उलूक टाइम्स: ठेकेदार
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मंगलवार, 11 दिसंबर 2018

काला फिर से सफेद और सफेद फिर से काला हो जाने की घड़ी का समय खोज रहा है गणना करने वाले हाँफ रहे हैं

कुछ चूहे
सुना जा
रहा है

नाच रहे हैं

कुछ
पता चल
रहा है

भाग रहे हैं

किसी
जलजले
का डर है
या
किसी साँप
की हलचल
कहीं
आसपास
रेंगने की
भाँप रहे हैं

सफेद चूहों
को देखा है
खोदते हुऐ
एक मकान
की जड़ों को
कल तक

आज काले
उधर की तरफ
झाँक रहे हैं

बहुत
हड़बड़ी
के साथ
एक दूसरे
के ऊपर
चढ़ कूद
उछल कर
शोर मचाते

अपने
पंजे और दाँतों
को माँज रहे हैं

ठेका
बदल रहा है
कुछ देर में ही

निविदाओं
के पुराने
हो चुके
कागजों से

पुराने
ठेकेदार
सर्दी भगाने
के लिये
आग जला
कर ताप रहे हैं

खबर
गरम है
गरम पड़े
हुऐ नरम हैं

आकाश
की तरह
मुँह किये हुऐ
कई सारे

दिन में
तारे गिनने की
कोशिश करते

जैसे
आँखों ही
आँखों में

एक दूसरे की
पीड़ा नाप रहे हैं

‘उलूक’
तू भी देख

मुँह
ऊपर कर
आकाश की
तरफ कहीं

सबसे
खुशहाल
वही सब हैं

जो नहीं
सोच रहे हैं चूहे

और
मुँह उठा कर

कहीं
ऊपर
की तरफ
ताक रहे हैं।

चित्र साभार: https://clipartxtras.com

गुरुवार, 22 जून 2017

हिन्दी के ठेकेदारों की हिन्दी सबसे अलग होती है ये बहुत ही साफ बात है

हिन्दी में
लिखना
अलग बात है

हिन्दी
लिखना
अलग बात है

हिन्दी
पढ़ लेना
अलग बात है

हिन्दी
समझ लेना
अलग बात है

हिन्दी
भाषा का
अलग प्रश्न
पत्र होता है

साहित्यिक
हिन्दी
अलग बात है

हिन्दी
क्षेत्र की
क्षेत्रीय भाषायें

हिन्दी
पढ़ने
समझने
वाले ही

समझ
सकते हैं
समझा
सकते हैं

ये सबसे
महत्वपूर्ण

समझने
वाली बात है

हिन्दी बोलने
लिखने वाले
हिन्दी में लिख
सकते हैं

किस लिये
हिन्दी में
लिख रहे हैं

हिन्दी
की डिग्री
रखे हुऐ
लोग ही
पूछ सकते हैं

हिन्दी
के भी कभी
अच्छे दिन
आ सकते हैं

कब आयेंगे
ये तो बस
हिन्दी की
डिग्री लिये
हुऐ लोग ही
बता सकते हैं

भूगोल
से पास
किये लोग

कैसे
हिन्दी की
कविता बना
सकते है

कानून
बनना
बहुत जरूरी है

कौन सी
हिन्दी

कौन
कौन लोग
खा सकते हैं
पचा सकते हैं

नेताओं की
हिन्दी अलग
हिन्दी होती है

कानूनी
हिन्दी
समझने की
अलग ही
किताब होती है

‘उलूक’
तू किस लिये
सर फोड़ रहा है
हिन्दी के पीछे

तेरी हिन्दी
समझने वाले
हैं तो सही

कुछ तेरे
अपने ही हैं

कुछ
तेरे ही हैं
आस पास हैं

और
बाकी
बचे कुछ
क्या हुआ

अगर बस
आठ पास हैं

हिन्दी को
बचा सकते हैं
जो लोग

वो
बहुत
खास हैं
खास खास हैं।


चित्र साभार: Pixabay

बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

बाअदब बामुलाहिजा होशियार सब्र कर जल्दी ही आ रहे हैं ठेकेदार


सरकार के 
एक खेत में उगी हुई 
सरकारी फसल 
उसको खुले आम चरते हुऐ 
सरकार के ही पाले पोसे 
गाय बैल घोड़े भेड़ बकरियां 

सरकार से 
पेट पालने के लिये मिली 
घास को नहीं खा रहे हैं 

अपने अपने 
खेतों में 
जा कर रख आ रहे हैं 
क्या करेंगे उसका 
किसी को कुछ भी नहीं बता रहे हैं 

बैल बैलों के साथ 
घोड़े घोड़ों के साथ नजर आ रहे हैं 

बकरियां और भेड़ें 
मेंमनो को झुनझुने थमा कर 
बहला रहे हैं 

खेत के मालिक लोग 
सरकार के पास पहुंच कर 
बड़ी पूजा करवाने का कुछ जुगाड़ लगा रहे हैं 

सरकार के
दूसरे 
खेत के किसान लोग
जो 
अपने खेतों में नहीं जा रहे हैं 
सरकार को काले चश्मे पहुंचाने का जुगाड़ लगा रहे हैं 

