उलूक टाइम्स: चार
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शनिवार, 25 मई 2024

रोज एक ना सही कभी तो कर पर कर बकवास दो चार


चोर डाकू उठाईगीर झपटमार गप्पमार या तडीपार
हो ले इनमें से कोई भी एक किस्मत लगा अपनी पार

 नैया पार लगाने में बस ये ही सब तो होते हैं मददगार
सबका साथ सबका विकास बहुत ही जरूरी है यार

 क्यों अटका रहता है तू भी कभी एक तो झटका मार
घर पर रह कर लिख गली में जा कर कभी झाडू मार

 शहर की खबरों को गोली मार सीख भी जा ना तडीपार
बगल में रखा कर सुबह का एक ताजा कोई अखबार

 मुंह में रख पान का बीड़ा जपा कर राम रोज कई हजार
ज़माना समझ नहीं पाया तू रहने दे तेरे बस का नहीं प्रचार

 वोट देने जाना  जरूर बटन दबाना पर्ची देखना है बेकार
पता है सबको सब कुछ क्या आना है काहे करना है रे इंतज़ार

 सबकी अपनी ढपली सबके अपने राग तू भी गा ले मल्हार
लिख कर पढ़ पढ़ कर लिख सीख कर बना उत्तम अचार

 ‘उलूक’ नारद नहीं नारायण नहीं भज ले कोई व्यापार
रोज एक ना सही कभी तो कर पर कर बकवास दो चार |

चित्र साभार:
https://www.quora.com/

मंगलवार, 18 नवंबर 2014

कहने को कुछ नहीं है ऐसे हालातों में कैसे कोई कुछ कहेगा

दिख तो रहा है
अब मत कह देना
नहीं दिख रहा है
क्यों दिख रहा है
दिखना तो
नहीं चाहिये था
क्या हुआ ऐसा
दिखाई दे गया
और जो दिखा
वही सच है
ऐसे कई सच
हर जगह
सीँच रहे हैं
खून से
जिंदा लाशों को
और बेशरम लाशें
खुश हैं व्यस्त हैं
बंद आँखों से
मरोड़ते हुऐ
सपने अपने भी
और सपनों के भी
ये दिखना दिखेगा
कोई कुछ कहेगा
कोई कुछ कहेगा
मकान चार खंभों पे
टिका ही रहेगा
खंभा खंभे
को नोचेगा
एक गिरेगा
तीन पर हिलेगा
दो गिरेंगे
दो पर चलेगा
लंगड़ायेगा
कोई नहीं देखेगा
लंगड़ा होकर भी
गिरा हुआ खंभा
मरेगा नहीं
खड़ा हो जायेगा
फिर से मकान
की खातिर नहीं
खंभे की खातिरदारी
के लिये
ऐसे ही चलेगा
कल मकान में
जलसा मिलेगा
दावत होगी
लाशें होंगी
मरी हुई नहीं
जिंदा होंगी
तालियाँ बजेंगी
एक लाल गुलाब
कहीं खिलेगा
आँसू रंगहीन
नहीं होंगे
हर जगह रंग
लाल ही होगा
पर लाली नहीं होगी
खून पीला हो चुकेगा
कोई नहीं कुछ कहेगा
कुछ दिन चलेगा
फिर कहीं कोई
किसी और रंग का
झंडा लिये खड़ा
झंडे की जगह ले लेगा
खंबा हिलेगा
हिलते खंबे को देख
खंबा हिलेगा
मकान में जलसा
फिर भी चलेगा।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

गुरुवार, 30 अगस्त 2012

दो और दो पाँच


दो और दो होता है चार 

किताबों से पढ़ा जाता है 
ब्लैक बोर्ड में लिखा जाता है 

कोई पूछता है तो 
समझाया भी उसे जाता है 
दो और दो हमेशा ही 
चार हो जाता है 

असलियत में 
दो और दो होता है पाँच 

खुद समझा ऎसे ही जाता है
किया भी ऎसा ही जाता है 

मौका ज्यादा अच्छा मिल रहा हो अगर 
तो आठ भी कर लिया जाता है

किताब में कुछ भी लिख देने से 
थोड़ा कुछ हो जाता है 

जमाने की नब्ज भी तो 
कोई चीज हुआ करती है 
उसे भी कुछ समझा जाता है 

उसके साथ चला जाये अगर 
तो रास्ता आसान हो जाता है 

तू भी दो और दो को चार पढ़ 
पर जब करता है तो पाँच कर 

सामने वाला भी वही कर रहा होता है 
उसको प्यार से नमस्कार कर 

चार को दिखा दिया कर 
एक को बचा लिया कर 

सामने वाला समझदार होता है 

उसको दो और दो चार 
समझ में आ जायेगा 
और पाँचवा तेरे लिये बच जायेगा 

'उलूक' किसी को कुछ 
पता भी नहीं चल पायेगा ।

चित्र साभार: https://www.123rf.com/