभास कुछ हुआ है
खाली बोतलों ने कुछ कहा है
कैसे कुछ हुआ है

पागल हो चुका है कोई
पागलपन नापने का थर्मामीटर
 कहीं 
कल ईजाद ही हुआ है
कितना हुआ है 

टपकेगा आसमान से पानी सुना है
अभी बादलों के बीच में
कोई समझौता हुआ है
कहां पर हुआ है

पन्ने भरें हैं लिखे हुए से
पढ़ दी गई हैं किताबें सारी
फिर से लिखने को कहा है
किसने कहा है किससे कहा है
किसका लिखना अपना सा हुआ है

चू लेता है ‘उलूक’ भी 
यूं ही घिसते घिसते
कहीं किसी छिद्र से गीला भी 
हुआ है
 नमी का धुआं
धुआं सा हुआ है जैसे भी हुआ है |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

4 टिप्‍पणियां:

  1. हुआ सो हुआ
    क्यों मरे गदहे को पीटें
    लिहाजा अलविदा सावन के लिए
    आभार,,,
    वंदन

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  2. जी सर , क़लम का फिर से बरसना सुखद है हरियाली बनी रहे।
    सादर प्रणाम सर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  3. फिर से टपकने लगी हैं बूंदें
    सूखी कलम से
    न जाने ऐसा क्या हुआ है


    वाह बेहतरीन पंक्तियाँ, सुंदर रचना गुरुजी

    जवाब देंहटाएं