उजड़ते हुऐ 
खेत के किसानों को
मेडल 
दिलवाने के लिये
विपक्ष के लोगों को भी बहकाने में 
सफल होते नजर आ रहे हैं 

मजबूर सरकार क्या करेगी 
जिसको खुद डी कम्पनी के लोग चला रहे हैं 

खेत दर खेत में 
चल पड़ी है इसीलिये हवा एक जैसी 
हर जगह खेत वाले अपनी अपनी लहलहाती 
फसलों को खोदते जा रहे हैं 

कोई किसी से नहीं डर रहा है 
किसी को ऐ कम्पनी का भरोसा है
कोई डी कम्पनी तक 
सीधे अपनी भी पहुंच बता रहे हैं

‘उलूक’ 
और उसके ही जैसे कुछ
और 
बेवकूफ
डाल कर कान में अंगुली
आसमान को
ताकते 
नजर आ रहे हैं ।

चित्र सभार: https://simpsons.fandom.com/

गुरुवार, 9 मई 2013

मजदूर का हितैषी ठेकेदार


ठेकेदार लोग
बहुत ही ज्यादा
ईमानदार लोग
अपने अपने ठेके
का पूरा पेमेंट
ले के आते हैं
इसलिये वो
मलाई भी
थोड़ा खाते हैं
इतनी सी बात
आप क्यों नहीं
समझ पाते हैं
सब एक जैसे
थोडे़ होते हैं
कुछ मजदूरों का
ध्यान रखने
वाले भी
तो होते हैं
ये बात
दिहाडी़ करने
वाले जानते हैं
हर ठेकेदार की
नब्ज पहचानते हैं
ठेकेदार का हर
काम इसलिये
वो चुटकी में
कर ले जाते हैं
उसके लिये
भीड़ भी
बनाते हैं
समाचार बने
या ना बने
वो बेचारे
अपनी फोटो
जरूर खींच
कर दे जाते हैं
ठेकेदार उनकी
मदद करने
में अपनी
जान न्योछावर
कर ले जाते हैं
रोटी अगर
दिलवा भी
ना सके उनको
डबलरोटी
दिलवाने के
लिये तुरंत
धरने में
बैठ जाते हैं
अपना पैमेंट
पहले ही
ले आते हैं
गरीब मजदूर
को फिर
एक बार
इक्ट्ठा करके
समझाते हैं
वो तो बस
उनके हित के
लिये ही
बस ठेकेदारी
करने के लिये
आते हैं
वरना तो
देश के लिये
जान देने के
लिये दिल्ली
से लोग बडे़ बडे़
उन्हे बहुत
बार बुलाते हैं ।

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

सुधर जा


सुधर जा

कुछ नया पढ़ कुछ नया पढ़ा

जमाने के साथ जा
गेरुआ कपड़ा दिखा
तिरंगे की सरकार बनवा 
करोड़ों खा लिये को गलिया
हजार के नोट की गड्डी घर ले जा

सुधर जा
बहुत ज्यादा मत खिसिया
वो पढ़ा
जो कहीं भी किताबों में नहीं है लिखा

समुंदर देख कर आ
नल पे लगी कतार को हटवा
नहीं कर सकता है
तो किसी को ठेकेदार बनवा

सुधर जा

कुछ चेले चपाटे बनवा
दूसरों के पीछे लगा
अपनी रोटी सेक उनको पागल बना

सुधर जा

कुछ भी हो जा
कुछ उधर दे के आ कुछ इधर दे जा

तेरी कोई नहीं सुनता
तू फेसबुक में खाता बना

ब्लाग में फूलों की फोटो दिखा
हजार निष्क्रिय दोस्त बना
चार के लाईक पर इतरा

जो हमेशा देता है इज्जत
उस सरदार को दुआ देता जा

सुधर जा।

https://www.facebook.com/Masti-comedy-express

गुरुवार, 7 जून 2012

आपदा फिर से आना

भीषण हुवी थी
उस बार बरसात
आपदा थी
दूर कहीं एक गाँव था
एक स्कूल था
दर्जन भर बच्चे थे
मौत थी वीरानी थी
कुल जमा दो
साल पहले की
ये बात थी
सभी को हैरानी थी
निकल गयी उसके
बाद कई बरसात
मंत्री जी से ठेकेदार
पैसे की थी इफरात
स्कूल फिर से गया
उसी जगह पर बनाया
मंत्री जी
हो गये भूतपूर्व
सरकार को
इस बीच गंवाया
अखबार हो गये
सब जब दूर
खबर बनाने को
स्कूल के
उदघाटन का
मन बनाया
कार्यक्रम होने
ही वाला था
पूर्व संध्या को
स्कूल भरभराया
सीमेंट रेता
मिट्टी हो कर
जमीन में सोने
चला आया
हाय रे हाय
वर्तमान सरकार
ठीकरा तेरे सर
फूटने को आया
मंत्री जी ने अपनी
झेंप को मिटाया
सी बी आई से
होगी इन्क्वारी
का भरोसा गांव
वालों को दिलवाया
लाव लश्कर के साथ
अपना काफिला
वापस लौटाया
ऎसा वाकया
पहली बार
देखने में
है आया।