उलूक टाइम्स: कूप मंडूकों
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शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

आदत अगर हो खराब तो हो ही जाती है बकवास


मैंने
तो सोचा था 
आज तू नहीं आयेगा 

थक
गया होगा 
आराम करने को 
कहीं दूर चला जायेगा 

चार सौ पन्ने 
भर तो चुका है 
अपनी बकवासों से 

कुछ
रह नहीं गया 
होगा
बकाया तेरे पास 
शायद तुझसे अब
कुछ 
नया नहीं कहा जायेगा 

ऎसा
कहाँ हो पाता है 

जब
कोई कुछ भी 
कभी भी कहीं भी 
लिखना शुरु जाता है 

कहीं
ना कहीं से 
कुछ ना कुछ 
खोद के लिखने के 
लिये ले आता है 

अब
इतना बड़ा देश है 
तरह तरह
की भाषाऎं 
हैं बोलियाँ हैं 

हर
गली मोहल्ले के 
अपने तीज त्योहार हैं 

हर गाँव
हर शहर की 
अपनी अपनी  
रंगबिरंगी टोलियाँ हैं 

कोई
देश की बात
को 
बडे़ अखबार तक 
पहुँचा ले जाता है 

सारे
अखबारों का 
मुख्य पृष्ठ उस दिन 
उसी खबर से पट जाता है 

पता
कहाँ कोई 
कर पाता है

कि 
खबर
वाकई में 
कोई एक
सही ले 
कर यहाँ आता है 

सुना
जाता है 
इधर के
सबसे 
बडे़ नेता
को
कोई 
बंदर कह जाता है 

बंदर
की टीम का 
कोई एक सिकंदर 

खुंदक में 
किसी को फंसाने के लिये 
सुंदर सा प्लाट बना ले जाता है 

उधर
का बड़ा नेता 
बंदर बंदर सुन कर
डमरू
बजाना 
शुरु हो जाता है 
साक्षात
शिव का 
रुप हो जाता है 
तांडव
करना 
शुरु हो जाता है 

अब
ये तो बडे़ 
मंच की
बड़ी बड़ी 
रामलीलाऎं होती है 

हम जैसे
कूप मंडूकों 
से
इस लेवल तक 
कहाँ पहुँचा जाता है 

हमारी
नजर तो 
बडे़ लोगों के 
छोटे छोटे चाहने 
वालों तक ही पहुंच पाती है 

उनकी
हरकतों को 
देख कर ही हमारी इच्छाऎं
सब हरी 
हो जाती हैं 

किसी
का लंगोट 
किसी की टोपी
के 
धूप में सूखते सूखते 
हो गये दर्शन की सोच ही

हमें
मोक्ष दिलाने 
के लिये
काफी 
हो जाती हैं 

सबको पता है 

ये
छोटी छोटी 
नालियाँ ही
मिलकर 
एक बड़ा नाला 

और
बडे़ बडे़ 
नाले मिलकर ही 
देश को डुबोने के लिये
गड्ढा 
तैयार करवाती हैं 

कीचड़ भरे
 इन्ही 
गड्ढों के ऊपर 
फहरा रहे
झकाझक 
झंडों पर ही
लेकिन 
सबकी 
नजर जाकर टिक जाती है 

सपने
बडे़ हो जाते हैं 
कुछ सो जाते हैं कुछ खो जाते हैं 

झंडे
इधर से 
उधर हो जाते हैं 

नालियाँ
उसी जगह 
बहती रह जाती हैं 

उसमें
सोये हुऎ 
मच्छर मक्खी 
फिर से भिनभिनाना 
शुरु हो जाते हैं 

ऎसे में
जो 
सो नहीं पाते हैं 
जो खो नहीं जाते हैं 

वो भी
क्या करें 
'उलूक'
अपनी अपनी 
बकवासों को लेकर 
लिखना पढ़ना शुरु हो जाते हैं । 

चित्र साभार: https://www.quora.com/