आसान होता है
बंदूक चलाना घोडे़ को दबाना
किसी के मरे बिना
चारों खाने चित्त कर ले जाना
चारों खाने चित्त कर ले जाना
ना खून का दिखना
ना पुलिस का आना ना कोई मुकदमा
ना किसी को कहीं जेल की सजा हो जाना
कौन सी ऎसी बंदूक होगी
दिखती भी नहीं होगी
गोली भी नहीं होगी
आवाज भी नहीं होगी
और तो और
किसी सामने वाले की
मौत भी नहीं होगी
सांप भी नहीं होगा लाठी भी नहीं होगी
फौज भी नहीं होगी सरहद भी नहीं होगी
बस होगी वाह वाह जो हर तरफ होगी
बेवकूफ हैं जो सेना में चले जाते हैं
सरहद में जाकर
गोली खा खा कर मर जाते हैं
पता नहीं बंदूक चलाने का
सबसे आसान तरीका क्यों नहीं अपनाते हैं
जिसमें
बंदूक खरीदने कहीं भी नहीं जाते हैं
बंदूक
बस एक अपनी सोच में ले आते हैं
जरूरत होती है एक ऎसे कंधे की
जो आसानी से ही उपलब्ध हो जाते हैं
सारे शूरवीर ऎसे ही कंधों में रखकर
घोड़ों को दबाते हैं गोली चलाते हैं
सामने वाले कोई नहीं कहीं मर पाते हैं
कंधे देने वाले ही इसमें शहीद हो जाते हैं
बंदूक चलाने वाले मेडल पा जाते हैं
बेवकूफ कंधे देने वाले
समाज में हर कोने में पाये जाते हैं
लेकिन उस पर बंदूक रख कर
गोली चलाने वाले बिरले ही हो पाते हैं
समाज को दिशा देने वालों में
आज ये ही लोग
सबसे आगे जाते हैं
जो अपने कंधे ही नहीं बचा पाते हैं
ऎसे बेवकूफों से
आप और क्या उम्मीद लगाते हैं ?