उलूक टाइम्स: छन्द
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मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

इतनी जल्दी भी क्या है सब्र कर खुदा बने हुऐ ही उसे हुऐ कुछ महीने चंद हैं


शब्दों
के
जोड़
जन्तर
जुगाड़ हैं

कुछ के
कुछ भी
कह लेने के

तरीके
बुलन्द हैं 

सच के
झूठ के
फटे में

किसने
देखना होता है

लगे हुऐ
कई
रंगीन पैबन्द हैं 

लिखना लिखाना
पढ़ना पढ़ाना

पढ़े लिखों
का
कहते हैं

परम
आनन्द है

अनपढ़
हाँकता
चल रहा है

पढ़े लिखों
की
एक भीड़
का

आदि है
ना
अन्त है 

लिखा
जा रहा है

एक नया
इतिहास है

गुणी
इतिहासकारों
के
किले

चाक चौबन्द हैं 

अवगुणों
से
लबालब हैं
सोचने
फिर
बोलने
वाले
कुछ

सभी
होशियार हैं
जिनके मुँह
शुरु से ही
बन्द हैं 

लिख रहा है
‘उलूक’
कुछ ऐसा
मुद्दों को
छोड़कर

जो

ना
गजल है
ना शेर है
ना छन्द है

रट रहा है
जमाना
उस
शायर का
कलाम
आज

जिसका
एक शब्द
एक पूरा
निबन्ध है 

समझ
लेता है
इशारा
समझने वाला

कौन
शायर है
कैसा
कलाम है

बचा
जमाना है
नासमझ है

जब
हो चुका
खुद ही
शौक से
नजरबन्द है ।
चित्र साभार: https://making-the-web.com

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

छ से छन्द

कविता सविता
तो तब लिखता
अगर गलती से
भी कवि होता

मैं सिर्फ
बातें बनाना
जानता हूँ
छंद चौपाई
दोहे नहीं
पहचानता हूँ

रोज दिखते
हैं यहां कई
उधार लेकर
जिंदगी बनाते

कुछ जुटे
होते हैं
फटती हुवी
जिंदगी में
पैबंद लगाते

जो देखता
सुनता
झेलता
हूँ अपने
आस पास
कोशिश कर
लिख ही
लेता हूँ
उसमें से
कुछ
खास खास

ऎसे में
आप कैसे
कहते हो
छंद बनाओ
हमारी तरह
कविता एक
लिख कर
दिखाओ

गुरु आप
तो महान हो
साहित्य जगत
की एक
गरिमामय
पहचान हो

खाली दिमाग
वालों पर
इतना जोर
मत लगाओ
बेपैंदे के
लोटे को तो
कम से कम
ना लुढ़काओ

क से कबूतर
लिख पा
रहा हो
अगर
कोई यहां
गीत लिखने
की उम्मीद
उससे तो
ना ही लगाओ

हो सके
तो उसे  

ख से
खरगोश
ही
सिखा जाओ

नहीं कर
सको
इतना भी
तो
कम से कम
उसके लिये
एक ताली ही
बजा जाओ।