उलूक टाइम्स: उठाईगीर
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शनिवार, 25 मई 2024

रोज एक ना सही कभी तो कर पर कर बकवास दो चार


चोर डाकू उठाईगीर झपटमार गप्पमार या तडीपार
हो ले इनमें से कोई भी एक किस्मत लगा अपनी पार

 नैया पार लगाने में बस ये ही सब तो होते हैं मददगार
सबका साथ सबका विकास बहुत ही जरूरी है यार

 क्यों अटका रहता है तू भी कभी एक तो झटका मार
घर पर रह कर लिख गली में जा कर कभी झाडू मार

 शहर की खबरों को गोली मार सीख भी जा ना तडीपार
बगल में रखा कर सुबह का एक ताजा कोई अखबार

 मुंह में रख पान का बीड़ा जपा कर राम रोज कई हजार
ज़माना समझ नहीं पाया तू रहने दे तेरे बस का नहीं प्रचार

 वोट देने जाना  जरूर बटन दबाना पर्ची देखना है बेकार
पता है सबको सब कुछ क्या आना है काहे करना है रे इंतज़ार

 सबकी अपनी ढपली सबके अपने राग तू भी गा ले मल्हार
लिख कर पढ़ पढ़ कर लिख सीख कर बना उत्तम अचार

 ‘उलूक’ नारद नहीं नारायण नहीं भज ले कोई व्यापार
रोज एक ना सही कभी तो कर पर कर बकवास दो चार |

चित्र साभार:
https://www.quora.com/

गुरुवार, 20 मार्च 2014

आवारा होगा तभी तो उसने कह दिया होगा

शायद सच कहा होगा 
या गफलत में ही 
कह गया होगा 
उसने कहा और 
मैंने सुना मेरे बारे में 
मुझ से कुछ इस तरह 
आवारा हो जाना सबके 
बस में नहीं होता 
जो हो लेता है बहुत 
बड़ी शख्सियत होता है 
तू अंदर से आवारा 
आवारा हो गया है 
सुनी सुनाई गजल 
तक जैसे दिल 
धीरे से चल दिया 
"ये दिल ये पागल 
दिल मेरा क्यों 
बुझ गया आवारगी"
फिर लगा आवारा का 
मतलब उसका कहीं 
उठाईगीर से तो नहीं होगा 
या कामचोर या आलसी 
या फिर इधर उधर 
घूमने वाला जैसा ही
उसे कहीं कुछ दिखा होगा
वाह क्या उसने 
मुझ में मेरे अंदर 
का ढूँढ निकाला होगा 
सब कुछ सही बस 
सही बता डाला होगा
पहले लगा था बहुत 
मासूमियत में उसने 
कुछ कह दिया होगा 
हुआ थोड़ा सा 
आश्चर्य फिर अपने में 
नहीं पहुँच पाया 
जिस जगह तक 
आज तक भी कभी 
वो कैसे इतनी 
आसानी से 
पहुँच गया होगा 
कुछ भी कभी भी
लिख लेने का 
मतलब शायद
आवारगी हो गया होगा
तुझे नहीं पता होगा
उसे पता हो गया होगा ।