उलूक टाइम्स: उम्मीद
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शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

तेरे से ये उम्मीद नहीं थी जो तू कर रहा है

क्यों रे

बहुत
उछल रहा है

सुना है

आजकल
कुछ कुछ

कहीं
लिख विख रहा है

क्या लिख रहा है

बुरी बात ये है  

कुछ भी हमें
कहीं से भी

तेरे बारे में
पता नहीं
चल रहा है

भाई
क्यों इतना
परेशान कर रहा है

बता
क्यों नहीं 
देता
साफ साफ
क्या कर रहा है

लिखता भी है
तो कुछ ऐसा

सुना गया है
जिसे कोई भी
नहीं पढ़ रहा है

जो पढ़ भी रहा है
हमे बताने के लिये
कि तू क्या कर रहा है

उसके पल्ले भी

कुछ भी नहीं
पड़ रहा है

समझ में
नहीं आ रहा है

पहले तो
कभी नहीं
किया तूने
पिछले पचास
सालों में जो

इस
उम्र में
पहुँच कर
आज तू
कर रहा है

किसने
कहा तुझसे
ऐसा करने को

ये भी
जानने का
बहुत मन
कर रहा है

कोई
नहीं बताता
कौंन है तेरे पीछे

जो तुझे
उकसा कर
ये सब
कर लेने को
मजबूर
कर रहा है

जब
कोई कहीं
कुछ नहीं
कर रहा है

किसी ने
किसी बात पर

कहीं
कुछ कहा हो
की बात पर

कहाँ
किसी को
कोई फर्क
पढ़ रहा है

गोलियाँ
चल रही हैं

लाइसेंस
होने ना होने
की बात
कौन कर रहा है

कई
मर रहे हैं

किसी ने
नहीं कहा
कि कोई बुरा
कर रहा है

फिर
तू कैसे
इतने दिनों से
मौज कर रहा है

लाइसेंस
लिखने का
किसने दे दिया तुझको

जो
मन में आये
किसी के लिये

कुछ भी
लिख मर रहा है

कितने
दिनों तक
पायेगा चैन
ओ बैचेन उलूक

जल्दी ही
लिखने लिखाने
वालों पर भी
कर लग रहा है ।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

तू बंदूक चलाने को कंधा दे देगा मेडल पर मेरे को मिलेगा

आसान होता है 
बंदूक चलाना घोडे़ को दबाना 

किसी के मरे बिना 
चारों खाने चित्त कर ले जाना 

ना खून का दिखना 
ना पुलिस का आना ना कोई मुकदमा 
ना किसी को कहीं जेल की सजा हो जाना 

कौन सी ऎसी बंदूक होगी 
दिखती भी नहीं होगी 
गोली भी नहीं होगी 
आवाज भी नहीं होगी 

और तो और 
किसी सामने वाले की 
मौत भी नहीं होगी 

सांप भी नहीं होगा लाठी भी नहीं होगी 
फौज भी नहीं होगी सरहद भी नहीं होगी 
बस होगी वाह वाह जो हर तरफ होगी 

बेवकूफ हैं जो सेना में चले जाते हैं 
सरहद में जाकर 
गोली खा खा कर मर जाते हैं 

पता नहीं बंदूक चलाने का 
सबसे आसान तरीका क्यों नहीं अपनाते हैं 
जिसमें 
बंदूक खरीदने कहीं भी नहीं जाते हैं 
बंदूक 
बस एक अपनी सोच में ले आते हैं 

जरूरत होती है एक ऎसे कंधे की 
जो आसानी से ही उपलब्ध हो जाते हैं 

सारे शूरवीर ऎसे ही कंधों में रखकर 
घोड़ों को दबाते हैं गोली चलाते हैं 
सामने वाले कोई नहीं कहीं मर पाते हैं 

कंधे देने वाले ही इसमें शहीद हो जाते हैं 
बंदूक चलाने वाले मेडल पा जाते हैं 

बेवकूफ कंधे देने वाले 
समाज में हर कोने में पाये जाते हैं 
लेकिन उस पर बंदूक रख कर 
गोली चलाने वाले बिरले ही हो पाते हैं 

समाज को दिशा देने वालों में 
आज ये ही लोग 
सबसे आगे जाते हैं 

जो अपने कंधे ही नहीं बचा पाते हैं 
ऎसे बेवकूफों से 
आप और क्या उम्मीद लगाते हैं ?