चोर सिपाही
खेल
खेलते खेलते
समझ में
आना शुरु
हो जाते हैं
चोर भी
सिपाही भी
थाना और
कोतवाल भी
समझ में
आ जाना
और
समझ में
आ जाने
का भ्रम
हो जाना
ये अलग
अलग
पहलू हैं
इस पर
अभी चलो
नहीं जाते हैं
मान लेते हैं
सरल बातें
सरल
होती हैं
सब ही
सारी बातें
खास कर
खेल
की बातें
खेलते
खेलते ही
बहुत अच्छी
तरह से
सीख ले
जाते हैं
खेलते
खेलते
सब ही
बड़े होते हैं
होते चले
जाते हैं
चोर
चोर ही
हो पाते हैं
सिपाही
थाने में ही
पाये जाते हैं
कोतवाल
कोतवाल
ही होता है
सैंया भये
कोतवाल
जैसे मुहावरे
भी चलते हैं
चलने भी
चाहिये
कोतवाल
लोगों के भी
घर होते हैं
बीबियाँ
होती हैं
जोरू का
गुलाम भी
बहुत से लोग
खुशी खुशी
होना चाहते हैं
पता नहीं
कहाँ से
कहाँ पहुँच
जाता है
‘उलूक’ भी
लिखते लिखते
सुनकर
एक
छोटी सी
सरकारी
खबर
कि
देश के
लाखों
एन जी ओ
सरकार का
पैसा लेकर
रफू चक्कर
हो जाते हैं
पता नहीं
लोग
परिपक्व
क्यों
नहीं हो
पाते हैं
समझ में
आना
चाहिये
बड़े
होते होते
खेल खेल में
चोर भी चोर
पकड़ना
सीख जाते हैं
ना थाने
जाते हैं
ना कोतवाल
को बुलाते हैं
सरकार से
शुरु होकर
सरकार के
हाथों
से लेकर
सरकार के
काम
करते करते
सरकारी
हो जाते हैं ।
चित्र साभार: Emaze
खेल
खेलते खेलते
समझ में
आना शुरु
हो जाते हैं
चोर भी
सिपाही भी
थाना और
कोतवाल भी
समझ में
आ जाना
और
समझ में
आ जाने
का भ्रम
हो जाना
ये अलग
अलग
पहलू हैं
इस पर
अभी चलो
नहीं जाते हैं
मान लेते हैं
सरल बातें
सरल
होती हैं
सब ही
सारी बातें
खास कर
खेल
की बातें
खेलते
खेलते ही
बहुत अच्छी
तरह से
सीख ले
जाते हैं
खेलते
खेलते
सब ही
बड़े होते हैं
होते चले
जाते हैं
चोर
चोर ही
हो पाते हैं
सिपाही
थाने में ही
पाये जाते हैं
कोतवाल
कोतवाल
ही होता है
सैंया भये
कोतवाल
जैसे मुहावरे
भी चलते हैं
चलने भी
चाहिये
कोतवाल
लोगों के भी
घर होते हैं
बीबियाँ
होती हैं
जोरू का
गुलाम भी
बहुत से लोग
खुशी खुशी
होना चाहते हैं
पता नहीं
कहाँ से
कहाँ पहुँच
जाता है
‘उलूक’ भी
लिखते लिखते
सुनकर
एक
छोटी सी
सरकारी
खबर
कि
देश के
लाखों
एन जी ओ
सरकार का
पैसा लेकर
रफू चक्कर
हो जाते हैं
पता नहीं
लोग
परिपक्व
क्यों
नहीं हो
पाते हैं
समझ में
आना
चाहिये
बड़े
होते होते
खेल खेल में
चोर भी चोर
पकड़ना
सीख जाते हैं
ना थाने
जाते हैं
ना कोतवाल
को बुलाते हैं
सरकार से
शुरु होकर
सरकार के
हाथों
से लेकर
सरकार के
काम
करते करते
सरकारी
हो जाते हैं ।
चित्र साभार: Emaze