उलूक टाइम्स: इफरात
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गुरुवार, 5 सितंबर 2019

‘उलूक’ साफ करना है बहुत सारा इतिहास है


ना खुश है ना उदास है 
थोड़ी सी बची हुयी है
है कुछ आस है 

बहुत कुछ लिखना है 
कागज है कलम की है इफरात है 

ना नींद है ना सपने हैं 
शाम से जरा सा पहले की है बात है 

बन्द है बोतल है खाली है गिलास है
अंधेरा है अमावस की है रात है 

ना पढ़ना है ना पढ़ाना है 
किताबों के नीचे दबी है खुद की है किताब है 

श्याम पट काला है सफेद है चॉक है 
खाली है कक्षा है बस थोड़ी सी उदास है 

ना समझना है ना समझाना है 
नयी तकनीक है आज है सब की है बॉस है 

गुरु घंटाल हैं जितने मालामाल हैं 
सरकारी ईनाम हैं लेने गये हैंं सारे हैं खास हैं 

ना राधा है ना कृष्ण है 
राधाकृष्णन का जन्मदिन
सुना है शायद है आज है 

पदचिन्ह हैंं मिटाने हैं नये अपने बनाने हैं ‘उलूक’ 
साफ करने हैंं बहुत हैंं सारे हैं इतिहास हैंं । 

चित्र साभार:
https://www.1001freedownloads.com

बुधवार, 25 मई 2016

नोच ले जितना भी है जो कुछ भी है तुझे नोचना तुझे पता है अपना ही है तुझे सब कुछ हमेशा नोचना

कहाँ तक
और
कब तक

नंगों के
बीच में
बच कर
रहेगा

आज नहीं
कल नहीं
तो कभी
किसी दिन

मौका
मिलते ही
कोई ना
कोई

धोती
उतारने
के लिये
खींच लेगा

कुछ अजीब
सा कोई
रहे बीच
में उनके

इतने दिनों
तक आखिर
कब तक
इतनी
शराफत से

बदतमीजी
कौन ऐसी
यूँ सहेगा

शतरंज
खेलने में
यहाँ हर
कोई है
माहिर

सोचने
वाले प्यादे
को कब
तक कौन
यूँ ही
झेलता
ही रहेगा

कुत्ता खुद
आये पट्टा
डाल कर
गले में
अपने

एक जंजीर
से जुड़ा
कर देने
मालिक के
हाथ में

ऐसा कुत्ता
ऐसा मालिक
आज गली
गली में
इफरात
से मिलेगा

फर्जीपने
की दवाई
बारकोड

ले कर
आ रहे
हैं फर्जी
जमाने के
उस्ताद लोग

फर्जी आदमी
की सोच में
बारकोड
लगा कर
दिखाने को
कौन क्या और
किससे कहेगा

‘उलूक’
आज फिर
नोच ले
जितना भी
नोचना है
अपनी
सोच को

उसे भी
पता है
तू जो भी
नोचेगा

अपना ही
अपने आप
खुद ही
नोचेगा ।


चित्र साभार: worldartsme.com

गुरुवार, 7 जून 2012

आपदा फिर से आना

भीषण हुवी थी
उस बार बरसात
आपदा थी
दूर कहीं एक गाँव था
एक स्कूल था
दर्जन भर बच्चे थे
मौत थी वीरानी थी
कुल जमा दो
साल पहले की
ये बात थी
सभी को हैरानी थी
निकल गयी उसके
बाद कई बरसात
मंत्री जी से ठेकेदार
पैसे की थी इफरात
स्कूल फिर से गया
उसी जगह पर बनाया
मंत्री जी
हो गये भूतपूर्व
सरकार को
इस बीच गंवाया
अखबार हो गये
सब जब दूर
खबर बनाने को
स्कूल के
उदघाटन का
मन बनाया
कार्यक्रम होने
ही वाला था
पूर्व संध्या को
स्कूल भरभराया
सीमेंट रेता
मिट्टी हो कर
जमीन में सोने
चला आया
हाय रे हाय
वर्तमान सरकार
ठीकरा तेरे सर
फूटने को आया
मंत्री जी ने अपनी
झेंप को मिटाया
सी बी आई से
होगी इन्क्वारी
का भरोसा गांव
वालों को दिलवाया
लाव लश्कर के साथ
अपना काफिला
वापस लौटाया
ऎसा वाकया
पहली बार
देखने में
है आया।