उलूक टाइम्स: पट्टा
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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

पट्टे के रंग के जादू में किसलिये फंसना चाह रहा है बता कहीं दिखा कोई उल्लू जो रंगीन पट्टा पहन कर किसी गुलिस्ताँ को उजाड़ने जा रहा है

एक पट्टा
गले में
पहन लूँ

कई दिन से
विचार आ रहा है

रंग उसका
क्या होना चाहिये

 बस यही
समझ में
नहीं आ रहा है

जमाने में रहकर
जमाने से कितना
पिछड़ गया हूँ

हर पट्टा
पहना हुआ
जैसे मुझे ही
चिढ़ा रहा है

किसम
किसम के हैं
सारे इंद्रधनुषी हैं

सभी पहने हुऐ हैं
एक रंग के पट्टे हैं

आभासी जंजीर
भी नजर आ रही है

मालिक है
जो चाहे करे

भौंकना तो
कम से कम
सिखा रहा है

रंग
इन्द्रधनुष
का एक
पता नहीं
किसके लिये
और क्यों
बौरा रहा है

‘उलूक’
उल्लू है
बना रह

किसी शाख
पर बैठ कर
गुलिस्ताँ को
उजाड़ने
तो तू भी
जा रहा है

किसी
एक रंग के
पट्टे को
पहन कर कोई
उसी रंग में
रंगीन कुछ
भौंकना चाह रहा है

तेरा जी
किस लिये
मिचला रहा है
यही गले से
नीचे उतर
नहीं पा रहा है

एक पट्टा
किसी का भी
तू भी अपने लिये
क्यों नहीं
बना पा रहा है

यही
एक प्रश्न
बिना उत्तर का
यहाँ वहाँ
पगला रहा है ?

चित्र साभार: http://clipartmag.com

बुधवार, 25 मई 2016

नोच ले जितना भी है जो कुछ भी है तुझे नोचना तुझे पता है अपना ही है तुझे सब कुछ हमेशा नोचना

कहाँ तक
और
कब तक

नंगों के
बीच में
बच कर
रहेगा

आज नहीं
कल नहीं
तो कभी
किसी दिन

मौका
मिलते ही
कोई ना
कोई

धोती
उतारने
के लिये
खींच लेगा

कुछ अजीब
सा कोई
रहे बीच
में उनके

इतने दिनों
तक आखिर
कब तक
इतनी
शराफत से

बदतमीजी
कौन ऐसी
यूँ सहेगा

शतरंज
खेलने में
यहाँ हर
कोई है
माहिर

सोचने
वाले प्यादे
को कब
तक कौन
यूँ ही
झेलता
ही रहेगा

कुत्ता खुद
आये पट्टा
डाल कर
गले में
अपने

एक जंजीर
से जुड़ा
कर देने
मालिक के
हाथ में

ऐसा कुत्ता
ऐसा मालिक
आज गली
गली में
इफरात
से मिलेगा

फर्जीपने
की दवाई
बारकोड

ले कर
आ रहे
हैं फर्जी
जमाने के
उस्ताद लोग

फर्जी आदमी
की सोच में
बारकोड
लगा कर
दिखाने को
कौन क्या और
किससे कहेगा

‘उलूक’
आज फिर
नोच ले
जितना भी
नोचना है
अपनी
सोच को

उसे भी
पता है
तू जो भी
नोचेगा

अपना ही
अपने आप
खुद ही
नोचेगा ।


चित्र साभार: worldartsme.com

बुधवार, 7 मई 2014

सच्चाई लिखने का ही बस कोई कायदा कानून नहीं होता है

दिल ने कहा गिन
अरे कुछ तो गिन
गिनती भूल गये
पता नहीं क्यों
इसी बार बस
दिन गिने
ही नहीं गये
बहुत देर में
पहुँचे आँखिरकार
आया बटन
दबाने का दिन
उसकी सोचो
उसे भी तो
चादर से ढके
गधों को
हाँकते हाँकते
हो गये हैं
कितने दिन
मान कर
चलना पड़ेगा
किसी ने किसी
गधे को नहीं
देखा होगा
आगे क्या
होने वाला है
पता नहीं किसी
को शायद
पता भी होगा
उसको देख कर
ही तसल्ली
कर रहा होगा
काफिला सही
जगह पर जाकर
पहुँच रहा होगा
गधे आश्वस्त होंगे
बहुत खुश होंगे
व्यस्त होंगे
मन ही मन
बेचैन होंगे
दावत के सपने
काले सफेद नहीं
सभी रंगीन होंगे
होता है होता है
ऐसा ही होता है
किसी को कहाँ
मतलब होता है
जब गधे के
आगे गधा और
गधे के पीछे भी
गधा होता है
गधे चल या
दौड़ रहे होते हैं
देखने सुनने वाले
भी गधे होते हैं
क्या करे बेचारा
उस ही के बारे में
हर कोई कुछ ना कुछ
सोच रहा होता है
मानना पड़ता है
जाँबाज होता है
गधे हैं पता
होने पर भी
खुशी खुशी
हाँक रहा होता है
अनगिनत गधों में
एक भी गधा
ऐसा नहीं होता है
जिसके गले में
कोई पट्टा या
रस्सी का फंदा
दिख रहा होता है
उसकी सोचो जरा
जो इतनो को
इतने समय से
एक साथ खींच
घसीट रहा होता है
गधों में से एक गधा
तब से अब तक
गधों की बात ही
सोच रहा होता है
गुब्बारों में हवा
भरने का भी
कोई सहूर होता है
ज्यादा भर गई
हवा को भी तो
कहीं ना कहीं से
निकलना ही होता है
आदमी का इस सब में
कोई कसूर नहीं होता है
जहाँ कुछ भी होना
मंजूरे खुदा के होने
से ही होना होता है
कुछ नहीं कर
सकता है कोई
उसके लिये
जिसकी किस्मत
में बस यही सब
लिखना लिखा
होता है
पढ़ने वाले के
लिये दुआऐं
ढेर सारी लिखने
के साथ साथ
'उलूक' हमेशा
बहुत सारी जरूर
माँग रहा होता है ।